समाजिक कार्यकर्ता लोहित कुमार जोशी का साक्षात्कार

                लोहित कुमार जोशी सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो लम्बे समय से अलग-अलग NGOs और जन संगठनों के साथ जुड़े हुए हैं। वो मुख्यतः हाशिये के समुदायों के बच्चों की शिक्षा पर काम करते हैं। वर्तमान में वो डूंगरपुर में आदिवासी इलाके में भील समुदाय के बच्चों के शिक्षा पर काम कर रहें हैं। इसके आलावा ये जनता के अन्य मुद्दों पर भी अपनी तरीके से सक्रिय रहते हैं। वर्तमान चुनाव और राजनितिक परिदृश्य पर Vikalp blog ने उनसे खास बातचीत की।

प्रश्न : देश के बहुत से बुद्धिजीवी, सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि ये लोकसभा चुनाव बहुत ही महत्वपूर्ण चुनाव है, ये चुनाव देश की आगे की दिशा तय करेगा। इस पर आपकी राय?

उत्तर: आपके सवाल एक का मुख्य बिंदू, ये 2024 का चुनाव बेहद ही महत्वपूर्ण चुनाव है, ये चुनाव हमारे देश की दिशा तय करेगा ? मेरा इस पर अभी तक की स्थितियों को देखते हुए लोगों से सतत संपर्क के दौरान हुए अनुभवों के ध्यान में रखते हुए ये 2024 का चुनाव बहुत ही महत्वपूर्ण चुनाव है, क्योंकि राजनीत का एक मुख्य कोट शाम, दाम, दंड, भेद को देश का जन पिछले कुछ सालों से रूबरू अनुभव कर पा रहा है, जो उसने अभी तक सिर्फ सुना ही था ! ये चुनाव इसलिए काफी महत्वपूर्ण है कि जन के मन में जो पिछले कुछ साल से भुगती जा रही वास्तविक पीड़ाएँ मन है और उससे जो सरकार चुनने की शायद गलती हुई, हो जन अपनी इस गलती का प्रायश्चित करना चाहता है, और इधर भी अबकी बार भी पूरे दम और योजना और तैयारी के साथ पहले से भी अधिक शाम, दाम, दंड, भेद सारी ताकतवर मिसाइलें तैयार हैं, इसलिए ये 2024 का चुनाव बेहद महत्वपूर्ण और ये देश की इसलिए तय करेगा कि अगर जन के मन और जन के मत पर अगर इन राजनेताओं का शाम, दाम, दंड भेद सफल हुआ तो, देश की दिशा और भी बदल जायेगी, बेहतर/बदतर !!

प्रश्न: आपके हिसाब से अगर भाजपा सत्ता में आती है तो इसके क्या खतरे हैं? भाजपा के सत्ता में आने के क्या खतरे हैं?

उत्तर: आपका दूसरा बिंदु , भाजपा के सत्ता में आने के क्या खतरे की एक आमजन और अभी तक की उनकी सोच और अभी तक राज्य और देश में जन जन के साथ या उनके लिए किए गए योजनाबद्ध किए कार्यों का सीधा सीधा आंकलन किया जाए तो, हमारा देश पूरे विश्व का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण लोकतंत्र है, इसमें उनका केवल एक ही कार्य देखा जाए तो वह रहा है की, किसी भी तरह का कोई भी विपक्ष, किसी भी तरह रहे ही नहीं, ये किसी भी लोकतंत्र का सबसे निचला स्तर है और किसी भी एंगल से उचित नहीं है, और ये खतरा किसी भी लोकतंत्र के लिए बहुत खतरनाक खतरा है, अब आप और कोई भी अन्य अपने अपने अनुभवों और अभी तक के अपने अपने ज्ञान से अच्छे से समझ सकते हैं, इसमें मैं और अधिक कुछ नहीं कह सकता हूं, मुझे लगता है, मेरा इतना कहना ही इस सवाल के जवाब में कहना पर्याप्त है !

प्रश्न: क्या आपको लगता है कि भाजपा दुबारा सत्ता में आने के बाद संविधान को बदल देगी। क्या ये इनके लिए इतना आसान होगा?

उत्तर: आपका तीसरा सवाल भाजपा सत्ता में आने के बाद संविधान बदल देगी , क्या इनके लिए ये आसान होगा !

           तो इसके संदर्भ में मेरा जो जन अनुभव है, वह यह है इनके लिए सिर्फ संविधान ही नहीं बल्कि इसे यूं कहा जाए तो अधिक बेहतर होगा की इनके शासन के लिए जो जो भी चीजें या नियम, लोग आदि हैं ये उन सभी को संपूर्ण बदलने की आत्मिक मंशा रखते हैं, कुछ को तो इन्होंने अपने अपने तरीकों से अपने अभी तक के कार्यों में भी बदल ही दिया है जो समस्त देश के सामने हैं ही, विपक्ष की पार्टियां बदल दी, यूनिवर्सिटियों की बदल दिया, मीडिया बदल दिया, और भी जन के न्याय से जुड़े इंस्टीट्यूट में भारी फिर बदल और उनकी प्रक्रियाएं बदल दी ! रही बात आसान है क्या इनके लिए तो, ये शाम, दंड दंड भेद की सबसे प्रकाष्ठा वाली प्रक्रिया से आगे बढ़ रहे हैं, तो इनके लिए आसान तो होगा ही जो मुझे लगता है, क्योंकि लोकतंत्र के सबसे मजबूत पक्ष वोट को अपने पक्ष करना या पा लेने से समस्त तरीकों पर इनका संपूर्ण अधिकार बना लेने की योजनाओं का इनके पास होना, इनका सबसे बड़ी ताकत के रूप में इनके पास होना फिर चाहे वो, ई वी एम से चुनाव करवाना हो या ऐसा ही कुछ और, तो ये सभी एंगल बतलाते हैं की इनके लिए आसान होगा की नहीं मगर कठिन नहीं है !

प्रश्न : क्या आपको लगता है कि हम अधीनयकवाद की तरफ बड़ रहें हैं?

उत्तर: अब बात आती है, आपके चौथे सवाल पर, कि क्या हम अधिनायकवाद की तरफ बढ़ रहे हैं ?

            तो इस सवाल पर मेरा जन जन से जुड़ाव के साथ का अनुभव कहता है कि हम नहीं बढ़ रहे बल्कि देश के जन जन को इस ओर तेजी से बहुत आगे तक बढ़ा दिया गया है और स्थिति यहां तक आ गई है की अब अधिकतर जन को इससे तेजी तो छोड़िए धीरे धीरे भी पीछे आने की कोई भी सूरत दूर दूर तक दिखलाई नहीं दे रही है !!

प्रश्न : इंडिया गठबंधन को लेकर आप क्या सोचते हैं? क्या विपक्ष के लिए भाजपा और मोदी से लड़ना इतना आसान होगा? और क्या विपक्ष अपनी भूमिका सही से निभा भी रहा है?

उत्तर:  इंडिया गठबंधन को लेकर मेरा सोचना सामान्य है हालांकि जनता को बेहद भ्रमित कर रखा गया है, ये सब गलत लोग है, ये बिखर जायेंगे, जो जनता को लगता भी है, मेरा इसमें मानना है कि ये गठबंधन अभी की देश की स्थिति और गठबंधन की पार्टियों के गठबंधन का ये समझोता अभी की परिस्थिति की देन से अधिक कुछ नहीं है !

ये गठबंधन अपनी भूमिका आज की परिस्थितियों के अनुसार बेहतर नहीं निभा रहा है, कुछ कुछ हद तक तो कुछ कर पा रहा है लेकिन जिस तरह से भा ज पा तैयारी करती है या कर रही है, उसके जवाब की तैयारी ये विपक्ष नहीं कर पा रहा है, जबकि इनके पास अबकी बार बहुत सारे अवसर हैं !! जिस तरह से एक लंबी जीत को हासिल करने लेकर मोदी जी एंड कंपनी साम दाम दंड भेद आदि आदि को लेकर योजनाएं बना रही और शतरंज की बिसात बिछा रही, मोहरे सेट कर रही और किसी भी हद तक जा रही, उसके हिसाब से मोदी से जीतना विपक्ष के लिए आसान नहीं होगा जबकि ये 2024 का चुनाव मोदी की अंध भक्ति के सैलाब और मोदी एंड कंपनी की कूट नीति के आगे विपक्ष की लड़ाई बेहद कठिन प्रतीत होती लगती है, जबकि अबकी बार इस लोकतंत्र के पर्व का चुनाव अधिकतर जनता लड़ती दिखलाई दे रही है !!

प्रश्न: राहुल गाँधी को आप कैसे देखते हैं? वो अभी काफ़ी मेहनत कर रहें हैं| प्रधानमंत्री पर काफ़ी तीखे तरीके से प्रहार कर रहें हैं।

उत्तर : आपके इस सवाल का जवाब मैं कुछ इस तरह देने का प्रयास करूंगा कि इसके दोनो पक्ष साफ साफ झलक जाएं, राहुल गांधी ने पहले से बहुत बेहतर देश को समझने का पूरा प्रयास ईमानदारी और मेहनत के साथ किया है, बिना किसी सत्ता प्राप्ति के लक्ष्य की योजना के, वो देश का महत्व बदलती परिस्थिति में सही सही प्रक्रियाओं को समझकर इसके लिए क्या किया जाना चाहिए इस पर मेहनत की है, और उनके बारे में मैं जो ये बाते कह रहा वो इस सवाल के दूसरे पक्ष के सवाल में साफ साफ झलकेंगी, कि वह अपनी बातों में कहीं भी प्रधानमंत्री पर तीखे प्रहार करते नहीं दिखते हैं, ये उनके हर बोलने पर आम जन को झलक तो रहा है, लेकिन वह आम जन की वास्तविक पीड़ा को कह रहे होते हैं और वो पीड़ा जहां से आ रही उसे उजागर करते रहते हैं, अब इसे समय का फेर कहे या विडंबना कि ये सारी की सारी बाते, मोदी के अभी तक के कार्यकलापों से सटीक बैठती जा रही है, क्योंकि मोदी जी ने यही कुछ किया भी है जो राहुल कह रहे और इन क्रिया कलापों से जन जन पीड़ित तो हुआ ही है और निरंतर हो भी रहा है !! आगे क्या कहूं आप सभी लोग भी समझदार तो हो ही !!

 

प्रश्न : प्रधानमंत्री कांग्रेस के मेनिफेस्टो पर काफ़ी आलोचक हैं। पहला आप कांग्रेस के मेनिफेस्टो को कैसे देखते हैं?

उत्तर: एक बात हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी के बारे में अधिकतर जन जानते हैं, जब से यह चाय के बाद सीधे राजनीत में आए यां लाए गए, और इनकी ये बात इनके भक्त और इनके अंध भक्त तक भी जानते हैं कि यह प्रारंभ से ही कुतर्की आलोचक रहे है, अब तो इनके इस विशेष गुण के कारण इन्हें कई उप नामों से भी जाना पहचाना जाने लगा है, मैं यहां उन उप नामों का जिक्र नहीं करूंगा, पहली बात ! अब दूसरी बात कांग्रेस का मेनिफेस्टो, अबकी बार यां यूं कहें तो भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी की इनका ये मेनिफेस्टो जन नेता, श्रेष्ठ विपक्ष वाला मेनिफेस्टो है, जन जन के बहुत करीब है और संभव हो सकता है, इसमें असंभव कोई बात नहीं, दूसरी बात इसमें किसी भी जन के खिलाफ कोई बात नहीं, अब ये सवाल तो हर मेनिफेस्टो के जुड़ता ही है कि क्या ये यह सब जनता के लिए ईमानदारी से कर पाएंगे यां नहीं !!

 

प्रश्न : कांग्रेस जातिगत जनगणना की मांग को पुरजोर तरीके से उठा रही है। इस पर आपकी राय? क्या ये ऐसा मुद्दा है जो वोट को प्रभावित करेगा?

उत्तर: किसी भी लोकतंत्र के लिए ये बेहद ही महत्वपूर्ण बिंदु है, और इसे विपक्ष द्वारा पुर जोर तरीके से ही उठाया जाना चाहिए, पहली बात दूसरी बात विपक्ष को इसे उठाना और सरकार को इसे समय से पहले ही पूर्ण करना बेहद जरूरी होता है ! मैं इस बात को इस चुनाव में तो स्पष्ट तौर पर नहीं कह सकता की ये मुद्दा वोट को कितना प्रभावित करेगा, लेकिन अगर ये हो जाता है तो आने वाले हर चुनाव में वोट को प्रभावित अवश्य करेगा !!

 

प्रश्न: आप राजस्थान के आदिवासी इलाके में काफ़ी सक्रिय है डूंगरपुर में। यहाँ पर कुछ सालों से बाप पार्टी काफ़ी तेजी से उभरी है। जो कि आदिवासियों के मुद्दों पर केंद्रित हैं? बाप के इतना तेजी से उभार के क्या कारण है आपके हिसाब से?

उत्तर : अगर मैं आदिवासी इलाके और विशेषकर डूंगरपुर की बात करूं तो और वह भी राजनीतिक परिदृश्य में तो, अगर कुछ समय तक पहले की बात की जाए तो इस क्षेत्र में कांग्रेस का काफी प्रभाव रहा है लंबे समय तक, फिर यहां धीरे धीरे जो परिवर्तन देखने को मिला उसमें दो पार्टियों ने अपना प्रभाव बनाया, एक बी टी पी और दूसरी भा ज पा, फिर लंबे समय तक कांग्रेस और बी टी पी का मामला रहा और फिर इस बीच भा ज पा ने अपना आधार बनाया, ठीक उसी तरह जैसा वो लंबे समय से हर जगह करती आ रही थी, उसने बी टी पी और कांग्रेस में तोड़ फोड़ शुरू की, उससे इन दोनों पार्टियों में मदभेद तेजी से उभरे और इसका फायदा भा ज पा को हुआ, इस सारे अनुभवों के बाद बी टी पी का एक सुधरा रूप बाप पार्टी के रूप में उभरकर आया ये बाप पार्टी आदिवासियों के असल मुद्दों को लेकर यहां के आदिवासियों के बीच आई और अपना अच्छा आधार बना पाई, परिणाम स्वरूप ये अपनी कुछ सीटें आसानी से निकालकर ले गई, इन दोनों पार्टियों के बीच से ! मैं जितना समझ पाया बाप पार्टी के तेजी से उभरने के तो इस पार्टी की रणनीति में भा ज पा की बेहतर काट और उनसे मिलती जुलती ही रणनीति, इसे यूं समझना आसान होगा की, इस पार्टी का कैंडिडेट राजकुमार रोत वहां का मोदी है, ये उसकी पहचान बनती जा रही है अभी तक वह पहले वाले मोदी जी की ख्याति ये जरूर कुछ करेगा हमारे लिए !! अब आगे जाकर ये राजकुमार जी भी अगर अब वाले मोदी जी जैसा हो जाए तो कुछ नहीं कहा जा सकता है !!

प्रश्न : आपके हिसाब से बाप जैसी पार्टिया भारत के लोकतंत्र में क्यों जरुरी है? ये क्यों महत्वपूर्ण है?

उत्तर: इस सवाल के जवाब में ये तो नहीं कह सकता अभी कुछ सालों के राजनीतिक परिदृश्य से की लोकतंत्र के लिए भा ज पा या बाप जैसी पार्टियां जरूरी है यां नहीं, लेकिन मेरा इस पर यह कहना है कि किसी भी लोकतंत्र में उस तरह की एक पार्टी की जरूरत तो होती ही है जो एक बड़े वर्ग या हाशिए पर निरंतर जाने वाले वर्ग के लिए न्याय और समता समानता की बात करती हो, उनका सच्चा प्रतिनिधित्व करती हो !!

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