सीकर लोकसभा सीट से अमरा राम चुनाव लड़ रहें हैं। वो INDIA गठबंधन की तरफ से उम्मीदवार हैं। अमरा राम राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में जन नेता के रूप में जाने जाते हैं। जनता में उनकी पहचान किसानों मजदूरों के लिए लड़ने वाले आदमी के रूप में की जाती है। 2020-21 में हुए किसान आंदोलन में अमरा राम ने राजस्थान के किसानों का नेतृव किया था। उन्होंने राजस्थान के किसानों के साथ राजस्थान हरयाणा के शाहजहांपुर बॉर्डर धरना दिया था। अमरा राम ने हाल ही में CPM की तरफ से सीकर में विधानसभा का चुनाव भी लड़ा था हालांकि विधानसभा चुनावों में अमरा राम को 30 हज़ार के लगभग ही वोट मिले थे। और इस बार वो सीकर लोकसभा से mp के लिए इंडिया गठबंधन के दावेदार हैं।
Vikalp blog ने Prof C B Yadav से बात की और ज़मीन पर उनकी स्थिति को समझने की कोशिश की।
प्रश्न: आप तो मूलतः चौमू से ही आते हैं और यहाँ के जनता के मुद्दों पर भी सक्रिय रहते हैं। तो आपका आंकलन क्या है क्या अमरा राम भाजपा के उम्मीदवार को ज़मीन पर टक्कर दे पा रहें हैं ?
उत्तर: नहीं सिर्फ टक्कर ही नहीं वल्कि मैं कॉन्फिडेंट हूँ कि राजस्थान की 200 विधानसभा में से इंडिया गठबंधन को जो सबसे ज्यादा लीड मिलेगी वो इसी विधानसभा से मिलेगी। क्यों कि मैंने ज़मीन पर करेंट महसूस किया है और लोगों के भीतर का ये भाव देखा है इसका एक कारण तो यह है कि किसान आंदोलन के दौरान यह क्षेत्र काफ़ी सक्रिय रहा है। शाहजहाँपुर बॉर्डर पर इस क्षेत्र से काफ़ी किसानों की भागीदारी रही थी जिसकी अगुवाई मैंने खुदने भी की थी। तो अमरा राम के साथ यहाँ के हर जाती, धर्म, वर्ग के लोगों का एक भावनात्मक जुड़ाव रहा है। इस लिए मेरा मानना है कि अमरा राम को इस चौमू विधानसभा क्षेत्र से काफ़ी अच्छी खासी लीड मिलेगी । हालांकि मैं कितना सच साबित होता हूँ ये तो 4 जून को ही पता लगेगा।
प्रश्न: तो सर आपके हिसाब से भाजपा का धर्म का, हिंदुत्व का मुद्दा इस बार यहाँ पर नहीं चलेगा?
उत्तर: देखिये दुनिया के अंदर क्षणिक कोई बहुत लम्बा नहीं चलते हैं। अंतिम तौर से भारत का जो लोकतंत्र है वो अपनी सही स्थान पर आ ही जाता है। नरेंद्र मोदी का 2014 से लेकर 2019 का जो समय था उसमे उनकी जो भाषा शैली थी उनकी जो स्टाइल थी उससे लोग प्रभावित हुए थे। लेकिन अब ये स्थिति हो गयी है कि उनकी सच बात भी झूठ लगने लगी है। अब तो वो झूठ का प्रतिक बन चुके हैं। तो अब इन सब बातों का कोई मतलब नहीं रह गया है। यहाँ जो सबसे बड़ा मुद्दा है वो है दवाई, पढ़ाई और कमाई का है। और इस क्षेत्र में इससे भी बड़ी जो समस्या है वो पानी की है। वर्तमान में यहाँ के जो भाजपा से MP है वो 10 सालों में शायद 10 बार भी चौमू नहीं आये होंगे। वो जनता से मिलते ही नहीं हैं, इसको लेकर जनता में गहरा रोष है और दूसरी तरफ अमरा राम जी हैं जो उनके जैसे ही हैं जनता के ही आदमी हैं।
इसके आलावा कांग्रेस की न्याय स्कीम लोगों को बहुत आकर्षित कर रही है। MSP की गारंटी, युवाओं को पक्की नौकरी जो काफ़ी चर्चा का विषय है। फसल बीमा योजना। और संविधान को बचाने का कांग्रेस का जो संकल्प है। तो ये सब चीजें हैं।
प्रश्न: एक अमरा राम के जो आलोचक है उनका कहना है कि अमरा राम हाल ही में विधानसभा का चुनाव लड़े उसमे उनका परफॉर्मेंस कुछ अच्छा खासा नहीं रहा है। तो चार पांच महीने के अंदर में ही ऐसा क्या हो गया कि आपको लग रहा है कि अमरा राम बहुत ही मजबूत दावेदार हैं?
उत्तर: पहली बात तो यह है कि ये चुनाव सिर्फ अमरा राम ही नहीं लड़ रहें हैं बल्कि पूरा इंडिया गठबंधन लड़ रहा है। और हर चुनाव एक कोरा कागज होता है। विधानसभा चुनाव में जो एंटी भाजपा का जो वोट था वो बट गया था। सीकर के धोद जो अमरा राम जी का क्षेत्र है वहाँ पर अमरा राम जी के सामने कांग्रेस का भी उम्मीदवार था। तो ये कारण था। अब सारा इंडिया गठबंधन पूरा एक है। RLP, आम आदमी पार्टी, कांग्रेस CPM सब इस बार एक हैं। अमरा राम अब सबके सयुंक्त उम्मीदवार है। अब केवल अमरा राम ही थोड़े चुनाव लड़ रहें हैं राहुल गाँधी भी चुनाव लड़ रहें हैं, गोविन्द सिंह ड़ोटासरा भी चुनाव लड़ रहें हैं, यहाँ का हर नागरिक चुनाव लड़ रहा हैं।
प्रश्न: तो क्या यह कहाँ जा सकता है कि पिछली बार भाजपा विरोधी पार्टियों में आपस में कोर्डिनेशन की जो कमी थी क्या वो इस बार पूरी हो रही है?
उत्तर: विधानसभा का चुनाव गठबंधन नहीं लड़ रहा था। लेकिन ये चुनाव गठबंधन मिलकर लड़ रहा है। दूसरा इस ये भी है कि सब को यह लग रहा है कि अगर इस बार चूक गए ना तो बहुत ही मुश्किल होगा।
देखिये क्या है, उत्तर कोरिया में संविधान भी है और वहां चुनाव भी होते हैं, ऐसे ही रशिया में भी चुनाव होते हैं। तो लोकतंत्र का मतलब ये नहीं हैं कि देश में चुनाव हो रहें हैं या नहीं बल्कि लोकतंत्र का असली मतलब ये है कि देश में नागरिक अधिकार कितने सुरक्षित हैं। क्या एक नागरिक के तौर पर मैं अपनी बात रख पा रहा हूँ कि नहीं। मेरे फंडामेन्टल राइट्स सुरक्षित हैं कि नहीं। संवैधानिक संस्थाएं जिनका काम सरकारों पर नियंत्रण रखना है वो कितनी सुरक्षित हैँ? क्या वो निष्पक्ष रूप से काम कर पा रही हैं? अगर हम लोकतंत्र के तमाम इंडेक्स देखे तो हम बहुत ही नीचे आ चुके हैं. प्रेस की फ्रीडम के इंडेक्स्ट में हम बहुत ही नीचे हैं। 400 पार तो छोड़िये अगर ये लोग दुबारा सत्ता में आ गए तो बहुत ही मुश्किल हो जायेगा। ये लोग संवैधानिक संस्थाओं पर किस तरह से एकाधिकार करेंगे ये कल्पना करके भी डर लगता है।