किसान आंदोलन को लेकर SKM नेता शशिकांत के साथ इंटरव्यू

किसान आंदोलन को लेकर SKM नेता शशिकांत के साथ इंटरव्यू

प्रश्न केंद्र में फिर से तीसरी बार मोदी सरकार बनी है। तो अब किसान आंदोलन के आगे की रणनीति क्या होने वाली है?

उत्तरअभी जो नई संसद चुनी गयी उसके बाद 16-17 जुलाई को सभी सांसदों को SKM की तरफ से ज्ञापन दिया गया। उसके साथ साथ विपक्ष के नेता राहुल गांधी से भी मिलने की कोशिश की जा रही है। 9 अगस्त को एंटी कॉर्पोरेट दिवस मनाने का भी ऐलान किया है। जिसमे ये मांग की जाएगी कि कृषि को WTO से बहार किया जाये। इस  मांग को लेकर देश के अलग अलग हिस्सों में कार्यक्रम किये जायेंगे। .

प्रश्न  नयी सरकार बनने के बाद सरकार ने पहला बजट पेश किया है, उस पर आपकी प्रतिक्रिया?

उत्तर – ये जो पूरा बजट है वो पूरा का पूरा कॉर्पोरेट हितेषी और जन विरोधी बजट है। जहाँ पिछली बार कृषि को 3.02% दिया गया था जिसे अब घटा कर 3.0 % कर दिया गया है। यूरिया पर जो सब्ससीडी मिलती थी उसे घटा दिया है। मनरेगा में कोई वृद्धि नहीं की गयी। किसान सम्मान निधि में कोई वृद्धि नहीं की गयी। सरकार एमएसपी के कानून बनाने पर भी कोई स्पष्ट जबाब नहीं दे रही है। तो ये सब देखकर तो यही लग रहा है कि सरकार को अभी और भी सबक सिखाने की जरुरत है क्यों कि लोकसभा के परिणामों से शायद सरकार कोई भी सबक नहीं सीखी है।

प्रश्न   आपने सरकार को सबक सिखाने की बात कही। अभी कुछ महीनों में हरयाणा, महाराष्ट्र, जम्मू कश्मीर झारखण्ड में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं तो क्या SKM इन राज्यों में बीजेपी के खिलाफ कोई मुहीम चलाएगा क्या? और क्या इस पर SKM से जुड़े तमाम किसान संघठन एकमत हैं क्यों कि कुछ किसान संगठन चुनावों में हस्तशेप को लेकर सहमत नहीं हैं?

उत्तर – SKM के किसान संगठनों में कोई मतभेद नहीं हैं, कुछ किसान संगठन भले ही इस पर अलग रुक रख सकते हैं लेकिन अभी जो 10 जुलाई की जो SKM की नेशनल बॉडी मीटिंग हई थी उसमे तमाम किसान संगठनों ने एक मत होकर बोला था कि इन चुनावों में भी बीजेपी को सबक सिखाने की जरुरत है। ये सबने मिलकर तय किया जल्द ही कोई निर्णय लेंगे। इन तमाम राज्यों में सम्मेलन करेंगे और इन राज्यों की SKM की स्टेट बॉडी के साथ मिलकर अभियान की रुपरेखा तय करेंगे। क्यों कि हर जगह की स्थिति अलग अलग हैं तो अभियान का रूप भी हो सकता है कि थोड़ा थोड़ा भिन्न हो। लेकिन ये जरूर तय है कि बीजेपी को राजनीतिक रूप से चोट देंगे जरूर। क्योंकि एक बात स्पष्ट है कि बीजेपी किसान विरोधी पार्टी है, वो किसानों के खिलाफ एक लड़ाई लड़ रही है इस लिए बीजेपी को बिना राजनितिक सबक सिखाये  इस लड़ाई को किसानों के लिए जितना संभव नहीं है।

प्रश्न आप काफी लम्बे समय से एमएसपी के कानून की मांग कर रहें हो, लेकिन सरकार इससे दूर भागती नजर आ रही है। आपके हिसाब से इसका  कारण क्या है?

उत्तर – बात सिर्फ एमएसपी की ही नहीं है बल्कि कॉर्पोरेट जगत चाहता ही नहीं है कि मजदूर को उसके मजदूरी का पूरा पैसा मिले। क्यों कि पूंजीवादी व्यवस्था इसी शोषण पर टिकी होती है। अत्याधिक लाफ कमाने की जो मंशा है वो सिर्फ मजदूरों के श्रम के शोषण से ही पूरी हो सकती है। इस लिए ये तो चलेगा ही। ये वयवस्था श्रमिकों को न तो मजदूरी देना चाहती है और न ही किसानों को मूल्य देना चाहती है।  

प्रश्न  इसी से जुडा एक सवाल ये भी है कि सरकार द्वारा ये तर्क दिया जाता है कि अगर एमएसपी का कानून बना दिया तो इसका सीधा असर मध्यम वर्ग पर पड़ेगा इससे महगाई बढ़ जाएगी?

उत्तर – जिसपे एमएसपी नहीं मिलती है वो कौनसा जनता को सस्ता मिलता है। सरकार सिर्फ 23 फसलों पर एमएसपी देती है। लेकिन सेब पर एमएसपी नहीं देती है और किसान 10 रूपए किलो सेब मंडी में बेचता है लेकिन वही जनता को 100 रूपए किलो मिलता है। ऐसे ही टमाटर 10 रूपए किलो किसान से ख़रीदा जाता है लेकिन जनता को 100 रूपए किलो मिलता है।  अगर सिर्फ बाजार के ही भरोसे सब छोड़ दिया जाये और सरकार उसका मूल्य तय न करे तो कौनसी चीज सस्ती मिलेगी। लेकिन अगर सरकार मूल्य तय कर दे हर एक खाद्य चीजों का तो उससे रसोई का बजट घटेगा बढ़ेगा नहीं इसको लेकर हमारे पास बहुत से तथ्य है, बहुत सी रिपोर्ट्स हैं। क्यों कि किसान सिर्फ किसान ही नहीं है बल्कि वो उपभोक्ता भी है अगर सरकार हर खाने की चीज पर एमएसपी लागु कर दे तो वो उगाने के साथ साथ खरीदेगा भी। और इससे 10 और 100 का जो अंतर है जिसमे एक बड़ा मुनाफा केवल व्यापारी को ही जाता है वो खत्म होगा। और लोगों को सस्ती चीज मिलेगी।

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