21 अगस्त भारत बंद पर सामाजिक कार्यकर्ता अर्जुन मेहर से साक्षात्कार

प्रश्न : 21 तारिख को भारत बंद के पीछे मुख्य कारण क्या थे?

उत्तर: देखिए सुप्रीम कोर्ट ने 1 अगस्त को जो जजमेंट दिया था जिसमे मुख्यतः SC /ST आरक्षण मे उपवर्गीकरण और उसके साथ SC /ST मे क्रिमी लेयर की जो बात कहीं गयी थी उसके विरोध मे ये भारत बंद का आयोजन किया गया था क्यों कि सुप्रीम कोर्ट का ये निर्णय पूरी तरह से गैरसंवेधानिक था क्यों कि ये निर्णय राज्यों को पूरी की पूरी ताकत दे रहा था कि आप किसी भी जाति को आरक्षण से बहार करिये या अंदर करिये। लेकिन आर्टिकल 341 के तहत आरक्षण की पूरी ताकत संसद को है। तो ये सीधा सीधा 341 का उलघन करता है। और इसलिए ये फैसला असंवेधानिक है। दूसरा ये SC/ST समाज को आपस मे लड़ाने वाला फैसला था। इसलिए हम इसके विरोध मे थे। इसको हम राजस्थान के उदाहरण से समझते हैं। राजस्थान मे ST 12 जातियां शामिल हैं अगर आप दो जातियों को अलग कर देतें हैं और 10 को अलग तो इससे आपस में ही टकराव की स्थिति पैदा होने की सम्भावना बड़ जाती है और अब तक एक व्यापक एकता जो बनी है पुरे आदिवासी समुदायों की आपस में उसके टूटने का खतरा बड़ जाता है।

प्रश्न : आप एकता की बात कर रहें हैं लेकिन ST या SC में ही बहुत से समुदाय सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का समर्थन कर रहें हैं जैसे कि बाल्मीकि जाति. इसमें उनका ये तर्क है कि बतौर जाति बाल्मीकि समाज को अभी तक SCआरक्षण से उतना लाभ नहीं हुआ जितना की वैरवा, जाटव समाज को हुआ और अब इस फैसले से हमारे लिए भी मौके खुले हैं, तो इस तर्क को आप कैसे देखते हो?
उत्तर: देखिए उनका ये जो तर्क है कि अब तक SC आरक्षण से उनको फायदा नहीं मिला है वो एक हद तक ठीक है लेकिन साथ साथ उनको ये भी देखना चाहिए कि राजस्थान में 16% आरक्षण SC को और 12 %आरक्षण ST को है तो उन्हें साथ ही साथ ये भी देखना चाहिए कि क्या वो 12% या 16% सरकारी नौकरियां पूरी तरह से भरी जा चुकी हैं और जितनी भरी गयी हैं उसमे पूरी की पूरी उन जातियों से भरी गयी हैं जिन जातियों पर पुरे आरक्षण का लाभ लेने का आरोप लगाया जा रहा है जैसे ST में मीणा जाति या SC में पूरी की पूरी जाटव या मेघवाल की जाति से भरी गयी हैं। अगर राष्ट्रीय स्तर पर देखें तो आदिवासियों को 7:30% से ज्यादा आरक्षण है तो वहीं दलितों को 15% आरक्षण है लेकिन आज भी हमारा st का 4%से ज्यादा बैकलॉग खाली पड़ा है राष्ट्रीय स्तर पर। ऐसे ही दलितों का 6% से ज्यादा बैकलॉग खाली पड़ा हुआ है। तो इससे पता लगता है कि अभी तक आरक्षण का पूरा का पूरा फायदा किसी भी जाति को नहीं मिला है। और दूसरा उनका ये जो तर्क है कि हम आगे नहीं बड़ पाए हैं तो ये उन्हें सोचना चाहिए कि जब आरक्षण की व्यवस्था लागु की गयी तब तो सब ही जातियाँ समान थी। तो ये तो उन जातियों को सोचने की जरुरत है कि उन्होंने आगे बढ़ने की कभी सोची ही नहीं। अगर मैं SC में वाल्मीकि समाज का उदाहरण लू तो वाल्मीकि समाज के लोग ज्यादातर आपको सफाई कर्मचारी मिलेंगे उन्होंने कभी इससे आगे बढ़ने की सोची ही नहीं। अगर राजस्थान में देखें तो आपको मेघवाल या जाटव समाज या मीणा समाज ने हायर एजुकेशन हासिल करी और आगे बढे मतलब उन्होंने अपने दायरे को बढ़या और विकास किया। लेकिन अब जिन जातियों को लग रहा है कि कुछ खास जातियों को ही अब तक आरक्षण का फायदा हुआ है और इस लिए इन्हे आरक्षण से बहार किया जाये तो उन्हें ये समझना चहिये कि इससे हमारी आपस की यूनिटी टूटेगी और इसका सीधा सीधा उद्धारण है काकरीडूंगरी का आंदोलन, वहां पर भीलों की टीएसपी और नॉन टीएसपी के आधार पर 1600 सीटें थी तो उन 1600 सीटों को जनरल से भरने की कोशिश की गयी। अगर वहां टीएसपी और नॉन टीएसपी के आधार पर आरक्षण नहीं होता तो उन पर पूर्वी राजस्थान से आने वाले मीणा समाज के लोग भी शामिल किये जा सकते थे। और अगर ये टीएसपी आरक्षण नहीं होता तो उन 1600 सीटों के बचाने की लड़ाई को सब मिलकर लड़ते जो सिर्फ भीलों ने लड़ी।

         अगर आरक्षण व्यवस्था में सुधार करना है तो इसके बहुत से और उपाय किये जा सकते हैं जैसे JNU में अड्मिशन के वक़्त डेप्रिवेशन पालिसी। वैसे ही सभी भर्तियों में जो विद्यार्थी पिछड़े क्षेत्र या आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग हैं तो उन्हें देप्रिवेशन पालिसी के तहत 1या 2 % की एक्स्ट्रा मार्किंग की जा सकती है। जिससे कॉम्पीटिशन एग्जाम में जो दायरा बढ़ गया है इससे उसको भरा जा सकता है। इसके साथ साथ और भी अन्य सुधाररात्मक कदम उठाने की जरूरत है जिससे आरक्षण का फायदा सभी जातियों को मिले जैसे कि सरकारी शिक्षण संस्थानों की स्थिति को मजबूत किया जाये और देश से कोचिंग माफिया को खत्म किया अगर ये नहीं कर सकते तो सरकार को इसके पेरलर कोचिंग की कोई ठोस व्यस्तता करें जिससे आर्थिक रूप से कमजोर छात्र सरकारी नौकरियों की तैयारी कर सके और सामान शिक्षा के अवसर सबको मिल सके. उसके साथ साथ SC/ST में स्कूल से ही व्यवस्थित रूप स्कोरलरशिप दी जाये. आज हम ये भी देख रहें हैं कि SC/ST की स्कोरलशिप चार चार, पांच पांच सालों से अटकी हुयी है. जो भी सरकारी नौकरियों में बैकलॉग है वो SC/ST कोटे के तहत भरी जाये, एक जातिगत जनगणना कराई जाये जिससे आबादी के तहत आरक्षण दिया जा सके। क्यों कि अभी राजस्थान में अभी आरक्षण है वो 1971 की जनगणना के तहत ST को 12 और SC को 16% आरक्षण मिला हुआ है लेकिन आज की स्थिति अलग है आज अगर जातिगत जनगणना होती है तो आबादी के अनुपात के तहत ST को कम से कम 16% आरक्षण मिलेगा और वहीं SC को 20% तो इस लिए जातिगत जनगणना होनी चाहिए। ये सब सुधार करने की जरूरत है जिससे ST और SC में सबको आरक्षण का लाभ मिल सके न कि आप उपवर्गीकरण करना। और रही बात क्रिमी लेयर की तो जैसे सरकार ने EWS के तहत 10% असवेधानिक आरक्षण दे रखा है उस कोटे को बड़ा के उसमे SC/ST/OBC से आने वाले कमजोर वर्गों के विधार्थियो को आरक्षण दिया जा सकता है।

प्रश्न : आपने अभी बात की की सरकारी नौकरियों की, कि वहां पर भर्तिया काफी लम्बे समय से रुकी हुयी है. सरकार के रुख से भी यहीं लग रहा है कि वो हर चीज का निजीकरण करना चाहती है लेकिन इस पर अधिकांश सामाजिक न्याय के जो समर्थक हैं वो निजीकरण के खिलाफ उतना विरोध करते हुए दिखाई नहीं देतें जितना होना चाहिए। आपको लगता है कि ये एक कमी है?
उत्तर: देखिए अभी हमने जो ज्ञापन दिया भारत बंद के दौरान उमसे हमने इसे पुरजोर तरीके से उठाया है। हम तो प्राइवेट सेक्टर में भी आरक्षण की मांग को उठा रहें हैं लेकिन हमें पता है कि वो सरकार इतनी आसानी से दे नहीं सकती. लेकिन अभी जो सरकार कर रही है वो पब्लिक सेक्टर का निजीकरण कर रही है जैसे रेलवे को बेच दिया जहाँ रेलवे में पहले 16 लाख नौकरियां हुआ करती थी अब घट कर 10 लाख ही रह गयी है 6 लाख लोग इन्होने ठेके पर लिए हैं जो ठेके पर लिए हैं उसमे SC/ST/OBC आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है। तो जितनी भी PSU को इन्होने प्राइवेट किया है उमसे भी आरक्षण को शामिल किया जाना चाहिए. उदहारण के तौर पर देखें तो जयपुर का एयरपोर्ट अडानी को सौंपा गया अब वहां जो भी जो भी भर्ती निकलेगी उस भर्ती में आरक्षण का कोई भी क्राइटेरिया लागू नहीं होगा अगर वहीं पर ये एयरपोर्ट सरकारी होता तो आरक्षण के तहत उसमे सभी जातियों को मौका मिलता. तो ये निजीकरण के तहत इंडाइरेक्ट रूप से आरक्षण की व्यवस्था को समाप्त करने की कोशिश है जिसका हम पुरजोर विरोध करते हैं।

प्रश्न: अब तक सामाजिक न्याय के पक्षधर लोग जो माने जाते हैं जैसे राजस्थान में Dr. किरोड़ी लाल मीणा या फिर राजनीतिक विश्लेक योगेंद्र यादव ऐसे लोग इस कोर्ट के इस फैसले का समर्थन कर रहें हैं उनका ये तर्क है कि इससे सामाजिक न्याय की लड़ाई और मजबूत होगी.  इस आपकी प्रतिक्रिया
उत्तर: देखिए निश्चित ही Dr. किरोड़ी लाल मीणा जन नेता हैं लेकिन वो अभी गलत पार्टी में हैं। अगर उनके पिछले साल दो साल के भाषणों को देखें तो समझ नहीं आता कि वो किसे खुश करने में लगे हुए हैं। वो पूरी तरह से आरएसएस की विचारधारा से प्रभावित हैं जहाँ उनकी पार्टी एक तरफ ये बयान देती है कि हम क्रिमी लेयर को लागू नहीं करेंगे वहीं वो उससे पहले ही बयान दे देतें है कि वो क्रिमी लेयर के पक्ष में हैं। अगर Dr. साहब को क्रिमी लेयर की इतनी चिंता है तो दौसा में अभी उपचुनाव होने वाले हैं उसमे वो अपने भाई के लिए टिकट नहीं मांगे बल्कि उस मजदूर को ही चुनाव लड़वा दे जिसका वो बार बार उदहारण दे रहें हैं। तो ये सब हवा हवाई बातें हैं आपने भी देखा होगा कि जनता भी उनके इन बयानों के प्रति आक्रोश व्यक्त कर रही है। Dr साहब को ये समझना होगा कि समाज से नेता बनता है न कि नेता से समाज। और रही बात योगेंद्र यादव की तो उन्हें ये देखना चाहिए कि अभी जो राम मंदिर का शिलान्यास हुआ उसमे राष्ट्रपति या पूर्व राष्ट्रपति नहीं बुलाया गया, अभी हाल ही में जयपुर में भाकरोटा में हेड कॉन्स्टबल को आत्म हत्या जातिगत उत्पीड़न के चलते आत्म हत्या करनी पड़ी. अभी पिछले साल ही चाकसू में एक दलित IPS ऑफिसर को अपनी शादी में पुलिस की सुरक्षा मांगनी पड़ी। तो सामाजिक न्याय का मतलब सिर्फ नौकरी पाना ही नहीं है बल्कि उसका मतलब है कि आपके साथ कोई जातीय भेदभाव नहीं हो जाति के आधार पर कोई अत्याचार नहीं हो प्रताड़ना नहीं हो। योगेंद्र यादव जी अकड़ों के काफी जानकर हैं उनका गहन अध्ययन करते हैं तो उन्हें देखना चाहिए कितने SC/ST के प्रोफेसर की नियुक्ति उच्च शिक्षण संस्थान जैसे IIT/IIM/Delhi JNU जामिया जैसे universities में सामाजिक न्याय के सिद्धांत की पालना करते हुए की गयी। सुप्रीम कोर्ट स्वम सामाजिक न्याय के सिद्धांत की कितनी पालना करता है?
तो ये सब देखने की जरुरत है.

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