लोकेश प्रकाश (AIFRTE) का साक्षात्कार मानस भूषण द्वारा

1. आपका परिचय (संक्षिप्त में)

## नाम: लोकेश मालती प्रकाश; अखिल भारत शिक्षा अधिकार मंच (अभाशिअम) से लगभग एक दशक से जुड़ा हुआ हूँ।

2. AIFRTE अभियान क्या है? इसकी स्थापना कब, क्यों और किस लिए की गयी?

##  अभाशिअम की स्थापना 2009 में हुई थी। इसका उद्देश्य है एक समतामूलक व न्यायपूर्ण शिक्षा व्यवस्था के लिए देश में व्यापक मुहिम खड़ी करना।

3. अभी AFIRTE का नेटवर्क कहाँ कहाँ सक्रिय है?

## देश के बीस से भी ज़्यादा राज्यों में अभाशिअम के सदस्य-संगठन सक्रिय हैं।

4. नई शिक्षा नीति का आप लोग विरोध कर रहें हैं। लेकिन मोदी सरकार तो दावा करती है नई शिक्षा नीति के आने से यहाँ की पूरी शिक्षा नीति में क्रान्तिकारी परिवर्तन हो जायेगा तो फिर इसका विरोध क्यों कर रहें हैं। इसके ऐसे क्या खतरे हैं?

##  नई शिक्षा नीति के कुछ जन-विरोधी पहलू इस प्रकार हैं:

क) एनईपी 2020 शिक्षा के निरंकुश बाज़ारीकरण, निजीकरण और कॉरपोरेटीकरण की एक परियोजना है। इसमें (i) शुल्क वृद्धि और सरकारी स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों से भी छात्रवृत्ति और वजीफा बंद करना; (ii) सरकारी सहायता-प्राप्त संस्थानों की फ़ंडिंग बन्द करना, (iii) शिक्षा में ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ व्यवस्था यानी व्यावसायीकरण का विस्तार करना; और, (iv) ‘सार्वजनिक परोपकारी भागीदारी’ (पीपीपी) के नाम पर निजी एजेंसियों और बहुसंख्यक और धार्मिक-सांप्रदायिक संगठनों को सार्वजनिक धन की हेराफेरी करना शामिल हैं;

ख) यह इतिहास और अन्य शैक्षणिक विषयों को तोड़-मरोड़कर व दूसरे प्रशासनिक तरीक़ों से तालीम के सांप्रदायीकरण की परियोजना है जिसका मक़सद है जाति, धर्म, भाषा, जाति, लिंग, शारीरिक क्षमता के सभी सामाजिक पहलुओं में एक ख़ास विचारधारा का वर्चस्व स्थापित करना; और साथ ही उन सभी समृद्ध सांस्कृतिक, भाषाई, दार्शनिक, धार्मिक और नस्लीय विविधताओं को दबाना जो हिंदुत्व समरूपता के नकली चरित्र को उजागर करती हैं;

ग) यह राज्यों के संवैधानिक संघीय अधिकारों, विश्वविद्यालयों, कॉलेजों और अनुसंधान संस्थानों सहित शैक्षणिक संस्थानों की स्वायत्तता और शिक्षकों व छात्रों के लोकतांत्रिक अधिकारों के खिलाफ तीव्र केंद्रीकरण और नौकरशाहीकरण की परियोजना है;

घ) यह सामाजिक अन्याय और भेदभाव को आगे बढ़ाने की परियोजना है, क्योंकि यह आरक्षण पर चुप है, लेकिन तथाकथित “योग्यता” के नाम पर अभिजात्य वर्ग को बढ़ावा देता है; और उत्पीड़ित व हाशिए पर धकेले गए वर्गों के लिए महज़ कौशल शिक्षा और/या ऑनलाइन शिक्षा की व्यवस्था करता है; और स्कूल स्तर पर ही दोहरे (निम्न व उच्च स्तर के) पाठ्यक्रम शुरू करता है;

ई) यह ‘संस्था के प्रति प्रतिबद्धता’ और ‘नेतृत्व गुणों’ के नाम पर शिक्षा प्रणाली में ‘स्वयंसेवकों’ की पैठ बनाने की परियोजना है। यह कदम संविदा नियुक्तियों (जैसे, विश्वविद्यालयों में ‘प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस’ की नियुक्ति के लिए यूजीसी दिशानिर्देश) और आरक्षण जैसे सामाजिक न्याय की नीतियों और वरिष्ठता व अकादमिक साख को दरकिनार करके उठाए जा रहे हैं ताकि सत्ता पक्ष और उसकी विचारधारा के क़रीब के लोगों को संस्थानों में भरा जा सके।

5. नई आर्थिक नीति के आने के बाद जिस तरीके से सार्वजनिक स्कूली व्यवस्था एक दम तहस नहस कर दी गयी और उसकी जगह प्राइवेट स्कूलों का एक जंजाल खड़ा कर दिया गया। लेकिन हायर एजुकेशन का सार्वजनिक मॉडल अभी तक इससे बचा हुआ था. तो क्या अब NEP 2020 के बाद हायर एजुकेशन का सरकारी व्यवस्था भी ख़त्म कर दी जाएगी और उसकी जगह प्राइवेट यूनिवर्सिटीज का तंत्र खड़ा हो जायेगा?

## नई आर्थिक नीतियों के आने के बाद उच्च शिक्षा में भी बदहाली का नीतिगत कार्यक्रम चलाया गया है। मिसाल के लिए, विश्वविद्यालयों में स्व-वित्त पोषित कार्यक्रमों की शुरुआत वग़ैरह। इसके अलावा, सेमेस्टर प्रणाली, चार-वर्षीय स्नातक कार्यक्रम आदि जैसी चीज़ें भी लाई गई थीं। विश्व व्यापार संगठन में भी उच्च शिक्षा को वैश्विक बाज़ार के लिए खोलने का प्रस्ताव था लेकिन भारी विरोध की वजह से पिछली सरकारों ने वह नहीं किया। नई शिक्षा नीति दूसरे तरीक़ों से इस दिशा में जाने के दरवाज़े खोलती है। निजी संस्थानों को बढ़ावा देना, विदेशी विश्वविद्यालयों के लिए दरवाज़े खोलना वग़ैरह इसमें शामिल हैं। इसके अलावा, सरकारी संस्थानों की फ़ंडिंग में कटौती, छात्रवृत्तियों में कटौती आदि जैसे उपाय असल में उच्च शिक्षा में भी निजीकरण की रफ़्तार को तेज़ करने के तरीक़े हैं जो नई शिक्षा नीति में प्रस्तावित हैं।

6. अगर ऐसा होता है तो इसका सामाजिक और आर्थिक स्तिथि से हाशिये के समुदायों से आने वाले लोग जैसे कि दलित, आदिवासी,मुस्लिम और महिलाये  क्या इससे  विशेष रूप से प्रभावित होंगी. हाँ तो कैसे?

## देश के उत्पीड़ित तबकों के लगभग नब्बे फ़ीसदी बच्चे पहले भी उच्च शिक्षा से बाहर थे। ऐसे में ज़ाहिर है कि निजीकरण, फ़ीस बढ़ोतरी, छात्रवृत्तियों में कटौती वग़ैरह जैसे कदमों से उनके लिए उच्च शिक्षा में दाखिल हो पाना और भी मुश्किल हो जाएगा। जो इसमें दाखिल हो भी जाएँगे वे ‘मल्टिपल एग्ज़िट’ जैसी व्यवस्थाओं की वजह से डिग्री पूरी करने से पहले ही विश्वविद्यालय से बाहर हो जाएँगे। तो सारा तंत्र जो है वह पहले से ही हाशिए पर धकेले गए तबकों को और बाहर धकेलने के लिए तैयार किया जा रहा है। 

7. आपका कहना है कि NEP 2020 से शिक्षा का नीजिकरण और बाजारीकारण बड़ेगा लेकिन मध्यमवर्ग का ज्यादा तर हिस्सा नीजीकरण के पक्ष में ही खड़ा नजर आता है । मौलिक रूप से नीजीकरण को सही मानता है तो ऐसे में आप कैसे शिक्षा के नीजीकरण के खिलाफ आदोलन खड़ा करेंगे? उस परसेंप्शन के खिलाफ कैसे लड़ेंगे? क्योंकि मध्यम की तादात सबसे ज्यादा है।

##  मध्य वर्ग का बड़ा तबका निजीकरण के पक्ष में खड़ा दिखता है क्योंकि सरकारी स्कूलों को देश की सरकारों ने पिछले तीन-चार दशकों की मेहनत से बरबाद किया है। यह एक पहलू है। एक और पहलू यह भी है कि तमाम निजीकरण के बावजूद आज भी एम्स, आईआईटी, आईआईएम, जेएनयू जैसे संस्थानों की जो साख है वह किसी निजी संस्थान की नहीं है। यह सही है कि निजीकरण के पक्ष में एक वैचारिक माहौल प्रचार तंत्र के ज़रिए खड़ा किया गया है जिससे लड़ना आसान नहीं वह भी कथित मध्य वर्ग के भरोसे जिसका अधिकांश देश की शोषक जातियों से आता है। शिक्षा के निजीकरण के ख़िलाफ़ सबसे मुकम्मल लड़ाई देश के उत्पीड़ित तबकों के लोग ही करेंगे। हमारी कोशिश है उन्हीं के बीच सांगठनिक काम को बढ़ावा देना। मध्य वर्ग में भी जो भी थोड़े जागरुक व संवेदनशील लोग हैं उन तक आंदोलन की पहुँच को बढ़ाने का काम भी हमारा एक कार्यभार है। यह सब आसान नहीं है लेकिन हमारी कोशिश जारी है।

8. NEP 2020 का जो लोग विरोध कर रहें हैं उनमे से ज्यादातर लोगों के विरोध का एक कारण ये भी है कि NEP 2020 से सोशल साइंस और humanities के विषयों से संबंधित पढ़ाई लिखाई एक तरीके से बंद हो जाएगी और हमारी यूनिवर्सिटीज सिर्फ टेक्निकल एजुकेशन का सेंटर बनकर रह जाएगी। इस सवाल को आप कैसे देखते हैं. क्या ऐसा सभव है? और अगर ऐसा होता है तो इसके क्या खतरे होंगे?

## नई शिक्षा नीति और मौजूदा केन्द्र सरकार की जो आम दिशा है उसमें यह साफ़ है कि चाहे सामाजिक विज्ञान हो या भौतिक विज्ञान, ज्ञान के बुनियादी मसलों पर गम्भीर काम को तरजीह नहीं दी जा रही है। सामाजिक विज्ञान के लिए जो हमारे प्रतिष्ठित केन्द्र थे, विश्वविद्यालय व शोध संस्थान, उनमें सत्ता के चाटुकार क़िस्म के लोगों को भर दिया गया है। कोई गम्भीर शोध होने की सम्भावनाएँ कम होती जा रही हैं ख़ासकर अगर विषय सरकार के एजेंडा से अलग हो तो। विज्ञान में हालत पहले भी अच्छी नहीं थी। सार्वजनिक फ़ंडिंग की कटौती से यह और भी गम्भीर होने जा रहा है। भारतीय ज्ञान वग़ैरह जैसे फ्राड के नाम पर आईआईटी जैसे संस्थानों में भी मूर्खतापूर्ण विषयों पर शोध करवाए जा रहे हैं। इन सबका ख़तरा यह होगा कि देश में ज्ञान निर्माण की पहले से ही कमज़ोर प्रक्रिया और धीमी हो जाएगी। पश्चिमी ज्ञान पर हमारी निर्भरता बढ़ेगी। ज्ञानात्मक उपनिवेशीकरण की प्रक्रिया मज़बूत होगी।

9. NEP 2020 में M. Phil को हटा दिया गया है. लेकिन काफी एक्सरट्स कह रहें है कि पीएचडी के लिए M. Phil काफी जरुरी होता है. क्या इसके हटने से यूनिवर्सिटीज में होने वाले अनुसाधन के काम काफी प्रभावित होंगे ? खास कर humanities और सोशल साइंसेस के विषयो पर होने वाले रिसर्च!

##  हमारे यहाँ विश्वविद्यालयों में शोध के शिक्षण पर ध्यान उतना नहीं दिया जाता है। ऐसे में M. Phil से विद्यार्थियों को मदद मिलती है। तो एक तरफ़ स्नातक व स्नातकोत्तर स्तर पर शिक्षण को बेहतर नहीं बनाया जा रहा है और दूसरी तरफ़ एमफिल ख़त्म किया जा रहा है। ज़ाहिर है इससे अनुसंधान में पिछड़ने का ख़तरा तो है। 

10. क्या NEP 2020 आईडिया ऑफ़ यूनिवर्सिटी की मूल अवधारणा के एकदम खिलाफ है? अगर हाँ तो कैसे?

## विश्वविद्यालय की जो अवधारणा है वह एक ऐसी जगह की रही है जहाँ ज्ञान का, विचारों का, अलग-अलग दृष्टिकोणों का खुला लेन-देन होता हो, गम्भीर विचार-विमर्श की गुंजाइश हो, ज्ञान निर्माण की उचित स्थितियाँ हों। और इसमें भागीदारी लोकतांत्रिक उसूलों की बुनियाद पर टिकी हो। नई शिक्षा नीति इस खुलेपन के ख़िलाफ़ है। इसमें उच्च शिक्षा का ज़बरदस्त केन्द्रीकरण किया गया है। शिक्षकों, विद्यार्थियों को, उनकी स्वायत्तता को और इस तरह संस्थान की अकादमिक स्वायत्तता को ख़त्म कर दिया गया है। यह नीति सरकार को संस्थानों पर औपचारिक तौर पर नियंत्रण बनाने की ताक़त देती है।

11. आपके आगे का एक्शन प्लान क्या है। इस अभियान को जनता में व्यापक बनाने के लिए आप क्या आगे क्या करने वाले हैं?

##   नई शिक्षा नीति के ख़िलाफ़ हर राज्य में व्यापक मुहिम खड़ा करने की तैयारी है। इसे आम चुनाव में चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश भी है।

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