किसान मुद्दों के सन्दर्भ में किसान नेता शशिकांत का साक्षात्कार मानस भूषण द्वारा

1. 26,27 और 28 नवंबर को किसानों ने महापड़ाव क्यों किया था। किन मांगो को लेकर हुआ?

उत्तर  –  26 नवंबर 2020 को ही हमने 13 महीने का आंदोलन किया था और जब 19 दिसम्बर को प्रधान मंत्री ने तीनों कृषि कानूनों के रद्द होने का ऐलान किया तब हम उस जीत के साथ लौटे लेकिन हमारी बाकी मांगे अधूरी रह गयी थी जैसे, msp के गाँरंटी का क़ानून है या जो किसानों पर केस दर्ज थे वो अभी तक वापिस नहीं हुए हैं, लखीमपुर में अजय मिश्र टैनी के इस्तीफे की मांग है. तो हमारी इन ही लंबित मांगों को लेकर हम ने सरकार को एक अलार्म दिया सरकार को कि अगर हमारी इन मांगों की और ध्यान नहीं दिया गया तो हम दुबारा पहले जैसा ही आंदोलन फिर एक बार खड़ा करेंगे. तो उसी के तहत ये तीन दिन का महापड़ाव किया गया. इससे पहले 24 अगस्त को दिल्ही के ताल कटोरा स्टेडियम में किसानों ने मजदूरों के साथ मिलकर एक प्रोग्राम किया था जिसमे ये ऐलान किया गया था कि अब किसान और मजदूर मिलकर साझी लड़ाई लड़ेंगे। तो उसी के मध्य नजर किसान और मजदूरों ने बड़ी संख्या में देश की राजधानीयों में ये तीन दिनों का महापड़ाव किया जिसमे पंजाब, हरयाणा, UP, कर्नाटक लगभग 24 राज्यों ये महापड़ाव हुआ जिसमें बड़ी संख्या में किसानों और मजदूरों ने हिस्सा लिया .

 

2. अब तक जो किसान आंदोलन उत्तर भारत के कुछ ही राज्यों में सीमित था क्या अब वो व्यापक हुआ है? खासकर दक्षिण भारत में?

उत्तर – हाँ, पहले जब आंदोलन हुआ तब सबसे पहले पंजाब के किसान दिल्ली आये. उसके बाद हरयाणा, वेस्टर्न UP और राजस्थान के किसान शामिल हुए। क्यों वो कोरोना का समय था इस लिए ट्रैन या अन्य साधन बंद थे जिस कारण दूर दराज के किसान उतनी संख्या में शामिल नहीं हो सके. कुछ व्यावहारिक कारणों के चलते ये सिर्फ पंजाव, हरियाणा, राजस्थान और वेस्टर्न UP का आंदोलन बन के रह गया था. लेकिन अब दो सालों में किसान आदोलन पुरे देश में फ़ैल गया है. कर्नाटक में लगभग 50 हजार से ज्यादा किसानों ने तीन दिनों के प्रदर्शन में भाग लिया. महाराष्ट्र में किसान बड़ी संख्या में शामिल हुआ. तमिलनाड़ु में तेलंगाना में, और पूर्वी उत्तर के राज्यों जैसे कि मणिपुर, त्रिपुरा, मेघालय तक में प्रदर्शन हुआ. हिमाचल में हुआ. गोवा में हुआ तो लगभग 24 राज्यों में ये महा पड़ाव हुआ.

3. किसान आंदोलन के आगे कि रणनीति क्या होंगी? क्या 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले पहले जैसा कोई आदोलन दुबारा हो सकता है जैसे कि बहुत से किसान नेता दावा कर रहें हैं?

उत्तर: देखिए मिशन UP पहले जब किया था तो जहाँ जहाँ किसान आदोलन मजबूत था वहां वहां भाजपा को काफ़ी दिक्क़तें हुयी थी जितने के लिए. भाजपा को काफ़ी हतकंडे अपनाने पड़े थे, UP में भाजपा के जीत के बड़े कारण जो हैं वह ये है कि विपक्ष की एकता न हो पाना, और जमीन पर उनके कार्य कर्ताओं की कमी. उनके पास केडर नहीं हैं देश में सिर्फ भाजपा और कुछ वामपंथी पार्टियों के अलावा और किसी के पास भी केडर नहीं बचा है. तो ये एक समस्या है. अगर 2024 के लोकसभा चुनावों तक केंद्र की मोदी सरकार किसानों की और मजदूरों की मांगे नहीं मानती हैं तो हम ये संघर्ष जारी रखेंगे. अब अगर हाल के ही राज्य चुनावों को देखे तो तो ये रिकॉडेड है कि कांग्रेस का चारों राज्यों में कुल वोट ज्यादा है तो इसका मतलब जनता भाजपा को हराना चाहती है अगर विपक्षी एकता हो जाये और ये दल ज़मीन पर अपना केडर बना ले तो भाजपा को हराया जा सकता है. और रही बात हमारे जैसे जनवादी लोगों की तो लगातार संघर्ष जारी है 2024 में संघर्ष को और तेज करेंगे. आंदोलन के लिए रणनीति बनाएंगे.

4. इस बार आदोलन का रूप पहले जैसा ही रहेगा दिल्ली घेरों या कोई अलग रूप देखा जा सकता है.

उत्तर: देखिए इतिहास में कोई भी आंदोलन अपने आप को दोहराता नहीं है. कुछ आंदोलन पूर्व निर्धारित होते हैं, कुछ काल और समय चक्र निर्धारित करता है. हम पिछली बार दिल्ही में आये थे केवल दो दिनों का सांकेतिक प्रदर्शन करने, लेकिन सरकार ने जिस तरह की परिस्थिति बना दी कि रास्ते में गड्डे खोद दिए, कांटे बिछा दिए तो इस कारण आंदोलन लम्बा खींच गया. तो तय तो कुछ करेंगे लेकिन ये सरकार के रवैय पर भी निर्भर करेगा कि स्वरुप क्या हो, अभी हमें आंदोलन को मीडिया, बैठक, सम्मलेन, सभाओ से बढकर गाँव गावों तक पहुँचाना होगा. सरकार के पीछे कॉर्पोरेट की ताकत है और कोरपोरेट ही मजदूर और श्रमिक की नीतियों को नियंत्रित करती हैं तो हमें इनके खिलाफ वैसे ही आंदोलन करना होगा जैसे पंजाब में हमें देखने को मिला जहाँ रिलाइंस के टावरों, रिलाइन के पेट्रोल पम्प को बंद किया गया. तो हमें दुबारा वैसा ही आंदोलन करना पड़ेगा जहाँ सीधा कोरपोरेट पर हमला हो. इस लिए अब कोरपोरेट के खिलाफ हम हमारे संघर्ष को तेज करेंगे.

5. पंजाब में किसान आंदोलन के बाद आपस में विरोध देखने को मिला था. कुछ किसान सांगठनों ने सीधा चुनाव भी लड़ा कुछ का कहना था कि हम सिर्फ आंदोलम ही करेंगे. तो अब क्या स्तिथि है क्या अब किसान सांगठनों में आपस में कोई वैचारिक एकता बन पायी है?

उत्तर: देखिये ये द्वन्द कोई नया नहीं है. चुनावों के माध्यम से बदलाब और जनता की भागीदारी से जन आंदोलन के जरिये बदलाव. ये दो रास्ते हमेशा से रहें हैं और ये ही आंदोलन के दौरान भी थे. लेकिन अभी जो फासिवाद का दौर है इससे जन आंदोलन के जरिये ही lada जा सकता है ये पंजाब के चुनावों ने भी सिद्ध कर दिया और ये अभी के परिणाम से भी ये ही सिद्ध होता है. आज जनता महगाई से त्रस्त है. शिक्षा और चिकित्सा मँहगी हो गयी है. रोजगार का बुरा हाल है और फिर भी ये लोग चुनाव जीत रहें हैं, तो इससे यही साबित होता है कि इस स्तिथि को जन आंदोलन के जरिये ही बदला जा सकता है और जनता के लिए कुछ हासिल किया जा सकता है. क्यों कि कोई भी पार्टी हो सब ही कोरपोरेट की सेवा में लगे हुए हैं. तो ऐसे में किसानों और मजदूरों के पास आंदोलन ही विकल्प बचता है.

6. अभी आपने बोला कि सब ही पार्टियों की नीतियाँ कोरपोरेट परस्त ही रही हैं. लेकिन किसान आंदोलन का अभी का जो मुख्य नारा है “पनिश BJP और कोरपोरेट खेती छोड़ो ” तो जब सब की ही नीतियाँ कोरपोरेट परस्त रही हैं तो सिर्फ भाजपा को ही क्यों घेरा जा रहा है? क्या सारी ही पार्टियों को नहीं घेरना चाहिए?

उत्तर: देखिये इसमें अंतर करना पड़ेगा आरएसएस जो है वो एक फासिवादी संगठन है. जो पुरे संविधान को ही बदल रही है बुर्जआ लोकतंत्र को बदल रही है. ये फासिवादी ताकत बुर्जआ लोकतंत्र और इसके मूल्य को भी खत्म कर रही है। ये इस तरह के नियम और क़ानून ला रहें हैं जिसमें कोर्ट और बाकी संवेधानिक संस्थाओं का कोई मूल्य नहीं रह जाता है. तो सयुंक्त किसान मिर्चा और उससे जुड़े किसान संगठनों ने ये निर्णय लिया है कि पहले ये जो फासिवादी ताकत है जो कोरपोरेट द्वारा पोषित है पहले उसके खिलाफ लड़ना पहली प्राथमिकता है.ये ही ताकत जनता को धर्म के नाम पर जाति के नाम पर बाटने का काम कर रही हैं और ये जब हो रहा है जब व्यवस्था जनता को न शिक्षा दे पा रही है न रोजगार तो ऐसे में इसके लड़ना हमारी पहली प्राथमिकता है और उन तमाम अन्य पार्टियों के साथ एक व्यापक मोर्चा बनाना ये ही अभी संघर्ष का एक मात्र रास्ता है।

7. अभी कुछ दिनों पहले किसान नेता युद्धवीर सिंह के खिलाफ लुक आउट नोटिस जारी किया. क्या किसान और किसान नेताओं को सरकार के द्वारा अभी भी परेशान किया जा रहा है क्या?

उत्तर: सरकार किसानो के साथ दुश्मनों जैसा व्यवहार कर रही है. भाजपा किसानो को जनता का एक वर्ग मानने के बजाय दुशमन मान रही है. अभी कुछ दिनों पहले हरियाणा के मंत्री जे पी दलाल का बयान था कि ‘ जो किसान आंदोलन कर रह हैं ये वो लोग हैं जिनकी बहुयें उनको छोड़ छोड़ के भाग रही हैं’ ऐसे ही किसानों को थानो से नोटिस जा रहें हैं जो लोग किसानों को आर्थिक सहयोग देते हैं या समर्थन में साथ खड़े होते हैं उन तक को परेशान किया जा रहा है. अभी up में सिविल सोसाइटी के के लोगों को nia ने उठा लिया था क्यों कि उनकी किसान आंदोलन में भागीदारी थी. तो जो भी व्यक्ति किसान आंदोलन के पक्ष में दिख रहा है उनको परेशान करने का काम ये सरकार लगातार कर रही है. लेकिन मुँह की भी खा रही है. तो इसके खिलाफ लगातार संघर्ष करेंगे. अभी पंजाब में जो किसान सगठन अलग हुए थे वो भी फिर से एकजुट हो रहें हैं. राजेवाल जी ने स्वम बोला कि अब समय है एक होना का हम अपने छोटे छोटे मतभेद भुला कर एक हो. ऐसे ही ट्रेड यूनियन भी अब किसानों के साथ मिल गयी हैं तो ये सब के चलते किसान आंदोलन और ज्यादा मजबूत होगा.

8. जैसे किसान आंदोलन ने मजदूरों को साथ लेकर आंदोलन को व्यपाक बनाया है तो क्या आगे आने वाले समय में किसान आंदोलन एक ऐसा प्लेटफॉर्म बनेगा जिसमें उन तमाम आंदोलन को शामिल किया जा सके जो अपनी अपनी मांगों को लेकर लड़ रहें हैं जैसे बेरोजगार युवा , छात्र या अन्य वर्ग और एक व्यापक मोर्चा बनाया जा सके?

उत्तर: देखिये सामाजिक रूप से दो ही वर्ग हैं एक मेहनत कश वर्ग जो ज़मीन पर उत्पादन करता है,और अपने उत्पादन को बाजार में बेचता है और दूसरा श्रमिक वर्ग जो अपने श्रम को बेचता है. इन दोनों में महिलाएं भी शामिल है तो इस लिए महिलाओं के सवाल भी इससे अछूते नहीं हैं. और इसी तरह से यवाओं के सवाल भी क्यों कि बड़ी संख्या में किसान मजदूर अपने बच्चों को पढ़ाता है और चाहता है कि उसे किसी तरह से नौकरी मिल जाये. और जब वो बेरोजगारी के खिलाफ लड़ता है तो स्वाभाविक रूप से किसान मजदूर तो इसके साथ जुड़ता ही है. इस लिए ये जुड़ाव तो स्वाभाविक ही जुड़ जायेगा. और तमाम वर्ग किसान आंदोलन से जुड़ जायेंगे।

9. 2020 के किसान आंदोलन में काफ़ी वैचारिक स्पष्टता देखने को मिली जैसे सीधे कोरपोरेट के खिलाफ हमला करना या निजीकरण के खिलाफ एक व्यापक मुहिम चालाना. इसका मुख्य कारण क्या था?

उत्तर: देखिए वैचारिक स्पष्टता का कारण 2000 के बाद का दौर रहा है जिसमें धीरे धीरे ये स्पष्टाता विकसित हई और इस कदर विकसित हुयी जिसमें वामपंथी या धुर वामपंथी धारा के लोग वो लोग जो धर्म को अफीम मानते थे वो धार्मिक लोगों के साथ सिघू बॉर्डर पर आंदोलन कर रहें थे. एक जो लम्बा दौर रहा है जिसने किसानो की ज़मीनों की लूट शिक्षा, स्वास्थ्य रोजगार का निजीकरण हो जिसमें पढ़ाई या स्वास्थ्य पाना कितना मंहगा हो गया है तो ये ही वो सब कारण रहें हैं जिसके कारण ये किसान आंदोलन एक अनोखा आंदोलन बन कर निकला. और ये इस बुर्जआ लोकतंत्र को एक जनवादी लोकतंत्र में बदलने की दिशा में एक मार्ग प्रसस्त करेगा. अब देखते हैं कि कहाँ तक सफल हो पाते हैं. ये एक लम्बी लड़ाई है पीढ़ियों की लड़ाई है 200 साल अंग्रेजो से लड़े उसके बाद अपनी ही देश की सरकारों से लड़े तो ये तो एक लम्बा रास्ता है.

श्री शशिकांत,
किसान नेता,
सयुंक्त किसान मोर्चा

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *