8 जनवरी को राजस्थान के नागौर जिले से कुछ तस्वीरें और वीडियो देशभर में वायरल हुए, जिनमें पुलिस किसानों को लाठियों से मारती हुई दिख रही थी।
आपको बता दें कि यह पूरा विवाद किसानों की जमीन के उचित मुआवजे को लेकर खड़ा हुआ था। JSW सीमेंट कंपनी ने उस क्षेत्र में अपना सीमेंट प्लांट लगाने के लिए किसानों की जमीन 8 लाख रुपये प्रति बीघा के हिसाब से खरीदना शुरू किया, लेकिन किसान इतनी कम दर पर अपनी जमीन देने को तैयार नहीं थे। वे 15 लाख रुपये प्रति बीघा से कम दर पर अपनी जमीन नहीं देना चाहते थे और इसी को लेकर सारा विवाद शुरू हुआ। इस लाठीचार्ज में करीब 35 किसान बुरी तरह घायल हुए, जिनमें महिलाएं और बुजुर्ग भी शामिल थे। एक–दो दिन तक इस घटना की कवरेज नेशनल मीडिया में भी हुई। अब वहां के ताज़ा हालात यह हैं कि 77 किसानों पर पुलिस ने गैर–जमानती धाराओं में मामला दर्ज किया है, जिसमें 27 नामजद और बाकी अज्ञात किसान व ग्रामीण शामिल हैं। इनमें 13 महिलाएं भी शामिल हैं, जिन पर धारा 109 जैसी गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज किया गया है। घटना के बाद RLP सांसद हनुमान बेनीवाल ने घायल किसानों से मुलाकात की और घटनास्थल का दौरा किया। यह इलाका हनुमान बेनीवाल के संसदीय क्षेत्र में ही आता है, इसलिए उन्होंने पीड़ित किसानों से मिलकर बड़े आंदोलन की चेतावनी दी है। हालांकि प्रदर्शनकारी किसानों और JSW कंपनी के बीच औपचारिक रूप से एक समझौता हुआ है, लेकिन ग्रामीणों का आरोप है कि यह समझौता पुलिस और प्रशासन द्वारा जबरन करवाया गया था।
आंदोलन का नेतृत्व कर रहे अनिल बारूपाल के अनुसार: “8 जनवरी को पुलिस लाठीचार्ज के बाद एडिशनल पुलिस अधीक्षक सुमित कुमार और SDM गोविंद भींचर लगभग 20 किसानों को कंपनी अधिकारियों से वार्ता कराने के लिए नागौर पंचायत भवन में ले गए, जहाँ किसानों पर समझौते के लिए दबाव बनाया गया। उन्हें जीवनभर जेल में डालने की धमकी दी गई और जबरन 2 माह की अवधि के लिए समझौते पर हस्ताक्षर करवा लिए गए।“
आंदोलन की पृष्ठभूमि
फौरी तौर पर देखने पर यह मामला 8 जनवरी या उससे कुछ महीने पहले का लग सकता है, लेकिन किसान अगस्त 2024 से ही इस मुद्दे को लेकर स्थानीय प्रशासन और कंपनी को आगाह कर रहे थे। वे समय–समय पर धरने और प्रदर्शनों के जरिए अपना विरोध दर्ज करवा रहे थे। दरअसल, इसकी पटकथा 2023 में शुरू हुई थी। फरवरी 2023 में JSW कंपनी द्वारा एक अधिसूचना जारी की गई, जिसमें बताया गया कि कंपनी नागौर के जायल विधानसभा क्षेत्र में एशिया का सबसे बड़ा सीमेंट प्लांट लगाने जा रही है। इस योजना के तहत कंपनी जायल क्षेत्र के गांवों की 194.556 हेक्टेयर जमीन किसानों से लेगी। 4998 करोड़ रुपये की लागत वाले इस प्रोजेक्ट के लिए कंपनी ने सरासनी और जिंदास गांव की ज़मीनों को 8 लाख रुपये प्रति बीघा की दर से खरीदना शुरू किया। लेकिन किसान इस कम दर पर अपनी जमीन देने के लिए राजी नहीं थे। उनकी मांग थी कि उन्हें कम से कम 15 लाख रुपये प्रति बीघा का मुआवजा मिलना चाहिए। इसी मांग को लेकर अगस्त 2024 में सरासनी गांव में किसानों का पहला धरना शुरू हुआ। इस धरने का असर यह हुआ कि कंपनी ने अपनी दर 8 लाख से बढ़ाकर 11 लाख रुपये प्रति बीघा कर दी। किसानों की एक और मुख्य मांग यह थी कि कंपनी अनुसूचित जाति के किसानों की ज़मीन नहीं खरीद रही थी, जिससे उन्हें शक था कि बाद में उनकी जमीन जबरन औने–पौने दामों में ले ली जाएगी। इसलिए किसानों की मांग थी कि सभी की जमीन को एक समान दर पर खरीदा जाए और जिन किसानों ने कम दर पर ज़मीन दी है, उन्हें भी भावांतर दिया जाए।
इसके अलावा किसानों की अन्य मांगें थीं:
· प्लांट लगने के बाद प्रत्येक परिवार के एक सदस्य को पक्की नौकरी दी जाए।
· कंपनी के CSR फंड को इसी क्षेत्र के विकास में खर्च किया जाए ताकि स्थानीय लोगों को लाभ मिल सके।
धरने के दौरान कई बार आंदोलनरत किसानों, प्रशासन और कंपनी के अधिकारियों के बीच वार्ता हुई, लेकिन कोई समाधान नहीं निकला। अगस्त और सितंबर के दौरान लगभग 12 किसानों पर मुकदमे दर्ज हुए। किसानों का यह भी आरोप है कि उन्हें डराने–धमकाने की कोशिशें की गईं ताकि वे धरना खत्म कर दें।
8 जनवरी की घटना
8 जनवरी को सुबह करीब 6 बजे भारी पुलिस बल सरासनी गांव के धरना स्थल पर पहुंचा। उस समय वहाँ केवल 6-7 किसान मौजूद थे। पुलिस ने जबरन धरना हटाने की कोशिश की। सूचना मिलते ही सरासनी, डेह, पीथसिया और अन्य गांवों के किसान धरना स्थल पर पहुंचने लगे। करीब 12 बजे तक पुलिस और ग्रामीणों के बीच टकराव चलता रहा। इस बीच पुलिस ने लाठीचार्ज किया, किसानों के खेतों में आग लगा दी और धरना स्थल को जबरन खाली करवा दिया। मामले को बढ़ता देख स्थानीय प्रशासन और कंपनी के अधिकारीयों ने किसानों से वार्ता कर 2 महीने का समय मांगते हूए धरना उठवा दिया। अब किसान दो महीने की अवधि का इंतजार कर रहे हैं।
अनिल बारूपाल ने इस पर जानकारी देते हूए बताया कि “हम दो महीने का इंतजार कर रहे हैं, क्योंकि हम पर दबाव डालकर प्रशासन ने जबरदस्ती कंपनी से समझौता करवाया। अगर हमारी मांगों पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई, तो हम दोबारा धरना लगाकर आंदोलन को मजबूत करेंगे।“ उस दिन धरने पर बैठे किसान ओमप्रकाश ने कंपनी के इशारे पर लाठीचार्ज करवाने की सम्भावना व्यक्त की है।उन्होंने इसपर बातचीत करते हूए हमें बताया कि–“यह पूरी घटना कंपनी के इशारे पर की गई थी। घटना से एक दिन पहले कंपनी के अधिकारियों ने कंपनी के द्वारा सरासनी गांव में खनन का कार्य शुरू करने हेतु पुलिस प्रशासन से सुरक्षा की मांग की थी। हमारा शक है कि खनन के बहाने भारी पुलिस बल बुलाया गया और हमारे धरने को समाप्त करवाया गया।“


3 मार्च को किसान महापंचायत का ऐलान
8 जनवरी की घटना के बाद राष्ट्रीय स्तर के किसान संगठन भी अब इस मामले को लेकर सक्रिय हो चुके हैं। क्रांतिकारी किसान यूनियन (डॉ. दर्शन पाल) ने किसानों पर हुए लाठीचार्ज की निंदा की और आंदोलनरत किसानों को समर्थन देने का ऐलान किया है। 2 फरवरी को KKU का 7-सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने नागौर के सरासनी गांव पहुंचकर धरनास्थल का दौरा किया। आंदोलनरत किसानों से मुलाकात की। ग्रामीणों और किसानों से सलाह-मशविरा कर 3 मार्च को उसी जगह पर किसान पंचायत करने का ऐलान भी किया है, जहाँ से पुलिस ने धरना जबरन हटवाया था।
KKU के राष्ट्रीय महासचिव शशिकांत ने बयान जारी कर कहा: “सरासनी में पुलिस दमन की इस कार्यवाही में मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन हुआ है। आंदोलन करने के संवैधानिक अधिकार का हनन किया गया। पुलिस प्रशासन ने बिना किसी पूर्व सूचना और किसानों से वार्ता किए बिना धरना जबरन समाप्त कराया। इस घटना के बाद भी कोई न्याय नहीं मिला।”
हम KKU की तरफ से मांग करते हैं कि:
• सभी किसानों को 15 लाख रुपये प्रति बीघा मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को पक्की नौकरी दी जाए।
• सीमांत और भूमिहीन किसानों को पुनर्वास पैकेज और नौकरी दी जाए।
• जिन किसानों से कम दर पर जमीन ली गई, उन्हें भी बाकी कम दी जाए।
• अनुसूचित जाति और सरकारी जमीन का भी समान दर से मुआवजा दिया जाए।
• किसानों पर दर्ज सभी फर्जी केस रद्द किए जाएं।
• जनवरी की पुलिस दमन की घटना में शामिल अधिकारियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाए।
मानस भूषण
स्वतंत्र पत्रकार