अलीगढ़ मॉब लिंचिंग सत्ता के दबाव में पुलिस कर्तव्य से विमुख
श्रमिक मुस्लिम युवक की वीभत्स हत्या पीयूसीएल, उत्तर प्रदेश

प्राककथन
नागिरक अधिकार संगठन (पीयूसीएल) की यह जाँच रपट बताती है कि समाजविरोधी साम्प्रदायिक शक्तियों ने अपनी खोयी हुई जमीन दोबारा हासिल करने के लिए गरीब और उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों पर अमानवीय सितम ढाने की योजना पर नये सिरे से काम शुरू कर दिया है। इन ताकतों को 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की जनता ने करारा झटका दिया है। इसका बदला लेने के लिए हिंदुत्ववादी हत्यारी जमात ने मुसलमान युवक फरीद उर्फ औरंगजेब को जिस तरह नशे में धुत हो कर डंडों, लोहे की छडों और लात-घूँसों से पीट-पीट कर जान से मारा है, वह मॉब लिंचिंग की उस साम्प्रदायिक टेक्नॉलोजी का ही उदाहरण है जिस पर इन तत्त्वों ने लम्बे अरसे से महारत हासिल कर रखी है। इस मॉब लिंचिंग का शिकार बने निर्दोष अल्पसंख्यकों की लम्बी सूची में फरीद के रूप में एक और नाम जुड़ गया है।
यह एक विडम्बना ही है कि इन हिंदुत्ववादियों की सरकार ने पिछली लोकसभा के आखिरी दिनों में 147 विपक्षी सांसदों को निष्कासित करने के बाद जिस नयी अपराध संहिता को अलोकतांत्रिक ढंग से पारित किया, उसमें मॉब लिंचिंग पर फॉसी की सजा का प्रावधान किया गया है। जाहिर है कि अब साम्प्रदायिक शक्तियाँ जब भी मॉब लिंचिंग करेंगी, उनके खिलाफ पुलिस कभी भी इस अपराध में रपट ही दर्ज नहीं करेगी। कानून अपनी जगह बना रहेगा, और मॉब लिंचिंग जारी रहेगी । अलीगढ़ के इस प्रकरण में भी पुलिस फरीद को डकैत बता कर साम्प्रदायिक हत्यारों को बचा रही है।
चुनाव नतीजे आने के बाद से ही साम्प्रदायिक शक्तियों के पैरोकार टीवी चैनलो और अन्य मीडिया मंचों पर कहते फिर रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी खास तौर से मुसलमानों के कारण पराजित हुई है। उनकी दलील यह है कि केवल मुसलमान समुदाय ही एक ऐसा वोटर है जो भाजपा को हराने वाले उम्मदीवार को संगठित हो कर वोट देता है। ये पैोरोकार दरअसल इस हकीकत को छिपाना चाहते हैं कि भाजपा की पराजय मुसलमानों की वजह से नहीं बल्कि हिंदू वोट न मिलने की वजह से हुई है। सही बात तो यह है कि हिंदुओं और मुसलमानों ने मिल कर भारतीय जनता पार्टी को सबक सिखाया है। यह चुनाव नतीजा हिंदू-मुसलमान एकता की बेहतरीन मिसाल है| चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री से लेकर सभी भाजपा प्रचारकों ने मुसलमानों के खिलाफ अनगिनत जहरीले भाषण दिये। वे चाहते थे कि हिंदुओं का भयादोहन करके वे मुसलमान विरोधी प्रतिक्रिया पैदा करें, और हिदुंओं को साम्प्रदायिक आधार पर वोट डालने की तरफ ले जाएँ। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। बहुतेरे हिंदू समुदायों ने (खासकर दलित और ओबीसी समुदायों ने) मुसलमानों के खिलाफ किये जा रहे नफरती प्रचार पर यकीन करने से इंकार कर दिया। नतीजा सामने है।
पीयूसीएल की यह जाँच-रपट चुनाव-उपरांत की परिस्थितियों में नागरिक अधिकार आंदोलन की मुखर दावेदारी की जरूरत को भी नये सिरे से रेखांकित करती है। हमें ध्यान रखना चाहिए कि पिछले दस साल भारत में अघोषित आपातकाल के रहे हैं। मीडिया स्पेस पर कब्जा करके और जनांदोलनों को विकास-विरोधी बता कर न केवल विपक्ष का दमन किया गया है, बल्कि किसी भी तरह के प्रतिरोध की अभिव्यक्ति को संदेह की नजर से देखने का नियोजित माहौल बनाया गया है | साम्प्रदायिक शक्तियाँ एक आज्ञापालक समाज की रचना करना चाहती हैं जिसके तहत वोटर केवल चुनाव के दौरान वोट डाल कर घर पर बैठें और दो चुनावों के बीच किसी भी तरह की प्रतिरोध की राजनीति पर ध्यान न दें। यह एक ऐसा प्रोजेक्ट है जिस पर बहुत कम लोगों का ध्यान गया है, पर पिछले दस साल ऐसी ही ओबीडिएंट सोसाइटी की जमीन बनाने में खर्च किये गये हैं | साम्प्रदायिक तत्त्वों को झटका लगने के बावजूद यह खतरा अपनी जगह कायम है। यह हमारे राजनीतिक समाज को घोषित आपातकाल से भी बुरी और अधिकारवंचित हालत में पहुँचा देगा। इसलिए यही समय है कि नागरिक समाज की शक्तियाँ निकल कर आएँ और आज्ञापालक समाज बनाने के इस प्रोजेक्ट को विफल बनाने के लिए काम करें| इतिहास बताता है कि नागरिक अधिकारों का आंदोलन इस समाज की आधारशिला का निर्माण करता है। जनता जितना अधिकार सम्पन्न होगी, जितना उन अधिकारों के प्रति सचेत होगी, और जितना अपने अधिकारों की दावेदारी के लिए संघर्ष करेगी, लोकतंत्र उतना ही समृद्ध होगा। साम्प्रदायिक शक्तियाँ उतनी ही अकेली पड़ती चली जाएँगी। इस जरूरत की रोशनी में मैं पीयूसीएल को इस जाँच-रपट के लिए बधाई देता हूँ। अभी ऐसे ही अनगिनत प्रयासों की निकट भविष्य में आवश्यकता पड़ेगी |

घटना का विवरण
उत्तर प्रदेश के जिला अलीगढ़ के शहर के मध्य थाना गांधी पार्क अन्तर्गत इलेक्ट्रॉनिक मार्केट के नाम से विख्यात मोहल्ला ‘मामू-भांजा’ में 18 जून की रात लगभग 10 बजे की घटना है। नशे में धुत्त कुछ लम्पट युवकों ने एक श्रमिक को लात-पघूंसों, लाठी-डंडों और भोथरे हथियारों से बड़ी बेरहमी के साथ इस कदर पीटा कि उसकी जान चली गई।
मृतक श्रमिक का नाम फरीद था। उसे औरंगजेब भी कहते थे। वह मामू भांजा घटनास्थल से करीब 1 किमी. दूरी पर घास की मंडी का रहने वाला था। पुलिस उसे करीब सवा 11 बजे मलखान सिंह जिला अस्पताल ले गई थी, जहां डाक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया था। घटना के समय मौके पर किसी पड़ोसी ने वीडियो बनाकर वायरल कर दिया। इसी वीडियो को देखकर परिवारीजन और विपक्षी पार्टियों सपा और बसपा के नेता और कार्यकर्ता बड़ी संख्या में अस्पताल के इमरजेंसी के सामने पहुंच गए | वे हत्या के दोषियों के खिलाफ कार्यवाही के बाद ही पोस्टमार्टम करने और जनाजा उठाने की शर्त पर अड़ गए | हंगामा बढ़ते देख पुलिस ने 19 जून की सुबह 4 बजकर 56 मिनट पर मृतक के भाई जकी की तहरीर पर प्राथमिकी दर्ज कर दी। 10 ज्ञात और 10-12 अज्ञात लोगों के खिलाफ 302 का हत्या का केस दर्ज कर लिया।
पुलिस द्वारा सबेरे ही चार आरोपियों को गिरफ्तारी किया, तब जाकर पोस्टमार्टम को परिजन तैयार हुए। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के लिए मृतक फरीद के 22 जगह चोटों के निशान, तीन पसलियां टूटी थीं, फेफड़े डेमेज हो गए थे और सिर पर चोट लगने से खून का थक्का जम गया था।
आरोपियों की गिरफ्तारी की खबर पाते ही परिवारजनों के साथ भाजपा और संघ नेताओं ने जबरन बाजार बंद करा दिया और रेलवे रोड के पास धरने पर बैठ गए | भारी पुलिस बल तैनात होने के बावजूद उन्मादी भीड़ नारेबाजी करते हुए मुस्लिम बाहुल्य इलाके ऊपरकोट की ओर बढ़ गई | जहां पुलिस पर एक-दो पत्थर उछाले जाने की खबरें भी चर्चा में थी। सत्ता पक्ष के नेताओं के सामने नतमस्तक होकर पुलिस अधिकारियों ने आगे और आरोपियों की गिरफ्तारी न करने और हत्या के केस की धाराओं में मारपीट की धाराओं में बदलने का आश्वासन दिया। तब जाकर भाजपा नेताओं ने धरना-प्रदर्शन और हंगामा बंद किया।
घटना के 10 दिन बाद जेल में बंद हत्यारोपी की परिवारी महिला की लिखित शिकायत पर मृतक फरीद सहित कुल सात नामजद और अन्य दो अज्ञात के खिलाफ पुलिस ने क्रास एफआईआर दर्ज की। जिसमें मृतक सहित सभी नामजदों पर लूट और बलात्कार के प्रयास का आरोप लगाया गया है। इसी दौरान मृतक के परिवार के पक्ष में पैरवी कर रहे सपा नेता के खिलाफ भी पुलिस ने मामला दर्ज किया है। घटना के बाद से लगातार भाजपा, संघ तथाकथित हिन्दूवादी संगठन और व्यापारी संगठन का एक हिस्सा जो भाजपा समर्थक है, बैठक-प्रदर्शन कर जिला प्रशासन पर जेल में बंद आरोपियों को छोड़ने का दबाव बना रहे हैं।
पीयूसीएल की जांच
उत्तर प्रदेश पीयूसीएल के महासचिव कमल सिंह, संगठन सचिव रमेशचंद्र ‘विद्रोही’ एवं कार्यकारिणी सदस्य शशिकांत ने 27-28 जून, 2024 को अलीगढ़ में मामू भांजा स्थित घटनास्थल, उसके आसपास, घासमंडी मृतक फरीद के घर, संबंधित थाने जाकर घटना से संबंधित तथ्यों का विवरण जुटाए, पूछताछ कर मृतक एवं जेल में बंद हत्यारोपियों के परिवारीजनों, और उनके आसपास रहने वाले दुकानदारों, पड़ोसियों से पूछताछ कर जानकारी जुटाने का काफी प्रयास किया। स्थानीय समाचार पत्रों, टी.वी. चैनलों की उपलब्ध रिपोर्टो और घटना से संबंधित तमाम वायरल वीडियो का अध्ययन किया गया।
मृतक फरीद के घर और आस-पड़ोस पीयूसीएल की यह जांच टीम 27 जून को सबसे पहले जानकारी जुटाकर, क्षेत्रीय सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद से घास की मंडी के पास मोहल्ला रंगरेजान में मृतक फरीद के घर पहुंची | घर एक तंग बंद गली में था, हमें घर पर आता देख घर के बाहर 15–20 लोग जुट गए | पूछताछ से जानकारी मिली वहां परिवारीजनों में मृतक फरीद के दोनों भाई गुलजार ( आयु 44-45 साल) और जकी (आयु 30-32 साल) थे। पूछताछ करने पर बड़े भाई गुलजार ने टीम को बताया कि हम तीनों भाई मुख्य रूप से तंदूर पर रोटी सेंक कर आजीविका चलाते थे। अभी कुछ दिनों से गुलजार गुड़गांव में काम करने लगे हैं, लेकिन बाकी दोनों छोटे भाई रोटी सेंकने का काम कर रहे हैं। तीन बहनें हैं, जो कि शादीशुदा हैं। तीनों भाईयों में केवल गुलजार शादीशुदा है, उसके 5 बच्चे हैं |
मृतक फरीद और छोटा भाई जकी अविवाहित हैं। पिता इनायत रहीम का इंतकाल लगभग 20 साल पहले हो गया। मां जुबैदा बीमार रहती हैं, वे लकवाग्रस्त हैं |उनके इलाज और गुजर-बसर की जिम्मेदारी फरीद के Hell पर थी | टीम ने घर की स्थिति देखी, घर के नाम पर केवल दो कमरे थे। मुश्किल से 50 वर्गगज में बना है। तीनों भाई परिवार सहित इन्हीं कमरों में गुजर करते हैं। बड़े भाई गुलजार ने कहा रहने की जगह नहीं होने की वजह से दोनों छोटे भाईयों का निकाह नहीं हो सका।
परिवार की जानकारी के बाद टीम ने घटना के बारे में पूछा तो छोटे भाई जकी ने बताया, मेरे बड़े भाई अभी कुछ समय से गुड़गांव में मजदूरी करने चले गए, बाकी हम दोनों भाई तंदूर पर रोटी सेंकने का काम करते हैं। उस दिन (18 जून) भाई फरीद रोटी बनाकर घर लौट रहे थे। अक्सर वे शॉर्टकट रास्ते मामू भांजे की गलियों में होकर आते थे। उसी समय मोहल्ला रंगरेजान में राधामोहन मंदिर के बराबर तंग गली में 15 से 20 लोगों ने फरीद को घेर लिया | बुरी तरह लाठियों- डंडों से मारा, पेट और छाती पर कूद-कूद उसे मार दिया । बताते-बताते जकी भावुक हो गया। थोड़ी देर रूककर टीम ने पूछा – “वह कहां काम करता था, कहां से लौट रहा था?” जकी ने जबाव दिया -“हमारे काम का कोई निश्चित ठोर-ठिकाना नहीं होता।” हम लोग शादी-ब्याह, पार्टियों में हलवाईयों के साथ जाते हैं, हलवाई भी फिक्स नहीं होते, कोई भी हलवाई हमें बुलाकर ले जाता है। काम भी रोजाना मिल जाए जरूरी नहीं। बकरीद के समय मिलकर कुर्बानी करते हैं, रिश्तेदार भी घर आते हैं, ऐसे में मुस्लिम इलाकों में जगह-जगह लोग रोटियां बनाने के लिए तंदूर लगवाते हैं। बकरीद के कारण ही उस दिन ऐसे ही किसी मोहल्ले से फरीद रोटी सेंक कर लौट रहा था। क्योंकि हमारे काम का ठिकाना बदलता रहता है और कभी-कभी हलवाई या तंदूर वाले केवल सुबह या शाम साथ चलने की कहते हैं और हम चल देते हैं। यहीं वजह हैं कि हम घरवालों को नहीं पता कि वह कहां रोटी सेंकने गया था।”
आगे जांच टीम ने पूछा – “फरीद को इस बेरहमी से क्यों पीटा गया? क्या किसी किस्म की रंजिश थी? मृतक के भाईयों सहित मौजूद पड़ोसियों ने बताया कि सभी भाई गरीब हैं, जैसे-तैसे मेहनत-मजदूरी करके गुजर कर रहे हैं। किसी से कभी लड़ाई-झगड़ा नहीं करते हैं, कोई जमीन-जायदाद, दौलत भी नहीं है, जो किसी से रंजिश होगी। दाढ़ी और हुलिया से क्योंकि वह मुसलमान नजर आया और इन आवारा बदमाशों का बेवजह निशाना बन गया| फरीद को शहर का माहौल बिगाड़ने के मकसद और मुसलमान होने की वजह बेरहमी से मारा | जब वह मर गया, तो अब फरीद को चोर बता रहे हैं|” इसके बाद टीम ने कुछ स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता की मदद से मृतक के पड़ोस में चोर होने की जांच-पड़ताल के लिए पूछताछ की, सभी पड़ोसियों ने नाम उजागर न करने की शर्त पर बताया कि मृतक और उसके परिवार का कोई भी चोरी तो क्या किसी भी छोटी-मोटी हेराफेरी में नहीं रहे, मेहनत करके कमा के गुजारा करते हैं।” किसी के खिलाफ कभी किसी अपराध में कोई मुकदमा दर्ज नहीं है। न ही थाने में किसी प्रकार की कोई शिकायत है।

28 जून, मामू भांजा, घटनास्थल एवं आस-पड़ोस
अगले दिन 28 जून को जांच टीम गांधी पार्क चौकी के सामने से होकर करीब दो सौ मीटर दूर मामू भांजा घटनास्थल पहुंची | आसपास भारी पुलिस बल तैनात था। जांच टीम ने गली में कुर्सी पर बैठे हुए पुलिस कर्मियों से घटनास्थल की जानकारी मांगी, तो पुलिस कर्मी ने बताया यहीं वह जगह और एक कपड़े की दुकान की ओर इशारा करते हुए बताया कि यहीं घर था, जिसका चोरी के मकसद से मृतक फरीद के घुसने का आरोप है। जांच टीम “पर्व टेक्सटाइल” साइन बोर्ड वाली दुकान पर पहुंची, जिसके दरवाजे के दोनों ओर हाथ की लिखाई से जय श्रीराम लिखा था। इस दुकान पर एक महिला, एक युवक और एक बच्चा था | जांच टीम ने घटना के बारे में कुछ पूछताछ कर जानकारी के लिए पूछा तो महिला ने अपने ससुर बुलाने के लिए कहा और उसी महिला ने फोन करके ससुर को बुलाया | पूछने पर महिला ने ही जानकारी दी कि उनके परिवार के मोहित मित्तल और राहुल मित्तल इस घटना में हत्यारोपित हैं और जेल में हैं।

हत्या आरोपित मोहित के पिता का बयान
हत्या आरोपित मोहित के पिता ईश्वर दयाल ने बताया, “उनका पुत्र और अन्य सभी अभियुक्त निर्दोष हैं। वे लगभग 10.30 बजे मंदिर से घर लौटे थे। उनके लौटने तक घर का दरवाजा खुला रहता है। मृतक अपने अन्य चार साथियों के साथ लगभग 10.15 पर घर में घुस आया था । इनमें से एक दरवाजे के पास खड़ा रहा, अन्य चार लोग जीने से तीसरी मंजिल पर मोहित के घर में घुस गए। मोहित घर में नहीं था। उनकी पत्नी लक्ष्मी खाना बना रही थी। चारों ने उसे घेर लिया | अलमारी की चाबी मांगी, बगल की कोठरी में अलमारी थी। अलमारी खोलकर उसमें रखे जेवर और नकदी लेकर जाने लगे। मौका मिलते ही लक्ष्मी के चिल्लाने पर बीच की मंजिल से राहुल और घर के लोग निकल आए। चारों भाग छूटे। उनमें से एक (फरीद) तंग जीने में फिसल कर गिर गया | शेष तीन तथा एक जो बाहर खड़ा था चोरी का सामान लेकर भाग छूटे।
चोर-चोर का शोर सुन करके भीड़ जमा हो गई | भीड़ में किसने किस तरह मारा यह पता नहीं। जो आता मारने लगता था। लगभग 20-30 लोग जमा हो गए थे।”
ईश्वर दयाल ने अपने मोबाईल फोन 9520301657 की डिटेल दिखाते हुए बताया, “मैंने मंदिर से लौट कर यहां का हाल देखा था। उस समय तक मृतक मरा नहीं था। मैंने 112 नंबर पर पुलिस कंट्रोल रूम में 10. 31 पर पहला फोन किया | दूसरा फोन 10.32 पर किया | 10.34 पर फिर फोन किया तो उसे पुलिस ने उठाया और बात भी की और रख दिया।
10.35 पर फिर फोन किया। मेरा फोन नहीं मिल रहा था। पुष्पेन्द्र आरोपित कमल का बेटा) ने भी अपने मोबाइल नं. 9917044411 से पुलिस कंट्रोल रूम 10.34 पर फोन किया और चार मिनट बात हुई | इन्हें हाल बताया | 10.48 पर फिर फोन किया, 2 मिनट बात भी हुई | तुरंत आने का अनुरोध किया। 10.53 पर पुलिस के कहने पर एम्बुलेंस के लिए फोन किया | 11.40 तक लगातार एंबुलेंस के लिए फोन करते रहे। एम्बुलेंस नहीं आई। अंत में 11.15 पर पुलिस आई। गांधी पार्क पुलिस चौकी की दूरी घटना स्थल से लगभग 200 मीटर के फासले पर है |” ईश्वर दयाल का कहना है, “पुलिस और एंबुलेंस सही समय पर आ जाते तो फरीद की जान बच सकती थी। पुलिस लगभग 11.40 पर जिस समय उसे उठा ले गई थी, फरीद मरा नहीं था | उसके हाथ की नाड़ी चल रही थी।” पुलिस को अन्य स्रोतों से भी वारदात की सूचना मिली थी। पूछताछ के बाद जांच टीम उस जीने से होकर दूसरी मंजिल पर उस कोठरी का भी मुआयना करने गई, जहां पहुंचकर लूट के प्रयास मृतक और उसके साथियों द्वारा किये जाने का आरोप है। जैसे ही घर से बाहर आए तो जांच टीम को पुलिसकर्मियों ने सामने मकान की एक खिड़की की ओर इशारा करते हुए बताया कि इसी खिड़की से किसी ने फरीद के साथ मॉब लीचिंग का वीडियो बनाया, जो वायरल हो गया | जानकारी लेने पर पता लगा कि यह घर निकलकर उस घर के खिड़की की ओर पहुंचे। घर के बाहर एक दुकान पर अगफा टेलर का फ्लैक्स लगा था | दुकान का शटर बंद था। उसी दुकान के सामने एक खाली दुकान में ततीन-चार सिपाही कुर्सियों पर बैठे थे। हमारी ओर निगरानी भरी निगाह से देख तो रहे थे, लेकिन कोई रोका-टोकी नहीं की। पड़ोस में एक मोटरसाइकिल का छोटा सा शोरूम था। उसी पर बैठे एक बुजुर्ग शख्स से जांच टीम ने अपने परिचय के साथ अगफा टेलर से मुलाकात के बारे में पूछा। उन्होंने जमील जो अगफा टेलर के संचालक हैं, को वहीं अपनी दुकान पर बुला लिया । जांच टीम ने घटना के बारे में पूछा तो बताया कि यहां मिली-जुली आबादी है। मुसलमानों के 10-15 घर हैं। हम कई पीढ़ियों से मिल जुलकर रह रहे हैं। दोनों समुदायों के शादी-ब्याह, तीज-त्यौहार, व्यापार-धंघे एक साथ होते रहे हैं। कोई झगड़ा नहीं रहा। लेकिन पिछले 30- 40 साल से मोहल्ले के राधा मोहन मंदिर में भाजपा और संघ के नेता बाहर से आकर बैठकें करते हैं। मंदिर के आसपास कुछ युवा मंगल को छुट्टी वाले दिन या फिर कभी भी इन तंग गलियों झुंड बनाकर पीते-खाते और राहगीरों से गाली-गलौज, मारपीट करते रहे हैं। उस दिन (18 जून की रात) को भी ऐसे ही कुछ आवारा, लंपट उन्मादी युवकों ने उग्र हिन्दुत्ववादी तत्वों की शह पर फरीद पर, लाठी-डंडों से वार किया, वे नशे में इतने धुत थे कि हैवानियत भरे अंदाज में छाती पर कूद कर पैरों से इतनी बुरी तरह मारा कि उसकी तीन पसलियां टूट गई थी। हम पड़ोसी फरीद को बचाने भी पहुंचे, तो हमारे समुदाय को संबोधित करते हुए बुरा भला कहने लगे। यहां तक कि हमारे बच्चों के साथ मारपीट करने लगे। हमने अपने बच्चों को खींचकर पीछे कर लिया। हमें डर था कहीं ये लोग इस घटना दो समुदाय का झगड़ा बनाने में कामयाब न हो जाए।” जांच टीम ने घटना का वीडियो बनाने के बारे में उनसे जानकारी चाही, तो जमील ने ऐसी कोई वीडियो उसके परिवार द्वारा नहीं बनाने की बात कही | लेकिन यह भी कहा किसी बच्चे ने बना ली हो तो उसकी उन्हें जानकारी नहीं है। आगे जांच टीम ने पूछा कि नजदीकी थाना या चौकी कितनी दूर है। तो शोरूम नुमा दुकान में बैठे दूसरे व्यक्ति ने बताया कि घटनास्थल से 200 से 300 मीटर पर गांधी पार्क चौकी है। लेकिन करीब एकज-डेढ़ घंटे बाद मोटरसाइकिल पर दो पुलिस वाले पहुंचे। एक पुलिसकर्मी अपनी कमर पर लादकर फरीद को अस्पताल लेकर पहुंचा था। फिर जांच टीम गांधी पार्क चौकी पहुंची, चौकी सीओ आर. के. सिसौदिया मिले, लेकिन उन्होंने जांच टीम को घटना के बाद किसी प्रकार की पुलिस कार्यवाही की जानकारी देने से मना कर दिया | जांच टीम को आफिस में बैठा छोड़ सभी चौकी से बाहर सड़क पर चले गए।
फरीद की हत्या से संबंधित वीडियो
फरीद की मृत्यु से संबंधित घटना के दो वीडियो सोशल मीडिया पर खास तौर से वायरल हैं | पीयूसीएल की जांच टीम को एक वीडियो मृतक के परिजनों के माध्यम से मिला जिसमें बताया गया है कि वहशी तरीके से लंपटों ने फरीद को पीट-पीट कर उसे जान से मारा है। दूसरा वीडियो जेल में बंद आरोपित मोहित के पिता ने, जिन्होंने अपना नाम ईश्वर दयाल बताया, उपलब्ध कराया। इस वीडियो में लंपट चोटों से घायल फरीद से यह उगलवाने की कोशिश कर रहे हैं कि वह “एक गिरोहबंद अपराधी है और अपने साथियों के साथ लूट के मकसद से आया था।” वीडियो में मृतक बैठा है और उससे जो कहलवाया जा रहा है वह साफ नहीं है। जाहिर है यह वीडियो हत्या आरोपितपक्ष ने लिया है इस वायरल वीडियो के आधार पर कहा जा रहा है कि औरंगजेब ने अपने साथियों के बारे में बताया, उस वीडियो में फरीद की आवाज स्पष्ट नहीं है, भीड़ का शोरगुल भी है। इस वीडियो को कई बार ध्यान से सुनने पर पूछताछ का ब्यौरा इस प्रकार समझ में आ रहा है : –
भीड़ में से एक बोलता है “घोटू तोड़ो, इसके घोटू” दूसरा फरीद की ओर चमचमाता स्टील का मोटा पाइप लहराता है। तभी भीड़ में एक ओर आवाज आई -“बोल, बोल, नाम बता अपने साथियों के नाम बता”
फरीद लड़खड़ाती आवाज में बोला — “सलमान”
भीड़ में से फिर एक आवाज – “वल्दियत'”
फरीद ने फिर जबाब दिया – वल्दियत, तुफैल
फिर किसी ने पूछा – “कहां के हैं?
“ऊपरकोट के, भट्टी के बराबर में बिल्डिंग, और वो है आसिफ”” फरीद ने
फिर डरी आवाज में कहा।
फिर भीड़ में से एक धमकी भरी आवाज आई – “कौन से मौहल्ले के हैं?”
फरीद बोला -छाजूवाला (आवाज स्पष्ट नहीं थी)
फिर पूछा — “वल्दियत बता”
जोर देकर फरीद ने जबाब दिया -“बता तो रहा हूं, आसिफ पानवाला”
भीड़ में से फिर सवाल पूछा – “कौन सी जगह के?”
“हम वहीं के हैं?” फरीद ने जबाब दिया।
फिर भीड़ में से सवाल – “क्यों, क्या करने आए थे यहां पे?”
जबाब – “खाना बनाने”
भीड़ में से एक बोलता है – “चार दिन से रैकी कर रहे थे यहां की”
फरीद डर और घबराहट में फिर बोला- “ये पिछले मंगल को भी आए थे”
भीड़ में एक बोला – मंगल को भी आए थे, क्यों आए थे, रैकी के लिए,
ईमानदारी से बता दे “
भीड में सभी फरीद पर चिल्लाने लगे, तब उनमें से एक चिल्लाया -“रूकों
यार, बोलने दो, यार एक मिनट इसे बोलने दो, बोल, जल्दी बोल (फरीद से)”
फरीद ने फिर बताया – “ये गए मंगल बाजार में, फेरी के लिए, ये मंगल
बाजार में फेरी करते है”
“तुझे किसने भेजा? तेरे को किसने मोहरा बनाकर भेजा, रैकी के लिए?”
फरीद ने जोर देकर कहा -“’अरे। ना”
अरे, सभी (शमीम भी हो सकता है) पोल पट्टी बता दी”
भीड़ में से एक बोला -“कौनसी पोल पट्टी, कहां को रहने वालों है, कहां
को रहने वालों |”
“वैल्डिंग को काम चल रहयो है, वहीं को रहने वालों है। मेरे घर के पास
को रहने वालों है।’
फिर पूछा -“कौन सी जगह को?”
फरीद ने जवाब दिया, “घास की मंडी”
फिर भीड़ ने सवाल किए-”किसने भेजा तेरे को, प्लानिंग नहीं बताई, सिर्फ
भेजा कि इस घर में घुस जा, घर कौन सा बताया था।”
फरीद घबराई आवाज में गिड़गिड़ाया-‘कोई घर ना, छोटा सा घर है, बाप
मर गया है, (तेज सांस लेते हुए) थोड़ी हवा आने दो |”( वीडियो समाप्त)
इस वीडियो में फरीद बैठा हुआ है| इसमें और उसकी हत्या से पहले वाला विडियो मिलाकर देखा जा सकता है। किस वहशी निर्ममता के साथ लम्पटों ने गरीब श्रमिक को मार- मार कर, उसकी छाती-पेट पर कूद-कूद कर उसकी जान ली है और कौन हत्यारे हैं, कौन-कौन इस वहशी मोब लिंबिंग में सम्मिलित हैं, वीडियो अकाट्य साक्ष्य हैं। फरीद की नृशंस हत्या के बारे में पहले वाले वीडियो के बारे में ही हत्या आरोपित राहुल-मोहित के घर तैनात पुलिस बल ने बताया कि घटनास्थल पर एक मुस्लिम टेलर जमील अगफा के तीन मंजिला घर की खिड़की से यह वीडियो लिया गया है।
क्रॉस एफआईआर घटना से संबंधित दो सूचनाएं थाना पुलिस में 19 जून को लिखित दी गई | एक मृतक के भाई जकी ने, दूसरी हत्या आरोपितों की ओर से एक महिला ट्वारा |
घटना के समय फरीद की वहशियाना पिटाई और मौत से संबंधित एक वीडियो के वायरल के साथ ही घास की मंडी के बाशिंदों और फरीद के घरवालों को पता लगा, लगभग 12 बजे वे लोग जिला अस्पताल मलखान सिंह चिकित्सालय पहुंच गए। वीडियो में मारने वाले लंपटों में एक लंबा-चौड़ा केसरिया गमछा धारी और अन्य उग्र हिन्दुत्ववादी युवक नजर आ रहे थे। लगभग 20-30 लोग जिनमें बच्चे-बच्चियां भी थे, तमाशबीनों के साथ नजर आ रहे थे। यह वीडियो फुटेज इस जांच रिपोर्ट के साथ संलग्न है। इसे देख कर सपा के स्थानीय व जिला स्तर के नेता और कार्यकर्ता भी सक्रिय हो गए। अस्पताल के डॉक्टर फरीद को मरा हुआ घोषित कर चुके थे। अस्पताल में उसकी लाश ही पहुंची थी। अब मृतक के पक्षधरों का कहना था घटना की प्राथमिकी दर्ज होने के बाद ही पोस्टमार्टम होगा। पुलिस ने बल प्रयोग की धमकी दी परंतु असर नहीं हुआ। अंत में 19 जून सवेरे 4.56 पर फरीद के छोटे भाई जकी द्वारा कमरुद्दीन एडवोकेट को बोल कर लिखाई गई एक प्राथमिकी (संख्या 0275) अंतर्गत धारा 341, 147, 148, 149, 302, 34 दर्ज की गई | मॉब लिंचिंग से संबंधित धाराएं पुलिस ने नहीं लगाई, हालांकि प्राथमिकी में मॉब लिंचिंग के तहत हत्या के बाबत लिखा गया था। प्राथमिकी में 10 अभियुक्त नामजद थे – अंकित, चिराग, संजय, रिशव, अनुज, मोनू, पंडित (विजयगढ़ वाला) कमल, डिम्पी उर्फ मोहित और राहुल | इनके अलावा 10-12 अज्ञात हैं। जकी से पूछने पर उसने बताया वीडियो फुटेज के जरिए ये नाम पता लगे हैं।
प्राथमिकी में लिखा गया है-
“.. घटना दिनांक 18/06 /2024 समय करीब 10.15 बजे रात की है कि मेरा भाई फरीद उर्फ औरंगजेब 35 वर्षीय, रोटी बनाकर लौट रहा था जैसे ही मोहल्ला मामू भांजा गली रंगरेजान पर आया तभी वहां पर अंकित वार्षणेय पुत्र कपिल वार्षणेय, चिराग वार्षणेय पुत्र बिज्जू वार्षणेय, संजय वार्षणेय उर्फ बालाजी, रिशव पाठक पुत्र नामालूम, अनुज अग्रवाल पुत्र राजकुमार मोनू पाठक पुत्र नामालूम, व पंडित विजयगढ़वाला व कमल बंसल उर्फ चौधरी, डिम्पी अग्रवाल व राहुल अग्रवाल व 10-12 अन्य लोगों ने सामूहिक रूप से घेर लिया तथा सभी ने मॉब लिंचिंग के तहत मिलकर जान से मारने की नियत से लाठी, हॉकी, डंडे, सरिया से मारना पीटना शुरू कर दिया और इन सभी ने मुस्लिम होने की पहचान की तथा उसे जान से मार दिया जैसे ही घटना की सूचना प्रार्थी वउसके परिवारजनों को हुई तब वे मौके पर पहुंचे तो वह मरण अवस्था में मलखान सिंह अस्पताल ले गए तभी डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया सभी मुल्जिमान मोहल्ला मामा भांजा थाना गांधी पार्क के हैं अतरू श्रीमानजी से प्रार्थना है कि रिपोर्ट दर्ज कर उपरोक्त सभी मुल्जिमान के विरुद्ध कठिन से कठिन कानूनी कार्यवाही की जाने की कृपा करें आपकी महान कृपा होगी।
प्रार्थी जकी पुत्र स्वर्गीय श्री इनायत रहीम नि. मो.रंगरेजान घास की मंडी थाना सासनी गेट अलीगढ़ |”
इसके बरक्स दूसरी प्राथमिकी घटना के दस दिन बाद दर्ज की गई है उसकी पहली तहरीर दिनांक 19 जून को ही दी गई थी। इसके अनुसार, “मामा भांजा प्रकरण में हत्या आरोपित पक्ष की ओर से एक महिला की ओर से पुलिस को एक तहरीर दी गई है। इसमें लूटपाट, फायरिंग और दुष्कर्म के प्रयास का आरोप लगाया गया है।“. महिला द्वारा एसएसपी को दी गई तहरीर में कहा गया कि रात करीब 10 बजे वह खाना बना रही थी। पत्ति छत की तरफ गए, तभी अचानक जीने से पांच लोग घुस आए, जो हथियारों से लैस थे। इन्होंने तमंचा दिखाकर परिवार को बंधक बना लिया। और आभूषण और नकदी के बारे में पूछने लगे। भयभीत होकर उन्हें तिजोरी की चाबी दे दी। वे आभूषण व ढाई-तीन लाख रुपये लूट ले गए और पहले से छत पर मौजूद अपने साथी जमील उर्फ अगफा टेलर को रुपए व सामान देकर लौट आए। इसके बाद परिवार की महिलाओं के साथ दुष्कर्म का प्रयास किया।.. शोर मचाने पर लोग आने लगे। बदमाश भागने लगे। घिर जाने के बाद उन्होंने फायरिंग भी की। इसी दौरान एक बदमाश जीने से गिर कर घायल हो गया | इसे लोगों ने पकड़ लिया। पकड़े गए औरंगजेब ने अपने साथियों के नाम बताये। इनमें सलमान, तुफैल, आसिफ, जमील हैं| पूछताछ में उसने यह भी बताया हमारा गिरोह फेरी लगाने के बहाने हिंदू आबादी क्षेत्र में रैकी करते हैं | चार दिन से इस मकान की रैकी कर रहे थे और लूट के उद्देश्य से आए थे। इसके बाद पुलिस औरंगजेब को अपनी कस्टडी में लेकर चली गई |” (दैनिक जागरण दिनांक 21 जून) 19 जून की इस लिखित शिकायत के पांच दिन बाद 24 जून को हत्या आरोपित अभियुक्त के पक्ष से दूसरी तहरीर पुलिस को दी, जिसमें दुष्कर्म के प्रयास का आरोप नहीं था। लेकिन पुलिस के साथ बातचीत के बाद 19 जून वाली पहली तहरीर पर ही सहमति बनी। पुलिस ने घटना के दस दिन बाद 19 जून की तहरीर को बतौर प्राथमिकी दर्ज कर लिया है। आईपीसी की धारा 354 ( लूट) और 395 ( महिला का निर्वस्त्र करने के इरादे से आपराधिक बल प्रयोग) में दर्ज इस एफआईआर में मृतक फरीद, उसके छोटे भाई जकी, सलमान वल्दियत तुफैल, आशुपान वाले का लड़का, अकबर, नबाव , शमीम सहित दो अज्ञात व्यक्तियों को नामजद किया है |
जांच टीम के निष्कर्ष
जांच टीम ने पीयूसीएल समेत अन्य नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्षरत संगठनों और व्यक्तियों से इस घटना की जांच के दौरान पूछताछ, वीडियो जैसे साक्ष्य, प्रत्यदर्शियों के बयानों, राजनैतिक पार्टियों की इस घटना को लेकर राय-गतिविधियों और पुलिस-प्रशासन के रवैये को साझा किया। उनकी राय और आपसी समझ के आधार इस घटना के परिप्रेक्ष्य जांच टीम ने कुछ निष्कर्ष संकलित किए |
जांच टीम के निष्कर्ष
मॉब लिंचिंग
जांच टीम की राय है कि हत्यारोपित जिनके मकान के सामने फरीद मारा गया, जिसके विरूद्ध आरोप है कि वह चोरी के मकसद से हत्यारोपितों के घर में घुसा था। फरीद से पूछताछ के वीडियो में रैकी और साथियों का हवाला बताया गया है। अगर चोरी की रात सच भी मान लिया जाये तो उसे पुलिस के सुपुर्द किये जाने चाहिये था। भीड़ इकट्ठा कर कानून अपने हाथ में लेकर लाठी-डंडों से पिटाई कर हत्या विधि सम्मत नहीं है। यह मॉब लिचिंग है। मॉब लिचिंग का विडियो वायरल होने तथा फरीद के परिजन और जनता के प्रतिरोध के बाद हत्या के आरोपितों की गिरफ्तारी तो की गई पर सत्ता पक्ष के दबाव में पुलिस अभियुक्तों को बचाने और मुकदमा कमजोर करने हरसंभव प्रयास कर रही है। पुलिस अधिकारी मीडिया में बयान दे रहे हैं “सीढ़ियों से गिरने की वजह से फरीद की मौत हो गई |” “अस्पताल में ईलाज के दौरान उसकी मौत हुई ” पहली बात तो जीना तंग तो है लेकिन एकदम सीधा नहीं है। कोई आदमी छत से लुढ़केगा तो बीच के मोड़ पर रूकेगा और अगर मोड़ के बाद गिरेगा तो नौ सिढ़ियों से गिरकर 22 चोटे, 3 पसलियां टूटना, फेफड़े फट जायें यह कैसे संभव है। फिर क्या भीड़ बाद में मृत फरीद पर लाठियां बरसा रही थी | पुलिस प्रशासन पर भी सवाल है, मलखान सिंह जिला अस्पताल की दूरी घटना स्थल से करीब आधा किलो मीटर (कोयले वाली गली से) दूर है, मात्र 10-15 मिनट पहुंचने में लगते हैं। डाक्टरों ने अस्पताल पहुंचते ही मरीज को मृत घोषित कर दिया था, कोई ईलाज नहीं हुआ था। फिर हत्यारोपितों के स्वर में स्वर मिलाकर क्यों कहा जा रहा है, मौत अस्पताल में ईलाज के दौरान हुई या 10 मिनट बाद अस्पताल में | फरीद की मौत का कारण मॉब लिचिंग है।
सवाल यह नहीं है कि वह चोरी के लिए घुसा या वह लूट के बाद लुटेरों के साथ भाग रहा था। सच यह है कि उसकी मौत हुई है। इस हत्या के लिए जिम्मेदार लंपटियों पर रियायत करने के लिए कोई कानूनी आधार नहीं है।
सत्ता के दबाव में पुलिस लाचार
पुलिस ने 19 जून को फरीद के भाई जेकी की प्राथमिकी दर्ज की और उसके बाद हत्या आरोपियों में से छह को गिरफ्तार किया, तुरंत भाजपा-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और बजरंग दल, व्यापारी संगठन जैसे सहयोगी संगठन मैदान में आ गए। रेलवे रोड के पास मामू भांजा के रामगंज चौराहे पर सवेरे 10 बजे से लोग एकत्रित होने लगे। धरना – प्रदर्शन शुरू कर दिया। धरने में भाजपा से शहर विधानसभा मुक्ता राजा और पूर्व मेयर शकुंतला भारती ने अगुवाई की थी। वे एडीएम सिटी और पुलिस कप्तान पर भी बरस पड़े। पुलिस व प्रशासन सत्तारूढ़ पार्टी के सामने असहाय हो गये थे। मीरूमल चौराहे पर एक घंटा तक जाम लगा रहा | करीब दो बजे उग्र हिंदुत्ववादियों का दल अब्दुल करीम चौराहे पर धरना देकर सांप्रदायिक उग्र नारेबाजी करने लगा | मुस्लिम बाहुल्य ऊपरकोट की तरफ मुस्लिम नौजवान भी जमा होने लगे। टकराव और दंगे की आशंका उत्पन्न हो गई, सब्जी मंडी के पास परस्पर छींटाकशी के मध्य एक-आध पत्थर का उछलना बताया जाता है | एसपी ने दोनों पक्षों के बीच समझाइश के साथ हल्का बल प्रयोग भी किया। उग्र हिंदुत्ववादियों को आश्वस्त किया गया कि फरीद की हत्या के “मुकदमे को गैर इरादतन हत्या के मामले में बदल दिया जाएगा, और आगे किसी भी हत्यारोपित की गिरफ्तारी नहीं होगी” तब धरना समाप्त हुआ |
विपक्षी दल मृतक फरीद के परिवारजनों के पक्ष में थी और भाजपा हत्या आरोपियों के साथ । पूर्व ‘सांसद सपा नेता बिजेंद्र सिंह’ ने हिंदुत्ववादी संगठनों का हवाला देते हुए अपने एक बयान में कहा, “यह घटना शासन और प्रशासन के लिए खुली चुनौती है। हत्या आरोपितों में सभी को गिरफ्तार किया जाए | सरकार पीड़ित परिवार को एक करोड़ रुपए बतौर मुआवजा दे |“ ‘कांग्रेस नेता विवेक बंसल’ ने पीड़ित परिवार को आश्वस्त करते हुए कहा “जब तक सभी हत्या आरोपित गिरफ्तार नहीं किए जाते और सरकार मुआवजा नहीं देती कांग्रेस आपकी लड़ाई जारी रखेगी | ‘पूर्व मेयर मोहम्मद फुरकान’ ने घटना की निंदा करते हुए सख्त कार्रवाई की मांग की। ‘सांसद सतीश गौतम (भाजपा) ने हत्या आरोपितों से मिलकर आश्वस्त किया “अन्याय नहीं होने दिया जाएगा । आईजी और एसएसपी से बात हो चुकी है। पूरे मामले की जांच कराई जा रही है l” “भाजपा जिला अध्यक्ष कृष्णपाल सिंह का बयान है, “यह मामला उन्मादी हिंसा का नहीं है। इसे गैर इरादतन हत्या के मामले में बदलने पर बात हुई है। चोरी के मामले में मृतक और उनके साथियों के खिलाफ रिपोर्ट को दर्ज कराया जाएगा |” “भाजपा महानगर अध्यक्ष राजीव शर्मा’ ने कार्यकर्ताओं की बैठक करके कहा कुछ लोग चोरी की घटना को सांप्रदायिक रंग दे रहे हैं। भाजपा मीडिया प्रभारी भूपेंद्र वार्षणेय’ ने हत्या अभियुक्तों को निर्दोष बताया, “भाजपा युवा मोर्चा उपाध्यक्ष अमित गोस्वामी’ ने फरीद को चोर करार देते हुए उसके मरने को सामान्य बताया और साथ ही कहा इसके लिए “बहुसंख्यक समाज के छह लोगों को जेल भेजना गलत है “
‘अखिल भारत हिंदू महासभा अशोक पांडेय” का बयान है “सपा के लोग गोली चलाने और दंगे की बात कर रहे हैं| सपा के दबाव में मुकदमा दर्ज करना गलत है, जबकि मामला गैर इरादतन हत्या का है। पुलिस अधिकारियों के अविवेक से मामला बिगड़ा है। ऐसी भी चर्चा है कि भाजपा नेताओं ने लखनऊ में मुख्य सचिव (गृह) तथा मुख्यमंत्री कार्यालय से भी संपर्क साधा और पता चला कि ऊपर से जिले के प्रशासनिक अधिकारियों को कुछ निर्देश भी मिले हैं।
घटना के एक सप्ताह बाद पुलिस ने सपा नेता अज्जू इसहाक के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर की है। उन पर आरोप है कि फरीद के हत्यारों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने और आरोपितों की गिरफ्तारी के लिए मांग करने वालों को उसने भड़काया और भड़काऊ बयान दिए | इसी तरह सब्जी मंडी के पास दोनों पक्षों के बीच तनाव के दौरान पत्थर उछालने का इल्जाम लगा कर सरताज नामक एक युवक को गिरफ्तार किया | पुलिस इस युवक को इससे पहले 2000 में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए-एनसीआर) के विरुद्ध जन आंदोलन के दौरान भी गिरफ्तार कर चुकी है। पीयूसीएल के जांच दल ने पुलिस चौकी गांधी पार्क जाकर घटना की जांच कर रहे अन्वेषण अधिकारी (आईओ) सुरेन्द्र सिंह और क्षेत्राधिकारी (सीओ) से मिलकर इन्वेस्टिंग से संबंध में पूछताछ का प्रयास किया| पुलिस अधिकरियों ने जांच को गोपनीय बता कर किसी भी सवाल का जवाब देने से इनकार कर दिया। अधिक प्रयास करने पर वे उठ कर चले गए ।
लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद “हेट क्राइम” के शिकार मुस्लिम अल्पसंख्यक
चुनाव के दौरान राजस्थान के बाद अलीगढ़ नुमाइश मैदान में भी चुनावी रैली संबोधित करते हुए भैंस और मंगलसूत्र की बातें छेड़कर साम्प्रदायिकता के आधार पर ध्रुवीकरण की कोशिश प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी समेत भाजपा के शीर्ष नेताओं ने की। हेट स्पीच के कई मामलों की शिकायत निर्वाचन आयोग के सामने भी पेश की गयी थी | अलीगढ़ के इस चुनाव में भाजपा से सांसद सतीश कुमार गौतम और सपा प्रत्याशी बिजेन्द्र सिंह के बीच कांटे का मुकाबला था। सतीश गौतम महज 15,647 मतों से जीते हैं| उन्हें 5,01,834 मत मिले हैं जबकि बिजेन्द्र सिंह को 4,86,187 मत। पूरे क्षेत्र में ऐसी चर्चा है गौतम मतगणना में पीछे चल रहे थे। अंत समय में कुछ धांधली हुई | सपा प्रत्याशी बिजेंद्र सिंह की ओर फिर से मतगणना के लिए न्यायालय में जाने भी बात चल रही है।
मुसलमानों ने इस बार सपा को एकमुश्त वोट दिया है। बहुजन समाज पार्टी के प्रत्याशी हितेन्द्र कुमार को 1,23,929 वोट मिले। जबकि पिछली बार 2019 में यहां मुख्य मुकाबला भाजपा और बसपा के बीच था। भाजपा से सतीश गौतम को 6,56,215 वोट मिले थे। बसपा प्रत्याशी डॉ. अजीत बालयान 4,26,954 वोट पाकर दूसरे नंबर पर रहे थे। बिजेन्द्र सिंह कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े थे और 50 हजार से कुछ अधिक वोट हासिल कर सके थे। सतीश गौतम के जरिए भाजपा तीसरी बार यहां लोकसभा की सीट जीती है। इससे पहले यहां 2009 में बसपा की राजकुमारी चौहान जीती थीं। उससे पहले 2004 में बिजेंद्र सिंह ही कांग्रेस के टिकट पर सांसद बने थे। वे इगलास विधानसभा से चार बार विधायक भी रह चुके हैं। लेकिन इस बार वे सपा के टिकट इंडिया गठबंधन की ओर चुनाव लड़े थे। वे शुरू से ही मुस्लिम और किसान मुख्यतः जाट वोटों के प्रबल उम्मीदवार थे। भाजपा ने इस कड़े मुकाबले में हिंदुत्व के नाम पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का भरसक प्रयास किया। सतीश गौतम ने भयानक नफरती बयान दिए | अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में जिन्ना की तस्वीर को मुद्दा बनाया और मुसलमानों को पाकिस्तान से जोड़कर बयान दिए।| चुनाव में स्वस्थ लोकतांत्रिक और जनता के मुद्दों की जगह सांप्रदायिक और जातीयता के आधार पर जहर घोलने की खूब कोशिश चली । चुनाव परिणाम में बेशक भाजपा प्रत्याशी सतीश गौतम ने मामूली अंतर से जीत हासिल की, लेकिन मुस्लिम बाहुल्य विधानसभा क्षेत्र कोल में उनकी 30 हजार से अधिक वोटों से हार हुई। इस हार से संघ और भाजपा मुस्लिमों के खिलाफ भरे बैठे थे। ऐसे में हत्यारोपी राहुल का भाजपा से संबंधित होना, साथ ही मॉब लीचिंग में शामिल एक व्यक्ति का भगवा गमछा गले में होना, हत्यारोपी की गिरफ्तारी के बाद भाजपा नेताओं यहां तक कि सांसद-विधायकों का उन्हें जेल से छुड़ाने के लिए दबाव देना और क्षेत्र के सांसद और विधायक जिनका संबंध भाजपा से हैं, हत्यारोपियों के घर जाकर साथ देने का आश्वासन देना और मृतक फरीद के घर जाकर सांत्वना तक न देने की पूरी कहानी मुसलमानों के प्रति भाजपा-संघ की घृणा और नफरत से भरी राजनीति को पेश करती है।
2015 में यूपी के ही दादरी में अखलाक को उन्मादी भीड़ ने पीट-पीटकर मार डाला | ये गाय के नाम पर की गई मॉब लीचिंग थी | संभवत: पहली घटना थी जो एक तयशुदा स्क्रिप्ट में थोड़े बहुत फेरबदल के साथ आज तक दोहरायी जा रही है। लोकसभा चुनाव के बाद मॉब लीचिंग की कई घटनाएं सामने आई | जिनमें शिकार हैं गरीब मजदूर मुस्लिम और शिकारी हैं उग्र हिन्दुत्ववादी संगठन, विशेषकर भाजपा-आरएसएस की गुंडा वाहिनी |
ऐसी कुछ घटनाओं पर गौर करें –
मॉब लीचिंग
7 जून- छत्तीसगढ़ के रायपुर में हिन्दुत्व आदी भीड़ ने तीन मुस्लिम युवकों सद्दाम क्रेशी, चांद मियां और गुड्डू खान पर बेरहमी से हमला किया। इसमें दो की मौके पर मौत हो गई और एक की कुछ दिन बाद मृत्यु हो गई |
22 जून को गुजरात की चिखोदरा में क्रिकेट टूर्नामेंट देखने गए 23 वर्षीय सलमान वोहरा को चरमपंथी भीड़ ने बेरहमी से पीट- पीटकर मार डाला।
24 जून को छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में तोयलंका गांव में एक महिला की हत्या केवल इसलिए कर दी, क्योंकि उसने और उसके परिवार ने ईसाई धर्म अपना लिया था।
सांप्रदायिक हिंसा
15 जून को तेलंगाना के मेडक जिले में उग्रवादी भीड़ ने सांप्रदायिक हिंसा में मिन्हाज उल उलूम मदरसा के साथ एक स्थानीय अस्पताल पर हमला कर दिया। हमले में मदरसे के अंदर मौजूद कई स्थानीय मुस्लिम लोग घायल हो गए और उन्हें गंभीर हालत में अस्पताल जाना पड़ा।
17 जून को ओडिशा के बालासोर में गौकशी के आरोप में एक चरमपंथी भीड़ ने पुलिस की मौजूदगी में मुस्लिम घरों में घुसकर तोड़फोड़ की।
21 जून, जोधपुर के सूरसागर इलाके में सांप्रदायिक हिंसा हुई। दो पुलिसकर्मी घायल हो गए और 51 लोगों को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस की मौजूदगी में मुसलमानों के घरों और दुकानों पर पत्थरबाजी और आगजनी की गई थी।
19 जून, हिमाचल प्रदेश के नाहन में गौकशी के कथित आरोपी की बुनियाद पर एक मुस्लिम जावेद की कपड़े की दुकान में चरमपंथी भीड़ ने लूटपाट और तोड़फोड़ की | पुलिस की जांच में गौकशी का आरोप झूठा साबित हुआ, फिर भी जावेद को गिरफ्तार कर लिया गया। उग्रवादी हिन्दुत्ववादी संगठनों के दबाव में लगभग 16 मुस्लिम दुकानदार भी शहर से पलायन कर गए |
बुल्डोजर कार्यवाही
मध्य प्रदेश के मंडला और रतलाम के जेवरात में गाय के मुद्दे पर मुसलमानों के घरों पर बुलडोजर चला दिया गया। जेवरात में चार मुस्लिम युवकों की गिरफ्तारी हुई | यूपी के अकबर नगर में बड़े पैमाने पर रिवर फ्रंट के नाम पर बुल्डोजर अभियान चलाया गया। 50 वर्ष से अधिक पुरानी 1800 इमारतों को जमींदोज कर दिया।
अलीगढ़ और सांप्रदायिक दंगे
अलीगढ ताला, तालीम और तहजीब का शहर है, इसकी गंगा-जमुनी तहजीब बेमिसाल है | जिस अलीगढ़ में राजा महेन्द्र प्रताप सिंह जैसे क्रांतिकारी और मौलाना हसरत मोहानी जैसे जम्हूरियत पसंद और कम्युनिस्ट विचारधारा वाले स्वतंत्रता सैनानी की हुब्ब-ए-वतन की शानदार विरासत है। घटनास्थल मामू-भांजा अंग्रेजों के खिलाफ जान की बाजी लगाने वाले बहादुर योद्धा एक मामा और उसके दो भांजों की वीरगाथा की याद उनकी कब्र को आज संजोए-संभाले हुए। जिसके सामने हिन्दू – मुस्लिम दोनों अपना सिर झुकाते हैं। ऊपरकोट की प्रसिद्धि जामा मस्जिद 1857 के गदर में शहीदों की याद में आज भी अलीगढ़ की शान है। रेलवे लाइन के किनारे 750 साल पुरानी बाबा बरछी बहादुर की दरगाह जहां हिन्दू -मुस्लिम हर वर्ग धर्म के लोग आकर मुराद मांगते हैं।
ऐसे में अलीगढ़ सांप्रदायिक दंगों का शहर कैसे बन गया? शिक्षा के विश्वविद्यालय और उद्योग शायद उसी इलाके बनाए जाते रहे जहां लोगों में सद्भाव, शिक्षा और मेहनत के प्रति ईमानदारी भरा माहौल हो | अलीगढ वासियों की इसी खूबी को देखकर 1870 में इंग्लैंड की जॉनसन एंड कंपनी ने यहां ताले बनाने का कारोबार शुरू किया। अलीगढ़ दिल्ली के नजदीक जीटी रोड और दिल्ली-कानपुर लाइन पर होने की वजह से पहले से ही व्यापारिक शहर रहा है। यहां बाहर व्यापारी आते थे, जिनके ठहरने के लिए 1909 में 126 सराय थीं। जिनके आसपास आज सराय हकीम, सराय रहमान, सराय सुल्तानी, सराय लवरिया, सराय बेर, सराय भूखी मौहल्ले बस गए और ये मौहल्ले आज भी उन्हीं सरायों के नाम से जाने जाते हैं। इस शहर की तहजीब को देखकर ही 1875 में सर सैय्यद अहमद खान ने यहां अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की नींवरखी। जिसके लिए छतारी के नबाव और मुरसान के राजा ने मिलकर जमीनें दान की। उद्योग के क्षेत्र में प्रसिद्ध स्लीपवेल गद्दे बनाने वाली शीला फोम, पेटीएम के संस्थापक विजय शेखर, सिप्ला फार्मा अलीगढ़ की प्रमुख आधुनिक देने हैं। फिर किसकी बुरी नजर इस शहर के माहौल को बार-बार बिगाड़ने पर तुली है। इसकी पड़ताल के लिए अलीगढ़ में पिछले कुछ सांप्रदायिक दंगों और घटनाओं का जिक्र और अध्ययन किया जाना जरूरी है।
आजादी के बाद अलीगढ़ में पहला दंगा 71 में लोकसभा चुनाव के दौरान हुआ | एक हफ्ते तक कर्फ्यू रहा था। मतदान आगे बढ़ा | उसके बाद खेरेश्वर में तुर्राह शाहरा मुस्लिम अखाड़ा और शांतिकुंज अखाड़ा के बीच जिला केसरी के लिए दंगल को मुख्य मुद्दा बनाकर भूरा पहलवान की हत्या के बाद दंगा भड़का | 1980 में एक मीडियाकर्मी की हत्या के बाद दंगा हुआ। 1990 जब देश में भाजपा-आरएसएस की भगवा लहर उठीं | तब से अलीगढ़ सांप्रदायिक दंगों की आग में झोंका गया | 1990, 1991 में एक-एक महीने कर्फ्यू रहा | 1990 के दंगों के समय भी पीयूसीएल ने रिपोर्ट जारी की थी। उस रिपोर्ट में बताया गया कि 7 दिसंबर से 10 दिसंबर के बीच पीएसी की गोलियों और उग्र हिन्दुत्ववादियों के द्वारा 92 से अधिक मुसलमान मारे गए थे। बाबरी विध्वंस के बाद 1992 में अलीगढ़ में कोई दंगा नहीं हुआ, फिर भी एक महीने कर्फ्यू रहा। गोधरा कांड के समय 25 दिन कर्फ्यू रहा | 2003 में रोरावर में रास्ते विवाद पर दंगा भड़काने की कोशिश हुई, एक माह कर्फ्यू रहा। 2006 में दही वाली गली और सब्जी मंडी में रामनवमी पर मुस्लिम इलाके में जबरन सजावट करने और रात्रि जागरण पर विवाद के बाद दंगा भड़का | इस दंगे में पहली बार ऐसा हुआ कि किसी गरीब रिक्शेवाले या दूध-सब्जी वाले के अलावा भाजपा विधायक देवकीनंदन कोली के बेटे और संघ के नेता ओ पी लाला की मौत अज्ञात शूटर द्वारा हुई थी |
अलीगढ़ में दंगों को भड़काने में हमेशा संदेह के घेरे में रहने वाले भाजपा से विधायक कृष्णकांत नवमान भी रहते थे। 2006 के बाद अलीगढ़ में कर्फ्यू नहीं लगा, छिटपुट घटनाएं जरूर हुई | मोदी शासन के दौरान फिर से एक बार सांप्रदायिक तनाव की घटनाएं होने लगीं। 2015 में मौहल्ला खटीकान में गोवर्धन पूजा के दौरान फायरिंग में एक मौत, 2016 में बाबरी मंडी में गोवर्धन पूजा पर जमकर फायरिंग हुई |
2017 में रेलवे रोड पर दो भाइयों की हत्या के बाद ऊपरकोट पर पुलिस से तनाव हुआ | 2019 में सांसद सतीश गौतम की शह पर एएमयू में जिन्ना तस्वीर को लेकर और 2020 में सीएए-एनआरसी प्रकरण को लेकर शहर में हिन्दुत्व वादी संगठनों और भाजपा नेताओं के साथ मुस्लिम समुदाय का टकराव हुआ | इसी दौरान ऊपर कोट पर भी टकराव हुआ, जिसमें तारिक के गोली लगी थी।
मामू भांजा घटना की तरह उस समय भी एक वायरल वीडियो में भाजपा युवा मोर्चा के महानगर मंत्री विनीत वार्षणेय को तारिक को गोली मारते देखा गया | पुलिस को विनीत की गिरफ्तारी करनी पड़ी थी | 2015 से अब तक की घटनाओं के बाद दंगें भड़काने की मंशा रखने वालों में संदेह के घेरे पूर्व मेयर शकुंतला भारती, वर्तमान शहर विधायक मुक्ता राजा के दिवंगत पति संजीव राजा, सांसद सत्तीश गौतम सहित कई भाजपा नेता अगली पंक्ति में रहते हैं| शकुंतला भारती 2006 दंगों में कनवरीगंज के फर्श पर एक व्यक्ति मोहम्मद आजम की हत्या में आरोपी थी। गवाह के मुकरने के चलते अदालत से बरी हुई थी। संजीव राजा को 2022 में दंगा करने, सरकारी कर्मचारी को जानबूझकर चोट पहुंचाने के मामले में दो साल की कैद और 14 जुर्माने की सजा हुई | अब उनके बाद उनकी पत्नी मुक्ता राजा दंगा भड़काने की उसी राजनीति की ओर अग्रसर हैं। 2022 में विधायक बनने के बाद मामू भांजा प्रकरण के दौरान दंगा भड़काने और पुलिस प्रशासन को डराने-धमकाने वहीं दूषित राजनीति कर रही हैं।
जांच टीम का अलीगढ़ के सांप्रदायिक दंगों और तनाव को लेकर विश्लेषण से तस्वीर साफ है कि दंगों के पीछे एक ही विचारधारा का लोग और संगठन है, जिनका संबंध भाजपा-आरएसएस है।
जन प्रतिक्रिया
पिछले 10 सालों से आमजन मानस में डर का माहौल है, बुद्धिजीवी, पत्रकार, विपक्ष के नेता सच कहने से डरते हैं। लोकसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान ‘राहुल गांघी’ ने इसी डर की ओर इशारा भी किया। उन्होंने दंगों में भूमिका अदा करने वाले भाजपा-आरएसएस और उनके पोषित लंपटी संगठनों के हिन्दू होने पर संदेह जाहिर किया, यही देश में हिंसा और डर फैलाने का काम करते हैं। इन्हीं के डर से मामू भांजा की घटना पर वक्तव्य देने से लोग कतरा रहे हैं, नाम न छापने की शर्त पर तमाम शिक्षकों, चिकित्सकों, दुकानदार-व्यापारियों, लेखकों -पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने फरीद की मौत का कारण मॉब लीचिंग बताया । हत्यारोपियों द्वारा मृतक चोरी के लिए रैकी, कभी लूट-बलात्कार का आरोपी बनाना बेबुनियाद है, सच पर पर्दा डालने की कोशिश है। पुलिस बेशर्मी के साथ हत्यारोपियों के पक्ष में खड़े सत्ता पक्ष के दबाव में मृतक फरीद को डकैत बनाकर दोषियों को बचाने में जुटी है |
इससे बाबजूद हमें कुछ विशिष्ट लोगों की प्रतिक्रिया उनके परिचय के साथ मिली जो प्रस्तुत हैं –
कामरेड डॉ. गिरीश भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य
डॉ. गिरीश ने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, “अलीगढ़ महानगर के मोहल्ला मामूभांजे में गत 18 जून 2024 को अल्पसंख्यक समुदाय के युवक की भाजपा समर्थकों द्वारा पीट पीट कर की गयी हत्या बेहद निंदनीय है। पुलिस द्वारा हत्या के आरोप में गिरफ्तार किये गये लोगों को निर्दोष बताते हुये उनकी बिना शर्त रिहाई की मांग को लेकर भाजपाइयों द्वारा की गयी सड़क जाम की कार्यवाही भी कम निन्दनीय नहीं है।
युवक की इस लक्षित हत्या के लिए बहाना बनाया गया कि उक्त युवक चोरी करने आया था। यदि यह बात सच भी है तो, सवाल उठता है कि उसे पुलिस के हवाले क्यों नहीं किया गया। कुछ लोगों को कानून हाथ में लेने का अधिकार आखिर किसने दिया।
हम सभी जानते हैं कि मामूभांजा मोहल्ला और उसके आसपास का क्षेत्र लम्बे समय से सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील है। 1977 में चंद्रा टाकीज का एक गेट पीछे घनी मुस्लिम आबादी में खोले जाने को लेकर वहां बड़ा सांप्रदायिक दंगा हुआ था, जिसमें अधिकतर अल्पसंख्यक समुदाय को जान माल की हानि उठानी पड़ी थी। उस समय केंद्र और प्रदेश में आरएसएस की भागीदारी वाली जनता पार्टी का शासन था, आरएसएस के हौसले सातवें आसमान पर थे। यह दंगा कई महीने तक चला। सैकड़ों लोग गिरफ्तार हुये थे जिनमें अधिकतर मुस्लिम समुदाय के थे। सिनेमाहाल और उसका गेट संवेदनशील अल्पसंख्यक आबादी में खोलने की इजाजत तत्कालीन मुख्यमंत्री की शह पर दी गई थी। वही मुख्यमंत्री जब दंगों का जायजा लेने के नाम पर अलीगढ़ पहुंचे, तो मेरे नेतृत्व में आल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन (AISF) के प्रतिनिधिमंडल ने मिलकर उन्हें वस्तुस्थिति से अवगत कराते हुए ज्ञापन सौंपा। इस पर मुख्यमंत्री भड़क गये और हम 6 छात्र- युवा कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर जेल भिजवा दिया गया था, हम 17 दिन बाद जमानत पर रिहा हुए। इस घटना का जिक्र यह बताने के लिए किया है कि तभी से यह इलाका बेहद संवेदनशील है और जब भी अलीगढ़ में सांप्रदायिक वारदातें होती हैं, इस क्षेत्र में जरूर कुछ न कुछ घटता है। इस मोहल्ले की गैर मुस्लिम आबादी भी बेहद सांप्रदायिक है और यह क्षेत्र भाजपा का गढ़ है। घटना से चन्द दिन पहले लोकसभा के चुनाव हुये थे, और मुस्लिम समुदाय ने बड़े पैमाने पर भाजपा को हराने को वोट दिया था। इसके लिये स्वयं भाजपा जिम्मेदार है जो अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने का कोई मौका नहीं चूकती। 4 जून को लोकसभा चुनावों के नतीजों में भाजपा की किरकिरी से उसके समर्थक बौखलाहट में थे। वे देश प्रदेश में हुई इस हार के लिए मुसलमानों को भी जिम्मेदार मान रहे थे। इस कारण उत्तर प्रदेश में चुनाव परिणामों के बाद कई मुस्लिम और दलितों की हत्यायें हुई हैं। अलीगढ़ की वारदात भी उनमें से एक है।
उल्लेखनीय है कि जब-जब भाजपा संकट में होती है, ताकत हासिल करने को सांप्रदायिकता को औजार बनाती है। जिसकी आग का ईंधन समुदायों के गरीब गुरबे बनते हैं। घटना के बाद अलीगढ़ के जिला प्रशासन ने अपेक्षाकृत उचित कदम उठाए मगर भाजपा ने उन्हें दबाव में लेने की पूरी कोशिश की | ऐसे लोगों के विरुद्ध कड़ी से कड़ी कार्यवाही की जानी चाहिए। संवेदनशील इलाकों में सांप्रदायिक तत्वों खास कर भाजपाइयों पर कड़ी नजर रखी जानी चाहिए | कोई घटना अथवा तनाव होने पर त्वरित कानूनी कदम उठाए जाने चाहिये । क्षेत्र में धर्मनिरपेक्ष और उदार दृष्टिकोण रखने वाले नागरिकों को लेकर सद्भावना समिति गठित की जानी चाहिए | मृत अल्पसंख्यक युवक के परिवार को न्याय दिलाने को समुचित जनहानि राशि दिये जाने सहित अन्य कदम उठाया जाना परमावश्यक है |”
कॉमरेड इृदरीस
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) सीपीएम के कॉमरेड इृदरीस के अनुसार “ये मामला हत्या की परिधि में आता है क्योंकि एक निहथे व्यक्ति को पहले पकड़ा और जब वो पूरी तरह आत्मसमर्पण कर चुका था, तब भी लोहे की रोड, डंडे, लात-घूसों से जान से मारने के उद्देश्य से उस पर लगातार वार करते रहे। अगर मान भी लिया जाए कि वो चोरी के उद्देश्य से आया था, तब उसको पकड़ने के बाद किस अधिकार से मार रहे थे, उसे पकड़ने के बाद पुलिस बुलाने का पर्याप्त समय था। यह भीड़ द्वारा एक व्यक्ति तो सांप्रदायिक भावना से, किसी व्यक्ति की समान उच्देश्य से हत्या के आपराधिक कृत्य की श्रेणी में आता है। इसलिए यह भीड़ द्वारा की गई हत्या है।”
के. बी. मौर्य
मानव सेवा दल संस्थान के अध्यक्ष के. बी. मौर्य का कहना है, “मामू भांजा में मुस्लिम व्यक्ति को चोर बताकर की गई निर्मम हत्या न सिर्फ निंदनीय है बल्कि जनपद की गंगा-जमुनी तहजीब को शर्मसार व कलंकित कर देने वाली घटना है।
शायर मोहम्मद इकबाल ने बहुत खूब लिखा है, “मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिन्दी हैं हम वतन है हिंदोस्तां हमारा” कितु स्वार्थ और सत्तालोलुप कुछ राजनेता इस संस्कृति को मिटा देना चाहते हैं, ताकि साम्प्रदायिक और धर्मिक ध्रुवीकरण बना रहे और वो आसानी से सत्तासीन होते रहे। भाजपा और उसकी जनक आरएसएस इसी नीति पर चलकर देश की सत्ता में बने रहना चाहते है। इस तरह की घटनाओं को अंजाम दिलाकर ये एक तीर से कई निशाने साधना चाहते हैं, एक तो यह कि ये देश भर में साम्प्रदायिक और धार्मिक उन्माद फैलाकर ये ध्रवीकरण बनाए रखना चाहते हैं और दूसरा यह कि आम नागरिकों के मूलभूत मुद्दों से ध्यान भटकना |
आरएसएस और भाजपा के इस चरित्र से सभी जागरूक नागरिक भली भांति परिचित हैं। इस तरह की पुनरावृत्ति रोकने के लिये और सांप्रदायिक व धार्मिक ध्रुवीकरण कर सत्ता में पहुंचने वाले राजनीतिक दलों के कृत्सित अरमानों पर पानी फेरने के लिये दो काम होने निहायत ही जरूरी हैं| एक तो यह पुलिस-प्रशासन निष्पक्ष और निडर होकर न्यायसंगत कार्रवाई कर दोषी लोगों को कड़ी से कड़ी सजा दिलाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाए और दूसरा यह कि देशभर के नागरिक अपनी बुद्धि और विवेक का इस्तेमाल कर राजनीतिक षड्चंत्र का शिकार होने से बचे और सरकार से अपने मूलभूत मुद्दों से जुड़े सरोकारों पर सवाल करे। रोजगार, मंहगाई, शिक्षा, चिकित्सा से जुड़े मुद्दों पर सवाल करें।
ओ. पी. शर्मा
आल इंडिया लायर्स यूनियन के वरिष्ठ अधिवक्ता ओ.पी.शर्मा मामू भांजे की घटना के बारे पुलिस का सत्ता पक्ष के दबाव में काम करना लोकतंत्र की हत्या बताया | मृतक और उसके भाई को लूट और डकैती को दोषी बनाकर मॉब लीचिंग के दोषियों को बचाने की साजिश चल रही है।
पीयूसीएल की सरकार से मांग
- मामू भांजे प्रकरण की न्यायिक जांच हो।
- सभी हत्यारोपियों तत्काल गिरफ्तारी हो, ताकि साक्ष्य और गवाहों के मिटाने की उनकी मंशा को रोका जा सके।
- सरकार सत्ता पक्ष या अन्य द्वारा प्रशासन-पुलिस को बिना दबाव के कार्यवाही करना सुनिश्चित करें |
- मॉब लिचिंग, सांप्रदायिक दंगों को भड़काने और बढ़ावा देने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई हो |
- मृतक के परिवार को सुरक्षा और पुनर्वास के लिए आवश्यक आर्थिक मदद और सरकारी नौकरी दी जाए।
प्रेषक मानस भूषण
