छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के दमन की कहानी हिमांशु कुमार की कलम से

18 जनवरी को पिड़िया गांव गंगालूर थाना ज़िला बीजापुर छत्तीसगढ़ में डीआरजी फोर्स के सिपाही बारह बजे दोपहर को पहुँचे। हुंगी और ईदो नाम की दो अविवाहित आदिवासी लड़कियां मिलकर घर में धान कूट रही थीं। सिपाहियों ने दोनों लड़कियों को पकड़ा और घर का सामान लूटने लगे । इन लड़कियों की बहनों ताई और बुआ को बुरी तरह मारा। ईदो ठीक से ना बोल पाती है ना खाना खा पाती है उसका इलाज चल रहा था । उसे भी बन्दूक के बट से मारा और हुंगी के साथ फर्जी नक्सली केस बनाकर जेल में डाल दिया ।ईदो की बुजुर्ग बुआ को इतना मारा कि उनका हाथ टूट गया । ताई और दो बहनों को इतना मारा कि डन्डा टूट गया । एक बहन मुझे यह सब बताने अपने परिवार के साथ चलकर नहीं आ पाई । पूरा परिवार 20 किलोमीटर पैदल चलकर मुझे यह सब बताने आये हैं । डीआरजी के सिपाही जिसमें मनीष मंगल और बदरू को गांव वाले पहचानते हैं इनके साथ एक सौ सिपाही और थे। इन सिपाहियों का दल पिड़िया गांव से लौटकर इरमागोंडा गांव के कारम पोदिया के पांव में गोली मार दी । इसुनार गांव के कुरसम गुड्डू को पकड़ लिया उसे भी फर्जी नक्सली केस बनाकर जेल में डाल दिया । सिपाहियों नें आदिवासियों के घर में रखी शराब लूट कर पी ली । लौटते समय रात के समय बुर्जी गांव में चल रह आंदोलन स्थल में पहुंच कर इन सिपाहियों ने आदिवासियों को डन्डों से मार मार कर घायल कर दिया । आंदोलन में शामिल पढ़े लिखे आदिवासी युवकों ने मानवाधिकार कार्यकर्ता व वकील बेला भाटिया को फोन करके हमले की सूचना दी । बीजापुर एसपी ने गाड़ी भेज कर इन नशे में धुत्त सिपाहियों को वहाँ से हटवाया वर्ना यह लोग नशे में गोली चला कर अनेकों आदिवासियों की हत्या कर सकते थे ।

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