मेवात में साम्प्रदायिकरण – एक सांस्कृतिक अध्ययन :- राजाराम भादू (भाग – ४)

अध्याय -1 राजस्थान का साम्प्रदायिक परिदृश्य 

अध्याय -2 मेवातः इतिहास बनाम आख्यान

अध्याय -3 1857 और 1947: सहमेल और विपर्यय

अध्याय -4 6 दिसम्बर 1992 और उसके बादः दुःस्वप्न की वापसी

अध्याय -5 साम्प्रदायिक ध्रुवीकरणः समाजार्थिक व सांस्कृतिक कारक

अध्याय -6 साम्प्रदायिकता के प्रतिकार के उपक्रम

अध्याय -7 शांति और सह-जीवन: प्रस्‍तावित कार्ययोजना व रणनीतियां

6 दिसम्बर 1992 और उसके बादः दुःस्वप्न की वापसी

मनोवैज्ञानिकों का शोध हमें दिखाता है कि ट्रोमा या सदमा उसके पीड़ितों के लिए कभी बीतता नहीं। राॅबर्ट लिंफटन हिरोशिमा के पीड़ितों पर अपनी पुस्तक ’डेथ इन लाइफ’ में लिखते हैं कि किस तरह सदमा सपनों में दोबारा मंडराता है। विभाजन का दुःस्वप्न मेवात में बाबरी मस्जिद ध्वंस के बाद जीवित यथार्थ होने लगता है। 6 दिसम्बर 1992 के बाद में साम्प्रदायिकता का एक नया दौर शुरु होता है। हरियाणा के मेवात क्षेत्र में 1947 में वैसी मारकाट नहीं हुई थी जैसी राजस्थान के मेवात क्षेत्र में। हरियाणा मेवात का दिल्ली से सटा अधिकांश क्षेत्र ब्रिटिश शासन के अधीन था जहां विभाजन के समय कानून व व्यवस्था की स्थिति  बेहतर थी। इसीलिए यहां अलवर व भरतपुर से विस्थापित मेवों ने शरण ली थी। 6 दिसंबर के बाद हरियाणा के मेवात क्षेत्र में हुई साम्प्रदायिक घटनाएं इस लिहाज से चिन्ताजनक हैं।

7 दिसम्बर से 13 दिसम्बर 1992 तक नूंह, पुन्हाना और नगीना कस्बों में सिलसिलेवार हिन्दुओं के पूजास्थलों पर हमले हुए। एक तेल मिल तथा एक गौशाला जला दी गयी। 13 दिसम्बर तक इस क्षेत्र में हुए दंगों के सिलसिले में 337 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। तथापि इस घटनाक्रम को व्यापक दंगे नहीं कहा जा सकता। ये हिन्दुओं के पूजा-स्थलों पर किये गये हमले थे। ये मांगीखेड़ा, पिनगवां, नगीना, भादस, नूह व पुन्हाना में किये गये। जहां इस तरह की घटनाएं हुईं, वहां पुलिस मौजूद थी लेकिन उसने इन्हें रोकने की कोशिश नहीं की। यह गनीमत थी कि यह आक्रमक प्रवृत्ति क्षेत्र के गांवों तक नहीं फैली जहां हिन्दू अल्पमत में हैं और वहां पुलिस व अर्ध सैनिक बलों का पहुंचना भी ज्यादा मुश्किल था।


भारतीय जनता पार्टी और संघ परिवार ने इस साम्प्रदायिक तनाव का पूरा फायदा उठाया। उजीना प्रकरण साम्प्रदायिक राजनीति की एक मिसाल है। उजीना में भीड़ ने एक गाड़ी को घेर लिया और गाड़ी को सवारियों सहित आग लगा दी। इसमें सवार चार आदमी (जो मुस्लिम थे) जलकर मर गये। यह आम धारणा है कि उजीना में उग्र भीड़ का नेतृत्व यहां के सरपंच सूरजपाल ने किया जो राष्ट्रीय स्वयं सेवक का कार्यकर्ता था और भाजपा से सम्बन्धित था। बाद में संघ संगठनों से इसे ’शेरे मेवात’ की उपाधि से नवाजा। आने वाले विधानसभा चुनावों में इसे भाजपा के टिकिट पर तावडू प्रत्याशी बनाया गया और इसने जीत हासिल की। तावडू ही ऐसी विधानसभा है जिसमें 55 प्रतिशत हिन्दू और 45 प्रतिशत मेव मतदाता हैं। सूरजपाल ने हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण करने में सफलता पायी थी और इसमें उजीना हत्याकाण्ड का प्रत्यक्ष योगदान था।

हरियाणा के मेवात में मुख्य मार्गों पर स्थित नूह, पुन्हाना और भादस जैसे कस्बों में वाणिज्यिक गतिविधियों पर हिन्दुओं, विशेषकर वैश्य व सिन्धी-पंजाबियों, का वर्चस्व रहा है। दिसंबर, 1992 की साम्प्रदायिक घटनाओं के बाद मेव नेताओं ने हिन्दुओं के आर्थिक बहिष्कार का नारा दिया। यह निर्णय बाकायदा हरियाणा मेव पंचायत बुलाकर किया गया। इसका असर कस्बे के हिन्दू व्यापारियों, दुकानदारों पर ही नहीं बल्कि देहात में हिन्दुओं की आर्थिक गतिविधियों तक पर हुआ। इन हिन्दु व्यापारी-दुकानदारों में कुछ लोग भाजपा समर्थक थे। बाकी लोगों ने कांग्रेस के नेताओं पर दबाव डाला। मुख्यमंत्री को इस मामले में दखल करना पड़ा। मेवात के दो मंत्रियों- इलियास व शकरुल्ला खां- ने 18 मार्च 1993 को आर्थिक बहिष्कार खत्म करने की पिनगवां पंचायत में घोषणा कर दी। इस पर राजनीति में लम्बे समय से प्रतिद्वन्द्वी रहे तैयब हुसैन और खुर्शीद अहमद एक हो गये और उन्होंने आर्थिक बहिष्कार के समर्थन में 4 अप्रैल 1994 को सालाहेडी गांव में पंचायत बुलायी। अन्ततः आर्थिक बहिष्कार अघोषित रूप से समाप्त हो गया।

हरियाणा के मेवात में आर्थिक बहिष्कार के मुख्यतः दो परिणाम सामने आये। पहला, मेवात के कस्बे और गांव के समृद्ध व्यापारी घरानों ने दिल्ली, गुडगांव, फरीदाबाद, पलवल और बल्लभगढ़ जैसे गैर-मेवात इलाकों की ओर रुख किया और वहां अपना कारोबार जमाना आरंभ कर दिया। हालांकि इन्होंने मेवात में भी अपना कारोबार जारी रखा। लेकिन अनेक छोटे व्यापारी-दुकानदार मेवात-विशेषकर देहाती इलाके से पलायन भी कर गये। दूसरे, मेव समुदाय के लोग वाणिज्यिक गतिविधियों के क्षेत्र में उतरे और इस अल्पकाल के मुनाफे से ही उन्होंने अपना कारोबार जमा लिया जिसे आज भी चला रहे हैं।

पांचवे अध्याय के लिए जुड़े रहें….

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