सामाजिक कार्यकर्ता गांधीवादी विचारक सवाई सिंह के साथ वर्त्तमान राजनितिक परिस्थियों और 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों पर इंटरव्यू

प्रश्न : प्रगतिशील ख़ेमे के बहुत से लोगों का मानना है कि इस बार के 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव बहुत ही महत्वपूर्ण हैं ये चुनाव देश का आगे आने वाला भविष्य तय करेंगे । इस पर आपकी राय?

उत्तर: 2024 में लोकसभा के चुनाव होने जा रहें हैं। हम लोग अपना भविष्य तय करते हैं इस चुनाव में। और वो भविष्य इस तरह से तय करना होगा कि कौन जनहित में नीतियाँ बनाता है और कौन बड़े पूँजीपतियों के हित में ये तय करना पड़ेगा। ये सभी को मिलकर तय करना होगा । हम सबने देखा ही कि पिछले दिनों भी कुछ एसी नीतियाँ आयी जिसके कारण देश के अन्नदाता को 13 महीनों तक सड़कों पर बैठना पाड़ा, जिसमें लगभग 700 से ज़्यादा किसान शहीद हुए। आज़ादी के आंदोलन के बाद ये ये ही सत्याग्रह है जो इतना लंबा चला। और ये इस लिए हुया कि सत्ता में बैठे लोग चंद पूँजीपति घरानों को लाभ पहुँचाने के लिए एसी नीतियाँ बनाए जिससे देश जन और मुख्यरूप से किसान प्रभावित हो तो ये देश के हित में नहीं है।इधर मज़दूरों के ख़िलाफ़ भी बहुत से क़ानून आ गए जिसमें उनके बहुत से अधिकारों का हनन होगा. यानी की इस देश का जो असली निर्माता है यहाँ के किसान मज़दूर, आम नागरिक अगर उन पर नीतियों का नकारात्मक प्रभाव पड़ता है तो उसे देशहित की नीतियाँ नहीं कही जा सकती। आप देखिए आज खाने की वस्तुओं पर भी GST लागू है । अंग्रेज़ी राज में नमक पर टेक्स लगाया गया था जिसके ख़िलाफ़ गांधी जी के नेतृत्व में बहुत बड़ा आंदोलन चला और अंग्रेज़ी सरकार को नमक पर से टेक्स को वापस लेना पड़ा था, लेकिन आज हम सब बर्दाश्त कर रहें हैं हम ये भी बर्दाश्त कर रहें हैं कि Airport, रेल , बैंक, बीमा जो सार्वजनिक क्षेत्र में हुया करते थे उन्हें अब निजी क्षेत्र में बेचा जा रहा है। तो ये देश हित में नहीं है आज बैंक से आम नागरिकों को जो सहूलियतें मिलती हैं अगर उन्हें निजी कर दिया जाएगा तो वह कैसे संभव हो पाएगा क्यों कि निजी क्षेत्र वाले तो ज़्यादा से ज़्यादा कमाई का प्रयास करेंगे। आप यही देख लीजिए जयपुर एयरपोर्ट का नीजीकरण हुया नीजीकरण से पहले वहाँ चाय 20 रुपय की मिलती थी लेकिन अब 200 रुपय की मिलती है। तो निजीकरण कभी भी जनहित में नहीं हो सकता। दूसरी तरफ़ समाज में नफ़रत फैलाकर जो ताकते जनता को बाटने का काम करती है वो उस तरह से ही कर रही हैं जैसे अंग्रेज करते थे फूट डालो और राज करो। और इस नफ़रत की राजनीति के कारण आज हमारी लोकतांत्रिक प्रणाली का बहुत ही विक्रत स्वरूप सामने आ रहा है। हमने वो दौर भी देखा है जब कुछ समय के लोकतंत्र को ख़त्म किया जा रहा था हमने उसके परिणाम देखे हैं । लेकिन आज तो अघोषित आपातकाल है । तो आज हमारे सविधान पर हमारे लोकतंत्र पर ख़तरा है। इस लिए 2024 का चुनाव एक लाइन तय करेगा कि हम को कैसा भारत चाहिए । हमें कुछ चंद लोगों का ही भारत चाहिए या फिर सबका भारत चाहिए।

प्रश्न: आपने इंद्रा गाँधी के आपातकाल का ज़िक्र किया आपने तो वह दौर भी देखा है आज जो देश का राजनीतिक माहौल है क्या वो वैसा ही है या उससे अलग है?

उत्तर: बिलकुल हमने तो वह दौर देखा है । आपातकाल के समय जो स्थिति हुयी उसे भुगता है। तो हम आज उसी दिशा में बड़ रहें हैं । अभी कुछ ही दिनों पहले पत्रकारों पर ED का छापा डाला गया । आज जो भी असहमत है उस पर ED का छापा पड़ना, गिरफ़्तार करना उस पर और दूसरी कार्यवाही करना ये अब एक सहज सी बात हो गयी है। ये सब आपातकाल की ही याद दिलाता है। जो भी इनसे असहमत है जो बोलता है, पढ़ता है लिखता है उसे बर्दाश्त नहीं किया जा रहा है । सचाई को बर्दाश्त ना करना ही आपातकाल है। अब तो अन्ध्भक्तों की एक जमात भी तैयार कर दी गयी है जो इनकी तानाशाही और ग़लत नीतियों का समर्थन करती है। आपातकाल में एसी स्थिति नहीं थी। उस समय अन्ध्भक्त लोग नहीं थे। आपातकाल में हमने देखा की आपातकाल लगाने वाली पार्टी के ही कई नेता जैसे कि चंद्रशेखर , मोहन धारियाँ एसे कई लोग थे जो आपातकाल के ख़िलाफ़ खड़े हुए । लेकिन आज वो स्थिति नहीं है। तो आज उससे ज़्यादा गम्भीर चुनौती का समय है।

प्रश्न: आप कह रहें हैं कि नफ़रत फैलाने वाली ताक़तों को रोकना ज़रूरी है लेकिन रोकेंगे कैसे। उनके पास बड़ा संगठन है, मीडिया है आप के पास क्या कोई ठोस रणनीति है?

उत्तर: आपका कहना है कि नफ़रत फैलाने वालों के पास बहुत बड़ा संगठन है । मैं ऐसा नहीं मानता । हाँ ये ज़रूर है कि इनके पास सोशल मीडिया पर लोग है जो अंटी सोशल काम करते हैं। लेकिन हमें तो सीधा जनता के बीच में जाना है। वो नफ़रत फैलाये हम मोह्हवत का पैग़ाम लेकर जाएँगे। मुझे लगता है कि समाज को जो तोड़ने का काम कर रहे हैं उससे अधिक लोग हैं जो समाज को जोड़ने का काम करते हैं। बस उनको और अधिक सक्रिय होना पड़ेगा। क्यों कि झूट के पैर ज़्यादा लंबे नहीं होते हैं। बस अच्छे और सच्चे लोगों को ज़्यादा सक्रिय होने की ज़रूरत है। आप इन अंधभक्तों से तर्क करो तो उनके पास कोई तर्क नहीं है । उनके पास कोई तथ्य नहीं मिलेंगे। वो सिर्फ़ बिना तथ्यों के WhatsApp पर झूट को फैलाते रहते हैं दिन रात। इन लोगों की मानसिकता है एसी बनी हुयी है जिनको नफ़रत फैलाना अच्छा लगता है। जिनकों अपराध और शोषण करना अच्छा लगता है। ऐसी मानसिकता वाले लोग हैं। तो उनके ख़िलाफ़ तो जो बड़ी संख्या में लोग है जो मोहब्बत प्यार सद्भाव को मानते हैं उन लोगों को सक्रिय होना पड़ेगा।

प्रश्न: आप चुनावों में प्रत्यक्ष रूप से किसी का समर्थन करेंगे?

उत्तर: हम किसी का भी डायरेक्ट समर्थन नहीं करते हैं । जैसा की गांधी जी ने एक दफ़ा अपने साथियों को बोला था की आप जनता के बीच जाए और सच्चाई बताए। तो हमें भी बस ये ही काम करना है। सच्चाई बतानी है बस । चुनावों में ये ही हमारी भूमिका रहेगी बस । हमारा किसी भी राजनीतिक दल से कुछ भी लेना देना नहीं है। हम तो सिर्फ़ जनता के बीच में जाकर सच्चाई बताने का काम करेंगे ।

श्री सवाई सिंह, गाँधीवादी विचारक और राजस्थान समग्र सेवा संघ के अध्यक्ष हैं।

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