जेल में बंद जनपक्षीय पत्रकार रुपेश कुमार की जीवनसाथी ईप्सा शताक्षी से साक्षात्कार

01. रूपेश कुमार के जीवन के बारे में एक बार संक्षिप्त में बताएं। जैसे उनका जन्म उनकी पढाई अदि के बारे में ?

ईप्सा– रूपेश का जन्म 3 सितम्बर 1985 को बिहार के भागलपुर जिले में गांव – बकचप्पर में हुआ और वहीं उन्होंने राजकीय मध्य विद्यालय से 8वीं तथा मोद नारायण उच्च विद्यालय, अम्बा से 2001 में 10वीं तथा मोद नारायण इंटर कालेज से 2003 में इंटर (कला) करने के बाद वे गांव से भागलपुर चले गए, जहां बी.एन. कालेज में BA में एडमिशन ले लिया और साथ ही छात्र राजनीति में सक्रिय हो गए।2003-2006 में स्नातक तथा 2010-2012 में तिलका मांझी भागलपुर यूनिवर्सिटी से स्नातकोत्तर पूरा हुआ। इसी दौरान 2003 से 2006 के बीच ऑल इण्डिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आईसा) के नगर अध्यक्ष, जिला अध्यक्ष एवं विश्वविद्यालय संयोजक रहे तथा बिहार राज्य कार्यकारिणी सदस्य व राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रहें। वर्ष 2006-2012 के बीच में भाकपा माले (लिबरेशन) में भागलपुर के जिला कार्यकारिणी सदस्य, नवगछिया अनुमंडल प्रभारी, इनौस (इंकलाबी नौजवान सभा) के भागलपुर जिलाध्यक्ष, बिहार राज्य कार्यकारिणी सदस्य और राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य रहे।

उन्होंने 2013 से पत्रकारिता की शुरुआत की। जनपक्षीय और जमीनी पत्रकारिता करने के कारण सत्ता की नजर में चुभने वे लगे। 2016 से ही (जब से हमारी शादी हुई) रूपेश झारखंड के आंदोलनो, संघर्षों,मूल समस्यों पर लिखते रहे, परन्तु 2019 में पुलिस द्वारा पहले अपहरण एवं बाद में इसे गिरफ्तारी दिखाकर न केवल इनके 6 महीने पूरी तरह बर्बाद कर दिये, बल्कि घर में किताब लिखने को इकठ्ठा किए गए आंकड़ों को भी उठा ले जाया गया।

rupesh kumar being arrested by police
रुपेश कुमार को गिरफ्तार करके ले जाती पुलिस

हालांकि जेल से रिहा होने पर इन्होंने जेल जीवन में जो देखा उसे जेल डायरी “कैदखाने का आइना” की शक्ल में सामने रखा।

सरकार को इनसे इतना भय है कि इनके मोबाइल में स्पाई वेयर डाला गया साथ ही मेरे और घर के एक और सदस्य के फोन में भी जासूसी की गई। इससे भी न हुआ तो 17 जुलाई 2021 को हमारे घर पर सुबह 5 बजे 7 बोलेरो और स्कार्पियो गाड़ी से लगभग 60-70 पुलिस वाले जिनमें हथियार बंद जवान भी शामिल थे, आ धमके। उनके गेट खटखटाने से ही मैं, रुपेश और इनके पापा जगे। पुलिस हमारे घर का सर्च वारंट लेकर आई थी और सर्च के बहाने आकर बाद में अरेस्ट वारंट दिखा रुपेश को गिरफ्तार कर चली गई। पुलिस कुल मिलाकर 9 घंटे हमारे घर में मौजूद रहीं। इस दौरान मैं तो ब्रश तक भी नहीं की थी। शौच लगने के बावजूद भी नहीं गई कि पता नहीं इतनी ही देर में ये पुलिस वाले क्या गुल खिला दें। रुपेश की गिरफ्तारी के वक्त हमारा बेटा सो गया था वर्ना उसे हम कैसे संभालते, पता नहीं।

2. रूपेश कुमार पहले भी एक बार जेल जा चुके हैं क्या इस बार वो उसी केस में जेल में बंद हैं या दूसरे केस में? वर्तमान केस की स्थिति अगर आप बता सके तो!

ईप्सा– वर्तमान में उनपर 4 केस लगाए जा चुके हैं। जिनमें से 2 में बेल मिल चुकी है। रुपेश 2019 में बिहार के केस में बंद थे। इस बार 4 अलग अलग केस हैं।

3. आपके हिसाब से वह कौनसी स्टोरीज़ हैं जिसके कारण रूपेश अभी जेल में हैं और हमेशा सत्ता की नज़रों में रहते हैं

ईप्सा– रुपेश की सारी स्टोरी सत्ता को आईना दिखाने वाली रही है। दलित, आदिवासियों के पक्ष में, शोषित जनता के पक्ष में लिखने के कारण  वह हमेशा सत्ता की नजर में खटकते हैं।

4. रूपेश कुमार अपनी जनपक्षीय पत्रकरिता के कारण जेल में बंद हैं वो तो संघर्ष कर ही रहें हैं लेकिन उतना ही संघर्ष आप भी कर रही हैं। आपको इसकी क्या क़ीमत चुकानी पढ़ रही है ? आपके व्यक्तिगत संघर्ष, मानसिक संघर्ष, सामाजिक संघर्ष और आर्थिक संघर्ष के बारे में कुछ बताएं?

Family Picture of Rupesh Kumar
ईप्सा शताक्षी और रुपेश कुमार अपने पुत्र के साथ

ईप्सा– बिल्कुल, जब किसी का भी जीवन साथी मुसीबत में घिर जाए तो दोनों ही पक्ष पीड़ित हो जाते है। अभी मेरे सामने क‌ई तरह की चुनौतियां है सबसे बड़ी तो यह कि हर दिन अपने पिता के जेल से बाहर आकर चिड़ियाघर घुमाने और साथ बैठ कर मूवी देखने के इंतजार में बैठे हमारे बेटे को समझाना। मेरे चेहरे पर थोड़ी भी चिंता या उदासी दिखने पर बेवजह जोर जोर से रोने लगने वाले 5 साल के बेटे के पास हर समय खिले खिले दिखकर चहकते रहना।

मानसिक संघर्ष की बात करूं तो मैं खुद को मानसिक तौर पर भी पहले से ज्यादा मजबूती देने में लगी हूं क्योंकि एक के बाद एक जिस तरह से केस लगाए जा रहे हैं, मैं इनकी रिहाई को लेकर संशकित हूं। हां विश्वास है कि अंततः जीत सच्चाई की होनी है। समाज में क‌ई मानसिकता के लोग होते हैं, मेरी कुछ सहकर्मी जो अक्सर फोन कर मुझसे बातें किया करती थीं, उन्होंने अब फोन उठाना भी बंद कर दिया है और मिलने पर फोन में गड़बड़ी का बहाना देने लगी। पहले तो दुःख हुआ पर बाद में ऐसे लोगों से मैंने खुद ही किनारा कर लिया, वहीं कुछ ऐसे भी लोग हैं जो मेरे साथ है और विश्वास करते हैं कि हम कभी ग़लत नहीं कर सकते।

आर्थिक रूप से मैं काफी सालों से आत्मनिर्भर हूं। पर वर्तमान में नौकरी चले जाने और रुपेश की गिरफ्तारी से परेशानी झेलनी पड़ रही है। क्योंकि क‌ई तरह के खर्चे अचानक से बढ़ ग‌ए हैं। मेरे साथ साथ मेरे परिवार के लोगों की परेशानी बढ़ी है, उनकी दिनचर्या भी प्रभावित हो रही है। अपनी अपनी तरफ से वे मदद कर रहे हैं। मैं इस स्थिति को संभालने की कोशिश में हूं।

5. आप खुद भी जन आंदोलनों से सरोकार रखती हैं। क्या आपको लगता है कि आपको या आपके परिवार के किसी अन्य सदस्य को प्रत्यक्ष रूप से सरकार द्वारा निशाना बनाया जा सकता है?

ईप्सा– किसी जन आंदोलन में मैंने कभी सीधे तौर पर भाग तो नहीं लिया है। हां, आंदोलनों को मेरा वैचारिक रूप से समर्थन रहा है। मुझे या मेरे परिवार के किसी सदस्य को निशाना बनाने की संभावना पर बात करूंl तो 2019 में जब पुलिस हमारे घर आई और बातचीत के क्रम में हम दोनों बहनों के बारे कहा था कि इनका लेखन भी ऐसा है कि इन्हें भी जेल में डाला जाना चाहिए। इस बार भी ऐसा ही कुछ बोला गया है। आगे क्या होगा ये तो वक्त पर निर्भर है।

6. आज बहुत से जनपक्षिय बुद्धिजीवी जेलों में बंद है। क़ानूनी लड़ाई के अलावा क्या आप राजनीतिक बदियों की रिहाई के लिए भी प्रयास कर रहे हैं जिससे जन दबाब बनाया जा सके?

ईप्सा– राजनीतिक बंदियों की रिहाई के लिए बड़े पैमाने पर व ठोस कदम उठाने की जरूरत है और वही कोशिश कर रहे हैं।

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