
NCERT ने चर्ल्स डार्विन की इवोल्यूशन की थ्योरी को अपने सिलेबस में से हटा दिया गया है। अब कक्षा नवीं और दसवीं के छात्र डार्विन की इस थ्योरी को नहीं पढ़ पाएंग। देश के लगभग 1800 वैज्ञानिक NCERT इस कदम पर अपना विरोध दर्ज कराते हुए एक पत्र जारी कर चुके हैं। वैज्ञानिकों और शिक्षाविदों के अनुसार डार्विन को न पढ़ाया जाना शिक्षा जगत में उपहास के बराबर है। डार्विन के चेप्टरों को हटाने के पीछे सरकार का तर्क है NCERT ने कोविड के बाद छात्रों पर बोझ को कम करने के लिए ये कदम उठाया है.
ये पहली बार नहीं है कि जब चार्ल्स डार्विन निशाने पर हैं समय समय पर उन पर उनकी विकासवाद के सिद्धांत पर हमले होतें ही रहे हैं। 2018 में तब के तत्कालीन मानव संसाधन राज्य मंत्री रहे सत्यपाल सिंह कह चुकें हैं कि डार्विन का ये सिद्धांत कि हम बंदरों से विकसित हुए हैं पूरी तरह से गलत है क्यों कि हमारे पूर्वजों में से किसी ने भी ऐसा होते हुए नहीं देखा है।
एक ऐसे ही अन्य घटना 2019 की है जब आंध्र प्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति जी नागेशवर राव लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में 106 वी साइंस कांग्रेस में त्रेता युग और दशातवार युग को लेकर कई बड़े-बड़े दावे किये। उनके अनुसार दशावतार का सिद्धांत चार्ल्स डार्विन के सिद्धांत से कई ज्यादा बेहतर है। उनके अनुसार ” दशावतार डार्विन के सिद्धांत से बेहतर है क्योंकि इसमें योजना बनाई गयी है कि मनुष्य के बाद क्या आएगा। दशातवार में बताया गया है कि जब भी धरती में कोई गड़बड़ी होगी तब भगवान विष्णु अवतार लेकर उसे ठीक करेंगे जबकि डार्विन के सिद्धांत में मनुष्य शरीर और व्यवहार में समय के साथ होने वाले बदलाव के बारे में ही बताता है। ”
स्कोप मंकी ट्रायल
1925 में अमेरिका में एक मशहूर ट्रायल चला जिसे स्कोप मंकी ट्रायल नाम से जाना जाता है। इसके पीछे की कहानी ये है कि अमेरिका के टेनिसी राज्य में एक कानून लाया गया था जिसके अनुसार ऐसे किसी भी सिद्धांत को पढ़ना पढ़ाना गैर क़ानूनी घोषित कर दिया गया जो बाइबल की मान्यता के विरुद्ध जाती हो। कानून के अनुसार राज्य के फण्ड से पूर्णत या आंशिक रूप से चलने वाले किसी भी शिक्षण संस्थान में अगर जीवन सबंधी ऐसी कोई भी थ्योरी को पढ़ाया जाता है जो बाइबल में लिखित मनुष्य की दैवीय उत्त्पति के सिद्धांत को ख़ारिज करती है और यह कहती है कि मनुष्य तुछ जीवों के क्रमिक विकास से विकसित हुआ है तो ये गैरकानूनी होगा। जॉन स्कोप्स एक नामक एक शिक्षक को इस लिए गिरफ्तार कर लिया गया क्यों कि वो डार्विन की एवोलूशन की थ्योरी को पढ़ा रहे थे। उन पर मुकदमा चला और उन्हें दोषी करार दिया गया। जॉन स्कोप पर 100 डॉलर का जुर्माना लगाया गया। और इस तरह से टेनिसी प्रान्त में डार्विन की एवोलूशन की थ्योरी के पढ़ने पर प्रतिबंधित लगा दिया गया। ये प्रतिबन्ध 40 सालों तक रहा। 1968 में सुप्रीम कोर्ट में इस कानून को चुनौती दी गयी और उसके बाद इस कानून को रद्द किया गया और इस तरह से टेनिसी प्रान्त में करीब 40 साल तक डार्विन की थ्योरी पर लगे बैन को हटाया गया।
आसाराम से लेकर डॉ जाकिर नायक हर कोई डार्विन का विरोध करता नजर आयेगा क्यों कि डार्विन ब्रम्हा के शरीर से मनुष्य के जन्म लेने लेकर आदम और हव्वा की संतान होने तक की तमाम मानयताओं को डार्विन वैज्ञानिक रूप से ख़ारिज कर देते हैं। इस लिए हर धर्मवाली के सर दर्द का कारण डार्विन बने हुए हैं। फिर भले ही मनुष्य की उतपत्त्ति के बारे सब की मानयताओं में भिन्नता क्यों न हो लेकिन डार्विन को लेकर सब एक मत हैं।
क्या है डार्विन की थ्योरी ऑफ एवोलूशन
चार्ल्स डार्विन ने इंसान और जीव-जंतुओं के क्रमिक विकास को समझाया था। उनका मानना था कि हम सभी के पूर्वज एक ही हैं। हर प्रजाति चाहे वह इंसान हो, पेड़-पौधे हों या जानवर, सभी एक-दूसरे से संबंधित हैं। इसी को थ्योरी आफ इवोल्यूशन यानी विकासवाद का सिद्धांत कहा जाता है। विकासवाद के सिद्धांत के मुताबिक, इस धरती पर सबसे पहले एक कोशिका वाले जीव बने। ये जीव पानी में रहते थे। समय और परिस्थितियों के अनुसार इन्होंने खुद को ढाल लिया। एक कोशिकीय जीव के बाद बहुकोशकीय जीव बने। इस तरह जीव विकास की यह यात्रा करोड़ों वर्षों तक चली, जिसके परिणामस्वरूप आज का इंसान बना है। (यहाँ ये ध्यान रहे कि यहाँ मैंने बहुत ही सतही रूप में इस थ्योरी को समझाने की कोशिश की है। क्यों कि सब्जेक्ट ही अपने आप में इतना विशाल और जटिल है तो सकता है की इसकी व्याख्या करने में कुछ झूट जाये कुछ गलती हो जाये, चार्ल्स डार्विन का विकासवाद का सिद्धांत उन सभी मान्यताओं को खारिज करता है , जो कि इंसान, जीव-जंतुओं और पेड़-पोधों का निर्माण एक अलौकिक घटना मानती है। डार्विन के अनुसार बंदरों की एक प्रजाति के क्रमिक विकास से ही आज के इंसान का निर्माण हुआ है । धरती पर जीवन की शुरुआत से ही जीवों का आपसी और प्रकृति के प्रति संघर्ष चला आ रहा है। जो इस संघर्ष में अनुकूल रहे, वो जीवित रहे। वहीं, जो प्रतिकूल रहे, वो नष्ट हो गए।
क्यों कि डार्विन ये थ्योरी चर्च को सीधे तौर पर चुनौती थी इस लिए डार्विन को उस समय भी विरोध का सामना करना पड़ा था। और ये विरोध आज तक जारी है।