कौनसी सरकार है आदिवासियों की हितैषी- एक तथ्यात्मक रिपोर्ट

सब कुछ बदला, निजाम बदला, दल बदला और मुख्यमंत्री भी, लेकिन अगर कुछ नहीं बदला तो वहाँ के आदिवासियों के साथ होने वाला अत्त्याचार।

 2018 के विधानसभा चुनावों में सब बदला कांग्रेस काफी सालों बाद सत्ता में आयी। सब कुछ बदला निज़ाम बदला, निज़ाम का मुखिया बदला, दल बदला, बस नहीं बदले तो छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के साथ होने वाले अत्याचार और उनके हालात। अक्टूबर 2022 को प्रदेश के मुख्यमंत्री  भूपेश बघेल ने एक प्रेस वार्ता के दौरान बीजेपी पर कटाक्ष करते हुए बोला था कि ‘ पिछली सरकार को लगता था कि सारे आदिवासी ही नक्सली हैं कनपटी पर बन्दुक रखके तो आप किसी भी कागज पर किसी से कुछ भी साइन करवा सकते हो किसी को कुछ भी साबित कर सकते हो, लेकिन हमारी सरकार अब आदिवासी संस्कृति को बचाने का काम कर रही है, आदिवासी इलाकों में विकास के कार्य कर रही है। और भी कुछ इस तरह कि अच्छी अच्छी बातें अपनी ही सरकार के लिए बोली जिससे ऐसा प्रतीत हो कि पिछली सरकार और उनकी सरकार में आदिवासियों के प्रति बुनियादी अंतर है। उनकी सरकार आदिवासियों के प्रति ज्यादा सवेदनशील है और वो नक्सल समस्या को अलग तरीके से हल करना चाहती है। लेकिन भले ही सत्ता में कोई भी हो आदिवासियों के लिए अपने जल,जंगल और जमीन को बचाने की लड़ाई हमेशा से ही मुश्किल रही है और निश्चित ही आगे भी रहने वाली है। कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों के वक्त जारी घोषणा पत्र में जिसे जन संकल्प पत्र का नाम दिया गया था उसमे 36 सूत्री वादों में से एक वादा ये भी था कि राज्य में सरकार बनाने के बाद नक्सल समस्या का शांतिपूर्वक समाधान करने के लिए नीति तैयार की जाएगी और वार्ता शुरू करने के गंभीर प्रयास शुरू होंगे। PESA कानून को सही तरीके से लागु किया जायगा और आदिवासियों को हर फैसले में शामिल किया जायेगा। इसे उस समय के तत्कालीन कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गाँधी की मौजूदगी में नवम्बर 2018 में जारी किया गया था। यहाँ राहुल गाँधी का जिक्र इस लिए  हे  क्योंकि वो भारत में उभरी नफरत के खिलाफ यात्रा पर हैं। देश में मौजूद डर को ख़त्म करना चाहते हैं। इस दौरान राहुल गाँधी  ने देश के आदिवासियों के हक़ और अधिकारों का भी कई इंटरव्यूज और अपने भाषणों में जिक्र किया है।हाल ही में पत्रकार मनदीप पुनिया ने राहुल गाँधी से प्रेस वार्ता में छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के डर और मानवाधिकार कार्यकर्त्ता सोनी सोरी को लेकर सवाल सीधा सवाल किया था जिससे राहुल गाँधी बचते हुए नजर आये और कहा ‘मैं खुद वहां जाकर देखूंगा’  और कह कर सवाल को बीजेपी कांग्रेस पर केंद्र्ति कर दिया। आपको बता दे कि सोनी सोरी के घर की बिजली को काट दिया गया और उन्हें अँधेरे में रहना पड़ा। अब ये मामला अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पहुंच चूका है उन्हें जर्मन सांसद द्वारा वंचित महिलाओं के लिए संघर्ष करने के लिए स्कालरशिप प्रदान की गयी।

जर्मन सांसद द्वारा सोनी सोरी को स्कालरशिप

बीजापुर की घटना और सरकार का रवैय्या

कांग्रेस ने भले ही अपने घोषणा पत्र में  नक्सल समस्या के शांतिपूर्वक समाधान के लिए नीति और वार्ता के प्रयास के कितने ही वादे किये हो लेकिन क्या सचमे कांग्रेस के पास पिछली सरकार भापजा से इसके समाधान के लिए कोई अलग नीति है? क्या सचमे वहाँ की वर्तमान सरकार उसके शांतिपूर्ण समाधान के के लिए गंभीर भी है ? इसको बुर्जी में घाटी हाल ही की घटना से समझा जा सकता है।

बुर्जी घटना का विवरण

छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में बुर्जी गावं में 2021 से अंदोलन चल रहा है। इस अंदोलन की अगुवाई मूलनिवासी बचाओं मंच के द्वारा की जा रही थी। बुर्जी का यह धरना इस लिए भी महत्पूर्ण हो जाता है जब अगस्त 2022 में राज्य सरकार द्वारा आयोजित आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन किया जा रहा था तब भी बीजापुर में आदिवासियों द्वारा बढे बढे संख्या वाले विरोध प्रदर्शन देखने को मिले थे। दरअसल 2021 से बीजापुर के बुर्जी गावं और उसके आसपास लोग करीब 3 से 4 हजार की संख्या में  शानितपूर्ण तरीके से धरने पर बैठे हुए हैं। 15 दिसंबर 2022 की रात को पुलिस और फ़ोर्स द्वारा धरना स्थल पर लाठीचार्ज किया गया। सोनी सोरी के अनुसार पूरा घटना क्रम इस प्रकार था – 2021 से वहां की सारी आदिवासी जनता एक जगह इकठ्ठा होकर अहिंसक तरीके से धरना दे रही थी। जिसकी सूचना प्रशासन को पहले से  ही दे दी गयी थी । वहां की जनता की मांग थी कि आदिवासियों को नक्सल के नाम पर जेलों में डाल दिया जाता है या उनका एनकाउंटर कर दिया जाता है, CRPF का कैंप बना दिया जाता है या PESA एक्ट के तहत आदिवासियों को जो अधिकार है कि उनके एरिया में प्रशासन द्वारा कुछ भी कार्य करने से पहले ग्राम पंचायत की अनुमति ली जाएगी जो नहीं ली जाती है, हमारे पेड़ों को काटा जा रहा है, जंगलो को नष्ट किया जा रहा है, कुछ भी करने से पहले हमको पूछते तक नहीं है तो इन्ही  सब मांगों को लेकर लगभग डेढ़ साल से धरने पर बैठे थे। 15 दिसबर को रात में 1 बजे  एक नरसंहार की तरह एक घटना वहां घट जाती है। 15 , 20 गाड़ियों, जिसमे मिटटी खोदने और झाड़ियों को काटने वाली मशीन थी, के साथ लगभग 1000 फोर्स के जवान धरना स्थल की तरफ बढ़ने लगे।अब इतनी गाड़िया आएँगी तो स्वाभाविक है कि पता तो चलेगा ही। जैसे धरना स्थल पर पता लगा वहां मौजूद सारे आदिवासी उस रुट पर इकठ्ठा हो गए जहा से फोर्स गुजरने वाली थी। उस समय लगभग आदिवासियों की संख्या 2000 के आसपास  होगी। आदिवासी जनता बस फोर्स से बात करना चाहती थी कि इतनी गाड़ियों को लेकर आप कहाँ जा रहे है ये सब सामान हमें दिख रहा है कि आप धरनास्थल के आगे कैंप बनाने जा रहें लेकिन पहले हमसे बात करो। बस यही बातचीत के लिए वो लोग खड़े थे ऐसा नहीं था कि वो फोर्स पर अटैक करना चाह रहे थे या पथराव करना चाह रहे थे बस जनता उनसे बात करना चाहती थी। लेकिन पुलिस ने कुछ सुना नहीं और धक्का मुक्की चालू कर दी जिसमे बताते हैं कि एक बूढी माता जी को चोट लग गयी और इसके बाद लाठी चार्ज शुरू कर दिया, पुलिस तो पूरी तैयारी के साथ गयी थी, पुलिस ने अंधाधुंध लाठी चार्ज किया जहा बच्चों, महिलाओं सबको बुरी तरह से पीटा। जिसमे लगभग 200 लोग बुरी तरह से घायल हुए किसी के पैर में किसी के हाथों में चोटे आयी, किसी का सर फूटा मतलब बुरी तरह से आदिवासियों को पीटा गया और धरना स्थल को तहस नहस कर दिया। और थोड़ी दूर आगे जाके पुलिस ने अपना कैंप लगा दिया। ये रात की घटना है। पुलिस दोबारा सुबह धरनास्थल पर पहुंची।  बोला की धरने से हट जाओ वरना दोबारा बहुत मारेंगे। लेकिन जनता वहाँ से नहीं हटी। मूलवासी बचाओं मंच जो इस धरने का नेतृत्व कर रहा था वो लोग बार बार पुलिस से कह रहें थे कि आप लोग हमसे बात करो, सीधा हमें मार क्यों रहे हो। ये क्षेत्र PESA कानून के तहत आता है, ग्राम सभा के अंतर्गत आता है आप ऐसा कैसे कर सकते हैं, आप बात तो कीजिये फिर मूलवासी बचाओ मंच की टीम को पुलिस ने बुला लिया लेकिन जैसे ही वो टीम वहां पहुंची उनको इतना मारा, इतना मारा  कि मार मार के अधमरा कर दिया और जनता को धरना स्थल से खदेड़ दिया।

 

इस घटना का सोनी सोरी को 17 दिसंबर को पता लगा वे बुर्जी जाना चाहती थी लेकिन उन्हें जाने नहीं दिया गया। पुलिस के द्वारा अलग अलग बहाने से उन्हें बार बार रोका गया । खेर वो अपने प्रयासों से 23 तारिक को धरना स्थल तक पहुंची। वो घायल जनता से बात ही कर रही थी कि पुलिस फिर से वहां लाठीचार्ज करने पहुंची लेकिन इस बार सोनी सोरी के कारण कर नहीं पायी।

अभी तक भी बुर्जी का मामला शांत नहीं हुआ। सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार की फेसबुक पोस्ट जो 7 जनवरी की है उनके अनुसार पुलिस बुर्जी के आदिवसियों पर अभी भी लाठीचार्ज कर रही है। पिछले कई हफ्तों से आदिवासियों के ऊपर लाठीचार्ज मारपीट और दमन चल रहा है। आदिवासी पिछले लगभग 2 साल से अपने गांवों में जबरदस्ती पुलिस कैंप खोलने का विरोध कर रहे हैं। पुलिस कैंप खोलने से आदिवासियों का दमन बढ़ता है महिलाओं के साथ बलात्कार बढ़ते हैं निर्दोष आदिवासियों को जेलों में डालने का काम शुरू हो जाता है फर्जी मुठभेड़ बढ़ जाती है इसलिए आदिवासी अपने गांव में पुलिस कैंप नहीं चाहते।

 आदिवासी इलाके से खनिजों को खोदकर निकालने के लिए चौड़ी चौड़ी सड़कें बनाई जा रही है जिसमें आदिवासियों के पट्टे की जमीन, पूजा स्थल, खेत कब्जा कर लिए गए हैं, पेड़ काट डाले गए हैं। आदिवासी इस सब का विरोध कर रहे हैं और वे चाहते हैं कि आदिवासी इलाकों में लागू PESA कानून का पालन हो ग्राम सभा से बात की जाए उसकी अनुमति से ही सरकार काम करे, लेकिन शांतिपूर्ण आंदोलन करने वाले आदिवासियों से बात करने की बजाय उन्हें लगातार पीटा जा रहा है। कांग्रेस को समझना चाहिए कि आज तक कोई भी आंदोलन लाठी गोली और दमन से दबाया नहीं जा सका है, उल्टे इस तरह, आंदोलन और भड़कता है।

इतिहास हर बात को नोट कर रहा है इतिहास लिखेगा कि कांग्रेस ने अपने शासनकाल में छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के लोकतांत्रिक शांतिपूर्ण आंदोलन को हिंसक तरीकों से दबाने की अलोकतांत्रिक कोशिश की थी। इससे कांग्रेस का नैतिक बल खत्म हो जाएगा, आखिर जनता से बात करने अत्याचारी पुलिस वालों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही करने में किसी भी सरकार को क्या हिचक होनी चाहिए?

हम जानते हैं सत्ता हाथ में आने पर लगता है कि हम किसी भी ऐरे गैरे से बात क्यों करें लेकिन यही ऐरी गैरी जनता वोट देकर आपको सत्ता में पहुंचाती है। कहते हैं तप से राज्य मिलता है और राज्य मिलने पर जो पाप होते हैं उसके बाद नरक मिलता है। हम अपने दोस्तों को नर्क से बचाना चाहते हैं लेकिन वह हमारी बात नहीं सुन रहे।

अन्य घटनाये-

एक अन्य घटना छत्तीसगढ़ के भैरबगढ़ की है-आदिवासियों का आरोप था की पुलिस ड्रोन कैमरों से नदी में नहाती हुई आदिवासी महिलाओं के वीडियो बनती हैं और इसे रोकने की मांग को लेकर आदिवासी तहसीलदार को ज्ञापन देना चाहते थे, तहसीलदार के द्वारा वो अपनी बात राष्टपति तक पहुंचना चाहते थे, लेकिन यहाँ भी पुलिस ने लाठी चार्ज किया। 

चाहे नक्सल के नाम पर फेक एनकाउंटर हो या आदिवासी युवक युवतियों को जेलों में डालने का मामला,  या फिर  आदिवासी महिलाओं से बलात्कार का मामला, ये सिलसिला राज्य में कांग्रेस के सत्ता के आने के बाद भी नहीं रुका हैं।

रामा के माता पिता के साथ सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार और सोनी सोरी

छत्तीसगढ़ के बीजापुर में रामा नाम के आदिवासी के 20 वर्षीय बेटे को 20 दिसंबर 2022 को पुलिस फर्जी एनकाउंटर में मार देती है । रामा जब अपने बेटे की लाश लेने जाते हैं तो पुलिस उन्के साथ भी मारपीट और दूरव्यहवार करती है। और लाश को जबरदस्ती जला देती है। इस मामले को लेके रामा जगदलपुर में प्रेस कॉन्फ्रेंस भी कर चुके हैं। उन्होंने पुलिस के खिलाफ FIR करने की भी कोशिश की।

मडकमरमेश

19 वर्षीय मडकमरमेश अपने गावं में खेती करता थे 2020 को उसे ग्रिफ्तार करके जेल में डाल दिया गया। पुलिस उस पर कुछ भी आरोप साबित नहीं कर पाई और सूबतों के आभाव में 2022 में कोर्ट से जमानत मिली। दो साल उसे जेल में क्यों रहना पड़ा इसका जबाब शायद ही मिल पाए।

घटनाये तो और भी बहुत घटित हुयी हैं जो बताती है कि भूपेश भगेल की सरकार मेंआदिवासियों के साथ वही सब हो रहा है जो पिछली सरकार भाजपा के शासनकाल में हुआ। यानि की पुलिस आज भी वहाँ जबरन आदिवासियों के कनपटी पर बदूक रखे ही हुए है।

सोनी सोरी से इसी इसी वेव साइट के लिए, लिए गए इंटरव्यू में पूछा गया था कि  क्या सरकार नक्सल समस्या के समाधान के लिए गंभीर भी है या नहीं? और उनका जबाब था की वो राज्य और केंद्र सरकार दोनों से पूछना चाहती हूँ कि आप कब तक नक्सलियों के नाम पर आदिवासियों को मारते रहोगे। सरकार बात तो करना चाहती ही नहीं है वो ढोंग करती है अगर सरकार सच मे नक्सल समस्या को ख़त्म करना चाहती है तो वो उसमे कामयाब हो सकते हैं। अगर सरकार सच मे गभीर है तो हम लोग नक्सलियों से भी बात करेंगे। इन सब में नुकसान किस का हो रहा है आदिवासियों को मार कौन रहा है, घर किस का जल रहा है, एनकाउंटर किस का हो रहा है, आदिवासियों का, बलात्कार किस का हो रहा है आदिवासी महिलाओं का। राज्य की कांग्रेस और केंद्र सरकार एक बार आदिवासियों से अपील तो करे, उनके विचार तो जान ले। आप आदिवासियों से ही बात नहीं करना चाहते है और बड़ी बड़ी बातें बोलते हैं कि हम नक्सल से बात करेंगे। ये हम कब से सुन रहे हैं। लेकिन इसकी पहल तो सरकार को ही करनी पड़ेगी। सरकारें सिर्फ ढोंग कर रही है। उल्टा फोर्स, CRPF के कैंप बढ़ाये जा रहें हैं, सेना बढ़ाई जा रही है। अब तो ऐसा हो गया है कि जितना बस्तर में आदिवासी नही है, उससे ज्यादा तो पुलिस फोर्स आ गयी है। अगर सरकार और आदिवासियों में वार्ता हो जाये तो हम माओवादियों से भी बात करेंगे कि इतना नुकसान हो रहा है आदिवासी मारे जा रहें हैं आप लोग कहते हैं कि आप आदिवासियों के हको के लिए लड़ते हैं तो आप भी हथियार छोड़िये। लेकिन ये पहल तो सरकार को ही करनी पड़ेगी।

मानस

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